हास्य कविता
लेखन-तिथि-13/11/21
स.मौलिक/अप्रकाशित
शीर्षक......
अखिल भारतीय कुत्ता यूनियन
......राजेंद्र कुमार सिंह
एक अकेला कोई
कुछ कर नहीं सकता
समाज के बिना कोई
रह नहीं सकता
आदमी तो आदमी
कुत्ता समाज ने भी
इस मर्म को जान लिया
उचित-अनुचित के भाव को
पहचान लिया
मालिकों के ढुल-मुल नीति से
आज कुत्ते भी खार खा रहे हैं
ये लोग भी यूनियन बनाने
जा रहे हैं
क्योंकि व्यक्तिगत रूप से
सरकार कुछ करती नहीं
यूनियन ही एक धुरी होती है
मांगे मानी जाती है,फैसला पूरी होती है
ऐसे ही एक सम्मेलन से कुछ कुत्ते
अपने गंतव्य को आ रहे थे
जुल्म ढ़ाने की प्रक्रिया को
एक दूसरे से सुना रहे थे
काश!हमलोगों का भी होता
एक जबरदस्त राजनीतिक पार्टी
एक जबरदस्त यूनियन होता
न कोई भूख से मरता,न कोई रोता.
एक दिन बातों ही बातों में
अंधेरी रातों में
कुछ कुत्ते बैठे थे क्यू में
दिमाग खपा रहे थे
यूनियन बनाने के व्यू में
फिर क्या था
यूनियन बना छोटे स्तर पर
दिन-दुनी,रात चौगुनी
तरक्की करने लगा निरंतर
सदस्यता ग्रहण करने हेतु
दूर-दूर से आने लगे
जिला तो जिला,राज्य स्तर तक
एक दूसरे ओर जाने लगे
संदेश पहूंचाने लगे.
अल्प समय के दौरान ही पूरे देश में
इस यूनियन का डंका बजने लगा
सभा-सम्मेलन जोर-शोर से चलने लगा
मानवीय अत्याचारों का
भंडाफोड़ होने लगा.
एक दिन रेडियो,प्रिंट मीडिया की मेहरबानी से
देश में समाचार देखे गए,सुने गए
अखिल भारतीय कुत्ता यूनियन के
अमूक-अमूक कुत्ते
अमूक-अमूक पदों के लिए चुने गए
अमूक तिथि को सृष्टिकर्ता के पास
भारी-भरकम रैला होगा
सारे भारतीय कुत्ता समाज का मेला होगा
सात सूत्री मांगे थमाया जाएगा
सृष्टिकर्ता वही हैं मांगे मनवाया जाएगा.
चारो ओर पसर गई खुशियों की लहर
गांव,नगर,शहर-शहर.
बहने लगी अधिकार प्राप्ति का व्यार
होने लगी तैयारियां,होने लगा तिथि का इंतजार
वह.तिथि भी आ गया
देख आबादी अपने बिरादरी की
यूनियन अध्यक्ष चकरा गया
मन-ही-मन कहा
हमारी भरपूर आबादी होते हुए भी
अब तक दुत्कारे जा रहे हैं
संगठन के अभाव में फटकारें जा रहे हैं
अब हम सब नहीं सहेंगे
हमारी भी प्रतिष्ठा है,शान से रहेंगे
तो सारे बिरादरी के लोग
इसी आश में
नारेबाजी,शोरगुल करते
निकल गए भगवान शंकर के तलाश में
आपत्तियों-विपत्तियों के झुरमुट को लांघते हुए
नदी-नालों,सरोवरों को फांदते हुए
मंजिल नजदीक,आ गया वह स्थान
सामने था भगवान शंकर का मकान
बेसूरे आवाजों को सुनकर
भग्न हुआ भगवान शंकर का ध्यान
तभी उनके अनुयायियों ने कान में भुनभुनाया
सारी बातें कह सुनाया
सारी बातें सुनकर,यूनियन नेता को बुलाया
यूनियन नेता अपने अधिनस्थों के साथ
भगवान शंकर के समक्ष आया
अभिवादन के दौर से गुजरकर
अभी खड़ा हो पाया कि
भगवान शंकर बोले सुनाओ
आप-बीती बताओ
ऐसा फरमाया
नेता ने अपनी सात सूत्री मांगों को सुनाया
1)
स्वामिभक्ति में हमारी मिसाल है
फिर भी हमलोगों का खस्ताहाल है
अपनापन दिखाकर हमें दुत्कारते हैं
गाली-गलौज सहित हमारे बिरादरी को
फटकारते हैं.
