( लालच का फ़ल ) अंतिम क़िश्त
अब तक-- रामाधीन साव ,सहदेव द्वारा 5000 हज़ार रुपिये की उधारी को न पटा सकने के कारण उसकी ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर पिछले 20 सालों से खेती कर रहा है । अब वहां आबादी का दबाव बढ़ा तो वह "माल" बनाने की सोचने लगा।)
उसने “राठी सिविल इंजिनयर कंपनी “ को इस हेतु सलाहकार नियुक्त किया । राठी निर्माण कंपनी के मुखिया महेश राठी ने उन्हें बताया कि इतने बड़े स्ट्क्चर बनाने में लगभग 15 से 20 करोड़ रुपिए लगेंगे । रामाधीन * माल * तो बनवाना चाहता ही था। रामाधीन ने ख़ुद की 10 एकड़ ज़मीन को 6 महीने के अंदर बेच दिया उससे उसे 4 करोड़ रुपिए हासिल हो गये । फिर उसने एसबीआई से 15 करोड़ रुपिए का लोन लेकर निर्माण प्रारंभ करवा दिया । 2 साल के अंदर रामाधीन का यह माल बन कर तैयार हो गया । और माल के अधिकान्श दुकानें किराये पर उठ गईं। चूंकि रामाधीन ने दुकानों का किराया बहुत अच्छा मिला रहा था । रामाधीन ने किसी भी दुकान को बेचा नहीं । उसे एक अच्छी खासी रकम बैंक में भी इएमआई के बतौर पटानी पड़ती थी । रामाधीन अपनी वर्तमान ज़िन्दगी से बेहद ख़ुश था साथ ही संतुष्ट भी । उसे ऐसा लगता था कि उसने सारे जहां को जीत लिया है । पर रामाधीन की ख़ुशी और ठाठ बाठ ज्यादा दिन नहीं टिक पाई । माल के प्रारंभ होने के 6 महीनों बाद ही राजस्व विभाग के आर.आई. व तहसील दार वहां पहुंच गये और माल संबंधित काग़ज़ात रामाधीन को दिखाने कहा । उनका पहला मकसद था ज़मीन के काग़ज़ात देखना । रामाधीन ने उनके सामने नगर निगम द्वारा प्राप्त माल निर्माण कि अनुमति के कागज़ात प्रस्तुत कर दिया। तब तहसीलदार ने लगभग धमकाते हुए कहा पहले हमें इस ज़मीन के कागजात दिखाओ । तब रामाधीन ने सहदेव सेन द्वारा किये इकरार नामा को दिखाया और तर्क देने लगा कि इस इकरार नामा के अनुसार ही जब सहदेव ने उधार लिया हुआ पैसा तीन साल तक नहीं पटाया तो ज़मीन मेरे कब्ज़े में आ गई। तब तहसीलदार ने कहा । मुझे ये बताइये क्या तुम इस ज़मीन के मालिक हो ? तो रामाधीन ने गुस्से में कहा कि मैने सारे कागज़ात दिखला दिये । नगर निगम का माल बनाने हेतु एनओसी का कागज भी है । सहदेव का इकरार नामा है , उस तहरीर के तहत ही यह ज़मीन मेरे कब्ज़े में है ।
तहसीलदार – इस उधारीनामा की तहरीर और इकरार नामा की तहरीर से आप ज़मीन के मालिक नहीं हो सकते रामाधीन -- मुझे ज़मीन को कब्ज़े में लेने का अधिकार दिया गया है ।
तहसील्दार – तुम्हारा यह अधिकार कानूनी रुप से सही या नही यह बाद में साबित होगा पर तुम्हें किसी और की ज़मीन पर किसी प्रकार के निर्माण का अधिकार नहीं है ।
रामाधीन – जब ज़मीन मेरे कब्ज़े में है तो मैं इस पर कुछ भी कर सकता हूं । हां इस हेतु नगर निगम से अनुमति और टाउन व कंट्री प्लानिंग विभाग से अनुमति होनी चाहिए । जो मेरे पास है ।
तहसील दार - आपने माल के निर्माण की अनुमति गलत तथ्यों के आधार पर हासिल किया है । यह एक अपराध है ।
