हक से मांगा था अपना हक उसनें ,
सजा दिये मैने उसके सारे सपनें,
इजहार -ए-वफा कोई कसूर था क्या ,
जो लगे वो मेरी तस्वीर को अपने हांथों से ढकने,
मैं क्या हूँ मेरी तो बात छोड़ ही दो ,
इश्क के लिये भगवान भी लगे थे बिकने ,
बहुत मनाने पर एक वो शख्स माना ही नहीं,
तुम होते कौन हो लगा मुझसे ये वो कहने!