गोमती एक्सप्रेस की रफ्तार धीमी होने लगी, और धड़-धड़ की आवाज भी धीमी होती जा रही थी, मतलब साफ है की स्टेशन आ गया है या आने वाला है। ट्रेन की रफ्तार धीमी होती जा रही थी और आलोक की धड़कने तेज, क्योंकि जब भी आलोक कहीं जा रहा होता है बस से हो, ऑटो से हो या फिर ट्रेन से इन सभी की धीमी रफ्तार होने से आलोक की धड़कने तेज होने लगती थी! आलोक ने दरवाजे से देखा तो आगे स्टेशन दिखाई दिया जैसे-जैसे स्टेशन पास आ रहा था ठीक वैसे ही स्टेशन का नाम और भी साफ-साफ दिखाई दे रहा था ! ट्रेन जब स्टेशन पा आ चुकी थी तो स्टेशन की दीवारों और बड़े बोर्ड पर साफ-साफ स्टेशन का नाम लिखा था इटावा! हाँ यही नाम है स्टेशन का इटावा ! ट्रेन रुकी इसी के साथ आलोक की धड़कने भी पहले की जैसी नॉर्मल हो चुकी थी! ट्रेन के रुकने के बाद आलोक tre. से नीचे उतरा और स्टेशन से बाहर निकलकर इधर-उधर ऑटो देखने लगा! आलोक 21साल का नौजवान था जो अपनी जिन्दगी में पहली बार इटावा आया हुआ है, वैसे मैं बता दूँ की आलोक औरैया जिला का रहने वाला है जो कभी इटावा का ही हिस्सा हुआ करता था लेकिन अब औरैया का अपना एक अलग अस्तित्व है! आलोक के घर से इटावा की दूरी कोई 100 किमी के आसपास होगी ,इसके बावजूद आलोक कभी भी इटावा नहीं आया था, आता भी क्यों जब कोई काम हो तभी तो आयेगा! आप ही सोचिए की कोई बिना काम से कहीं क्यों जाने लगा हम्म! क्या जाते बिना किसी काम से बाहर नहीं ना! आलोक स्टेशन से बाहर आने के बाद इधर-उधर देखने लगा, लेकिन उसे समझ नहीं आता है की जाना किधर है! स्टेशन के बाहर आते ही ऑटो और बस खाड़ी मिलेगी, ये बात आलोक के दोस्त ने बताई थी जिससे की सवारी आलोक को आसानी से मिल जाये, और हाँ ऑटो सैफई तक जाते है और बस सैफई होते हुए मैनपुरी की ओर निकल जाती है, आलोक तिराहे पर आकर देखता है की ऑटो भी खड़े थे और लो ये क्या बस भी आ गई? उसी तिराहे पर कई सारी दुकाने थी जैसे फलों की, समोसे की और हाँ वही पास में ही एक हलवाई गर्म-गर्म गुजिया सेंक रहा था देखकर आलोक के मुँह में पानी आ गया, लेकिन हाँ एक दुकान उस पर सबसे फेमस थी घोड़ा चाय वाली! ये दुकान वास्तव में बहुत ही फेमस थी लोगों को वहाँ की चाय पीने के लिये लाइन में लगना पड़ता था और लोग चाय पीने के लिये लाइन में लगते भी थे! दुकान में बहुत भीड़ थी आलोक ने सोचा क्यों ना वो भी एक बार यहाँ की चाय का स्वाद लेकर ही
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