क्या यही है देश की तकदीर
जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में,पैदा होता देश का तारणहार है,जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में,वोट का करता वह नोट से व्यापार है।क्या वो देश को चला पायेगा,इस तरह के लोभ में मतंगियों को,कौन राह दिखायेगा ?क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,या फिर से पैदा होना पड़ेगा,भगत, आजाद, शिव