रामाधीन --- तो अब क्या करना है । ज़मीन का मालिक तो 25 साल से लापता है । पता भी नहीं कि इस दुनिया में हैं या नहीं ।
तहसीलदार – यहां इस गांव के कई परिवार बरसों से कहीं और काम करते हैं । इसका यह मतलब तो नहीं कि उनकी यहां कि ज़मीन पर कोई कब्ज़ा करके कुछ भी बना ले ।
रामाधीन – तहसील्दार साहब आप क्यूं इस मुद्दे को इतना खीच रहे हो । व्याहारिक रुप में ये ज़मीन मेरी हो चुकी है । सहदेव व उनका परिवार को अब इस ज़मीन से कोई मतलब नहीं ।
तहसील दार – आप राजस्व संबंधित विवाद के बारे में ज्यादा नहीं जानते यहां सौ साल बाद भी गैर कानूनी निर्माण को हटाया / गिराया जाता है । तुमने ज़रा भी नहीं सोचा कि तुम अवैध निर्माण कर रहे हो , उधारी नामा के दम से तुम दूसरे की ज़मीन का उपयोग पच्चीसों साल से कर रहे हो ये भी एक अपराध है । अब की बार तहसीलदार बहुत गुस्से में था ।
रामाधीन – लगता है कि आपको आपके बड़े साहब यानी कलेक्टर ने भेजा है । जाओ उनसे कह दो कि उन्हें 5 लाख , 10 लाख जितना चाहिए कल उनके घर पहुंच जायेगा ।
तहसीलदार ----- पैसों का ज्यादा गुरुर मत दिखाओ । अपने सामान को समेटनेकी तैयारी करो । इस अवैध माल को महीने भर के अंदर प्रशासन गिराने जा रहा है ।
रामाधीन – तुम शायद मुझे नहीं जानते । यहां के विधायक और मेम्बरआफ़ पार्लियामेन्ट से मेरे घरेलू रिश्ते हैं । तुम और तुम्हारा वह नया भ्रष्ट कलेक्टर15 दिनों के अंदर कहां चले जाओगे पता भी नहीं चलेगा ।
तहसीलदार—खुद बेईमान होकर दुसरों पर बेईमानी का आरोप लगा रहे हो । यह माल तो ढ़हेगा ही
रामाधीन – पर कलेक्टर प्रशासन को किसी शहर वासी की प्रापर्टी से क्या लेना देना है । वे क्यूं मेरी प्रापर्टी के पीछे पड़े हैं।
तहसील्दार – उन्हें तुम्हारे पैसे से , धन दौलत व प्रापर्टी से कोई मतलब नहीं है । वे तुम्हारी प्रापर्टी पर नज़र नहीं गड़ा रहे हैं । वास्तव जिस ज़मीन पर यह माल बना है उसके मालिक वे ख़ुद हैं । उनका नाम विजय सेन है। वे सहदेव सेन के अकेले सुपुत्र हैं । उनके माता पिता का निधन हुए 2 वर्ष गुजर गये हैं । हाल में ही उन्हें अपने पिता जी कि इस प्रापर्टी का पता चला है । सारे राज्स्व रिकार्ड, पटवारी का रिपोर्ट, ऋण पुस्तिका, उनके तैयार हैं । कुछ दिनों में इस माल को ढ्हा कर वे अपनी ज़मीन पर कुछ बनाने वाले हैं।
इतना सुनने के बाद रामाधीन के माथे पर पसीना आ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं ? उसकी सारी होशियारी छू मंतर हो गई । भविष्य की सोचकर उसका रोम रोम कांपने लगा । इस माल के किराये से ही मेरा घर चलता है , बैंक का ईएमाई पटाता हूं ,और इसी से हमारे जीवन में लाली गुलाली है । उसने तुरंत ही उन राजनेताओं को फोन लगाया जिनसे वह जुड़ा था । पर उन सारे लोगों ने मामला पेचिदा है कह के हाथ खड़े कर दिये ।
अगले कुछ दिनों बाद नगर निगम का तोड़ू दस्ता , राजस्व विभाग के अधिकारी गण, पोलिस वालों के साथ वहां पहुंच गए । आधे घंटे के अंदर तोड़ फोड़ की कार्यवाही प्रारंभ हो गई । इसके 10 मिन्टों के बाद इस ज़मीन का मालिक “विजय सेन” जो वर्तमान में दुर्ग के डीएम हैं वहां अपनी ज़मीन के सारे कागज़ात लेकर आ गये । थोड़ी देर बाद डरते डरते रामाधीन उनके पास गये और कलेक्टर महोदय से कहने लगा कि आप इतनी महंगी प्रापर्टी को ढहा क्यूं रहे हो । चाहें तो मैं इसका पचास प्रतिशत मालिकाना हक आपको देने को तैयार हूं । तो उसे जवाब मिला कि रामाधीन जी आपने
5 हज़ार रुपल्ली की उधारी के बदले दबंगई दिखाकर मेरे कम पढे लिखे और सीधे साधे पिताजी की ज़मीन छीन ली । उन्हें दर-ब-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया । ये तो मैं ही जानता हूं कि उन्होंने अपने परिवार को स्थापित करने के लिए एक अन्जान शहर बंबई में क्या क्या नहीं किया ? जिस कागज़ात को तुमने रखा है उसका मजमून भी गैर कानूनी है । उधार देकर न्याय की मूलभावना के विरुद्ध कुछ भी लिख लेना , लिखवा लेना भी ग़ैर कानूनी है । अब आप यहां से चुपचाप हट जायें । आपके 5 हज़ार रुपिए मय ब्याज कल आपके घर में पहुंच जायेगा । आप भी अपने हित में 5 हज़ार रुपियों का 30 सालों का ब्याज निकाल कर रखिएगा ताकि आपको ये न लगे कि विजय सेन ने आपको धोखा दिया है ।
इस तरह सप्ताह भर के अंदर माल ढहा दिया गया । वहां बड़ी अफ़रा तफ़री मची हुई थी । वहां कुछ लोग शुरुवात में रामाधीन की तरफ़दारी करने की कोशिश कर रहे थे , पर उन्हें जैसे पता चला कि जिस ज़मीन पर माल खड़ा है वह ज़मीन कलेक्टर साहब की है । और माल को अवैध रुप से खड़ा किया गया है । तो वे सब वहां से खिसक गये । वहां बहुत सारे पुलगांव ग्राम के निवासी भी थे । जब उन्हें पता चला कि कलेक्टर साहब पुलगांव के ही बेटे हैं तो उन्हें बेहद ख़ुशी हुई । वे अपने आपको भी गौरवान्वित महसूस करने लगे ।
माल को ढहाने के बाद वहां कलेक्टर महोदय के इच्छानुसार निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया । साल भर के अंदर वहां दो भवन तैयार हो गये । उन भवनों में से एक पर लिखा था “ यशोदा चेरिटेबल हास्पिटल “ व दूसरे भवन में लिखा था “ सहदेव चेरिटेबल धर्मशाला “। आज दोनों ट्र्स्टों को सुचारू रुप से संचालित होते हुए कई साल गुज़र गये हैं । एक ट्रस्ट मंडल इसकी देखभाल करता है । जिसके अद्ध्यक्ष श्री विजय सेन जी हैं । यशोदा हास्पिटल में ग़रीबों का पूरी तरह से निशुल्क इलाज होता है व धर्मशाला में गरीबों को निशुल्क ठहराने की भी व्यवस्था है। समय गुज़रता गया, दस साल बाद अस्पताल के एक बिस्तर पर रामाधीन की पत्नी पक्षाघात से पीड़ित 6 महीनों से भर्ती है । और रामाधीन बगल के धर्मशाला में रहते हुए उसकी सेवा कर रहा है । रामाधीन को उस धर्मशाला का स्थायी चौकीदार नियुक्त कर दिया गया है । रामाधीन को जानने वाले कुछ लोग अक्सर दबी ज़बान से कहते हैं कि भले ही इन भवनों के मालिक कलेक्टर विजय सेन हैं पर आज भी इन भवनों में रामाधीन का ही सिक्का चलता है । वह पहले भी यहां काबिज़ था और आज भी । और शायद मरते दम तक यहीं काबिज़ रहेगा । बस फ़र्क इतना है कि पहले वह यहां मालिक की हैसियत से काबिज़ था अब वहां का चौकीदार है ।
( समाप्त )