shabd-logo

लालच का फल प्रथम क़िश्त

28 मार्च 2022

21 बार देखा गया 21
( लालच का फ़ल ) प्रथम क़िश्त ।

लगभग पचास वर्ष पूरव की बात होगी सहदेव सेन दुर्ग के आउटर पर स्थित छोटे से गांव पुलगांव में अपनी 5 एकड़ ज़मीन पर खेती कर के जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का गुज़ारा करते आ रहा है । पुलगांव एक अविकसित गांव था । गांव की आबादी बा-मुश्किल  500 रही होगी  । चूंकि सिंचाई का कोई साधन भी नहीं था अत: खेती भी बरसात के भरोसे ही थी । हर तीन चार साल में वहां अकाल पड़ना एक आम बात थी । सहदेव को कभी तत्काल कुछ पैसों की ज़रूरत पड़ती तो वह गांव के ही रामाधीन साव से ब्याज में पैसा उधार ले लेता था और यथोचित समय में उसे पटा कर  उधारी से मुक्ति पा लेता था । ऐसी कहानी पुलगांव के लगभग सभी किसानों की थी । कुछ किसान तो अपनी ज़मीन बेच कर उस गांव को छोड़कर किसी और गांव में बस गये थे । रामाधीन साव को ही उस गांव का सेठ माना जाता था । रामाधीन बेहद ही लालची और कपटी था । उसकी नज़र सदैव वहां के गरीब किसानों की ज़मीन पर रहती थी । वह जब भी 1000 रुपिए से अधिक किसी को उधार देता था, तो मुकम्मल कानूनी कागजात तैयार करवा लेता था । साथ ही उस कागजात पर दो गवाहों का भी दस्तख्त करवा लेता था । उस कागजात पर जितनी भी धाराएं लिखी होती वे सब पैसा देने वाले के ही हक में होती थीं । रामाधीन ऐसे ही उल्टे सीधे कागजात बनवा कर एक दो किसानों की ज़मीन को हड़प चुका था । रामाधीन 20 वर्ष पूर्व पुलगांव में आकर बस गया था । किसी को भी यह मालूम नहीं था कि वह आया कहां से था । उस वक़्त वह मजदूरी करके ही अपना ग़ुज़ारा करता था । कुछ सालों बाद वह वहां दुकान खोलकर गल्ले का धंधा करने लगा । उस धंधे में जब उसके पास कुछ पैसा आया तो वह किसानों को उधार में पैसा देने लगा । धीरे धीरे लाखों का मालिक हो गया था । उसने 10 एकड़ ज़मीन भी बना लिया था । उसकी सारी ज़मीन गांव के बहुत अंदर की ओर स्थित थी। जिधर आने जाने में भी बहुत मश्क्कत करनी पड़ती थी । 2/3 बड़े बड़े नाले को पार करके उसकी ज़मीन तक पहुंचा जा सकता था ,।  अब उसे यह अहसास होने लगा था कि 5/10 सालों में आबादी का दबाव दुर्ग शहर में बढने वाला है। ऐसे में शहर का विस्तार मुख़्यत: पुलगांव की तरफ़ ही होगा । तब वहां की ज़मीन की कीमत जो आज की तारीख में बा-मुश्क़िल 10000)00 से लेकर 15000)00 रुपिए है वह लाखों में हो जायेगी । 
अब उसकी गिद्ध द्रिष्टि सहदेव सेन की उस् 5 एकड़ ज़मीन पर थी जो मेन रोड पर पुलगांव चौक पर स्थित थी । सहदेव की ज़मीन अगर मुझे मिल जाती है तो वहां पचासों दुकानें खड़ी की जा सकती है या समय आयेगा तो वहां थियेटर या माल खड़ा किया जा सकता है । वहां पेट्रोल पंप भी खोला जा सकता है । अब वह दिन रात इस गुन्ताड़े में रहता कि किस तरह सहदेव को फ़ंसाया जाय । उसे कोई भारी रकम उधार दे दी जाय फिर ऐसे काग़ज़ात तैयार किया जाय कि उसकी धाराएं  ऐसी हो कि सहदेव फ़ंस कर रह जाये और अपनी ज़मीन को फिर कभी भी वापस लेने की हिम्मत न कर सके  । वह अक्सर सहदेव को पुचकारते रहता और कहता कि सहदेव तुमको कोई काम हो कोई ज़रूरत तो मुझे बेझिझक बताना आखिर हमारा संबंध तो बरसों से है । इस तरह रामाधीन सहदेव सेन का विश्वास जीतने का नाना प्र्कार से प्र्यास करते रहा । उसका परिणाम भी उसे सकारात्मक ही मिला ।
इसी बीच 10 साल के वैवाहिक जीवन के बाद  सहदेव को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । सहदेव ने अपने बेटे का नाम विजय सेन रखा । इस शुभ अवसर पर रामाधीन ने सहदेव को बधाई देते हुए कहा कि इतने सालों बाद तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है । अत: मेरे अनुसार तुम्हें सारे गांव वालों को खिलाना पिलाना चाहिए। जश्न होना चाहिए । वैसे तो सहदेव की भी इच्छा थी कि कोई पार्टी तो देनी चाहिए लेकिन उसके पास उस वक़्त सिर्फ़ 2/ 3 सौ रुपिए ही थे । इतने कम पैसों में सारे गांव वालों को पार्टी  देना मुमकिन नहीं था । इसके लिए तो कम से कम 5 हज़ार रुपिए तो चाहिए था । अत: चाहकर भी पार्टी आयोजन करने में ख़ुद को असमर्थ पा रहा था । रामाधीन को ऐसे ही किसी मौक़े की तलाश और ज़रूरत भी थी । उसने सहदेव से कहा कि मेरे रहते पैसों की तुम फ़िक्र क्यूं करते हो ? 5 हज़ार या जितना भी चाहिए तुम मुझसे लेलो फिर अपनी सहूलियत से उसे वापस करना ।  बार बार जब रामाधीन ने सहदेव को उधार लेकर पार्टी देने के लिए उकसाने लगा तो सहदेव को भी लगा कि ख़ुशी मनानी है तो अच्छे से मनानी चाहिए । फिर मेरा हितैशी जब मुझे पैसे उधार में देने तैयार है तो मैं पीछे क्यूं हटूं । फिर 2 साल में अनाज बेचकर उनका पैसा पटा ही दूंगा । इस तरह उसने एक दिन तय करके एक शानदार पार्टी सारे गांव वालों को दिया। सहदेव को इस पार्टी का ख़र्च चार हज़ार रुपिए आया । पैसों का इंतजाम सहदेव ने रामाधीन से उधारी लेकर किया । बदले में रामाधीन साव ने सहदेव से उधारीनामा लिखवा लिया । इस उधारीनामा में रामाधीन ने ब्याज की धारा तो जोड़ा ही था । इसके अलावा एक धारा ऐसी भी लिखवा दिया कि अगर सहदेव सेन तीन साल तक सारा पैसा नहीं पटायेगा तो उसकी 5 एकड़ ज़मीन मेरे कब्ज़े में रहेगी और उसका किसी भी तरह से उपयोग करने के लिए मैं स्वतंत्र रहूंगा । रामाधीन ने इस धारा संबंधित सहदेव को बताया कि कानूनी रुप से कागज़ात को मुकम्मल करने इस धारा को लिखाना ज़रूरी है । इसका वैसे कोई खास मतलब नहीं है । सहदेव ने भी सोचा कि 3 साल तक तो मैं अपने अनाज को बेच कर रामाधीन की 5 हज़ार की उधारी पटा ही दूंगा तो यह धारा रहे या न रहे क्या फ़र्क पड़ता है । उसने सारे कागज़ात पर अपना अंगूठा लगा दिया। फिर रामाधीन ने गांव के दो ऐसे लोगों का दस्तखत गवाह के रुप में लगवा लिया जो उसके ही काम धाम को बहुत सालों से देखते हुए आ रहे थे ।  

