निर्भया का पत्र आपके नाम- अंचल ओझा, अंबिकापुरलोग कहते हैं मुझे आज़ादी ज्यादा मिल गई, इसलिये बिगड़ गई हूँ।लोग कहते हैं मैं छोटे कपड़े पहनती हूँ, इस लिये बदचलन हूँ। पड़ोस के काका ने भाई से कहा आजकल तेरी बहन मोबाईल पर ज्यादा बात करती है, सम्हालो नहीं तो हाथ से निकल जायेगी। पड़ोस में चर्चा होती है की बेटी को ज्यादा पढ़ा रही हो, लड़का भी वैसा ही ढूँढना पड़ेगा, दहेज़ कहाँ से लाओगी।जो लोग मेरे घर देर से लौटने को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ बनाते हैं, मेरे अफेयर की बात करते हैं, दरअसल शाम या फिर रात में मैं जब पैदल घर पहुँचती हूँ, तो इन्हीं आरोप लगाने वालों के सुशील और संस्कारी लड़के मुझे छेड़ते हैं, मुझे देखते ही तरह तरह से इशारे करते हैं और जब उनका जवाब नहीं देती, उनकी ओर ध्यान नहीं देती तो मुझ पर एसिड डाले जाते हैं, मेरे साथ बलात्कार होता है, छेड़-छाड़ तो रोज की बात है। कहते हैं मुझे आज़ादी मिली हुई है, मेरी इस आज़ादी को मैंने कब तोड़ा, कब मैने किसी लड़के पर एसिड फेका, कब किसी लड़के के साथ गैंग रेप जैसी घटनाएं हुई, कब लड़कियों ने मिलकर लड़कों को छेड़ा, उन से उनकी शिक्षा कब छीनी, कब उनसे उनका सम्मान छिना, कब उन से उनके जीने का हक छिना, कब किसी लड़के को गर्भ में मार दिया गया, कब ऐसा हुआ जब दहेज़ के लिये लड़के को मार दिया गया। समाज कहता है, समूचा राष्ट्र कहता है, मुझे आज़ादी मिली हुई है। कैसी है ये आज़ादी बलत्कार करने के बावजूद वह समाज में शान से घूमता है और मैं पीड़िता होने के बावजूद समाज से, मुहल्ले से, घर परिवार के लोगों से चेहरा छुपात