अमला को आज देखने आनेवाले हैं। पात्र का नाम है अरुण। नाम सुनते ही अमला के दिल में मानो अरुण आभा छिटक गयी। कल्पना में उसने कितनी छवियाँ ही न बना डाली। सुन्दर, सुशील, बलिष्ठ, माथे पर करीने से काढ़ी गयी मांग। कुर्ता पहने हुए- सुन्दर सुपुरुष।
अरुण का भाई वरूण उसे देखने आया। वह उसे ओट से देखकर सोचने लगी- ‘मेरा देवर।’
लड़की देखना हो गया। लड़की पसन्द आयी। यह सुनकर अमला की खुशी का ठिकाना न रहा। रात उसने ढेरों सपने बुन डाले।
लेकिन शादी नही हुई- दहेज की रकम पर बात अटक गयी।
-दो-
फिर कुछ दिनों के बाद अमला को देखने आए। इस बार लड़का स्वयं आया। नाम हेमचन्द। इस बार अमला ने छिपकर ओट से देखा, बेश शान्त सुन्दर चेहरा- गोरा रंग- घुंघराले बाल- सुनहरी फ्रेम कर चश्मा- बहुत ही खूबसूरत।
फिर अमला का मन धीरे-धीरे इस नए आगन्तुक की ओर बढ़ गया।
कितनी ही बातें सोचने लगी वह।
इस बार दहेज पर तो बात बनी, लेकिन लड़की पसन्द नहीं हुई।
-तीन-
अंत में लड़की पसन्द भी हुई- दहेज पर सी बात बनी- शादी भी हुई। पात्र हैं विश्वेश्वर बाबू। मोटे काले गोल-मटोल हृष्ट-पुष्ट सज्जन, बी.ए. पास, सरकारी दफ्तर में नौकरी करते हैं।
अमला के साथ जब उनकी शुभदृष्टी हुई, तब पता नही क्यों, कैसी एक ममता से अमला का सारा हृदय भर गया। ऐसा शान्त, शिष्ट निरीह पति पाकर अमला मुग्ध हो गयी।
अमला सुखी है।
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