2)
भोजन भी समय पर नहीं मिलता
नाश्ता सहित दोनों टाइम का भोजन हो.
3)
हमसे भरपूर काम लिया जाता है
मालिक लोग सोते घर में
हमलोग को बाहर किया जाता है.
4)
तन पर ढ़ंग का कपड़ा मिले
हमलोगों का भी व्यक्तित्व खिले.
5)
आराम हेतु सर्वेंट क्वार्टर हो
हमारे साथ मेरा लाइफ पार्टनर हो.
हमारी भी मजबूरी है
सिक्युरिटी हेतु दो जन जरूरी है.
6)
मालिक लोग खाते
स्टील,अलमुनियम के थाली कटोरे में
हमलोगों को जुठा खिलते मिट्टी के(वर्तन)सकोरे में.
शुद्ध भोजन मिलना चाहिए
7)
हमारे बिरादरी के विदेशी लोगों का नाम
टिपू,किटू,रिंकू,सिंटू,चिंटू
मानव अपने बच्चों को रखने लगे हैं
हमें वापस हो
हमारी भी प्रतिष्ठा है,नहीं कभी दुत्कारा जाए
हमलोगों का एक नाम हो,नाम से पुकारा जाए.
सात सूत्री मांगे हुआ समाप्त
कृपानिधानअब फैसला करेंआप!
भगवान शंकर बोले नाक धुनकर-
अत्याचार,घोर-अत्याचार
अब तक तुम लोग कहां था यार?
आपलोगों की मांगे जायज है,मानी जाएगी
अब से आपलोग हर किसी के मनभावन होंगे
ढ़ंग से जियोगे
एक नया इतिहास रचोगे.
यूनियन नेता बोला-
पुनःजुबान खोला-"महामहिम
भारत के लोग मौखिक नहीं
लिखित में करते विश्वास
लिखकर दीजिए,नहीं तो होना पड़ेगा हताश.
भगवान शंकर लिखने लगे
बाहर खड़े कुत्ते,मारे खुशी से चीखने लगे
या यूं कहें -एक सूर में भूंकने लगे.
" हे भारतवासियों
ये अपने हैं,इन्हें अपनाओगे
इनका भी इज्जत प्रतिष्ठा है
सभ्यता से पेश आओगे
तुम्हारे बच्चे की तरह इनका भी नाम होगा
इज्जत के साथ नाम से पुकारना होगा
नाश्ता के साथ-साथ
दोनों टाइम भरपेट भोजन कराओगे
बर्तन भी स्टील का होगा.
न तुम दुत्कारोगे,ना फटकारोगे
इनके बिरादरी का नाम अपने बच्चे को रखा है
उसे छोड़ना होगा
उस नाम को अब इनसे नाता जोड़ना होगा.
तन पर कपड़ा भी,एक सर्वेंट क्वार्टर
बारह घंटा डयूटी,संग लाइफ पार्टनर.
लिखित मांग पत्र को
अध्यक्ष किया अपने हवाले
खुशी-खुशी लौट रहे थे
लांघते ताल-तलैया,नदी-नाले
परंतु खुशियां टिक नहीं पाईं
विपत्तियांअभी भी मुंह बाए खड़ी थी
निगलने के लिएआतुर,
रास्ते में अड़ी थी.
हुआ ये,
नदी का पानी अकस्मात बढ़ गया
किनारा लुप्त हो गया
खतरे के निशान से
ऊपर उढ़ गया.
सारे सपने,सारे अरमां बिखर गए
धूल-धूसरित की तरह ढ़ह गए
मांगपत्र सहित
यूनियन नेता पानी में बह गए.
छिन गई सारी खुशियां
नेता जब भटक गया
मामला जहां से शुरू हुआ था
वहीं आकर अटक गया.
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सम्पर्क सूत्र......
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