( क्रमशः )
3
रचनाएँ
लालच का फल ( प्रथम क़िश्त )
0.0
पुलगांव ग्राम में एक किसान को 5000) 00 देकर वहां का साहुकार साव जी उसकी ज़मीन का कागज अपने पास रख लेता है और इकरार नामा मेँ ऐसी शर्ते लिखवा लेता है की वह किसान शायद ही अपने द्वारा ली गयी उधारी को वापस कर सके। पर समय के साथ ऐसी बात होती है की साहुकार का दव उल्टा पड जाता है।
1

लालच का फल प्रथम क़िश्त

28 मार्च 2022
3
0
0

( लालच का फ़ल ) प्रथम क़िश्त ।लगभग पचास वर्ष पूरव की बात होगी सहदेव सेन दुर्ग के आउटर पर स्थित छोटे से गांव पुलगांव में अपनी 5 एकड़ ज़मीन पर खेती कर के जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का गुज़ारा करते आ रहा ह

2

लालच का फल ( दूसरी क़िश्त )

29 मार्च 2022
1
0
0

( लालच का फ़ल ) दूसरी क़िश्त अब तक-- पुलगांव के साहुकार रामाधीन साव ने वहां के एक किसान सहदेव जी को 5000 रुपिये उधार देकर इकरारनामा ऐसा लिखवा लिया की 3 साल के अंदर उधारी न पटाया जाए तो

3

लालच का फल ( अंतिम क़िश्त )

30 मार्च 2022
0
0
0

( लालच का फ़ल ) अंतिम क़िश्तअब तक-- रामाधीन साव ,सहदेव द्वारा 5000 हज़ार रुपिये की उधारी को न पटा सकने के कारण उसकी ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर पिछले 20 सालों से खेती कर रहा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए