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बेपटरी हुई बजट?

1 फरवरी 2017

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सरकार का बजट आ गया है, उम्मीद से बहुत दूर और निराशाजनक बजट कई मायनों में है, एकाध-दो प्वाइंट को छोड़ दिया जाये, सरकार के साहस को दरकिनार कर दिया जाये तो एक-दो प्रमुख बातों के अलावा मुझे जो लगता है बजट से जनता को जितनी उम्मीदें थी, उस मुताबिक कुछ भी नहीं है, खासकर मजदूर, गरीब, किसान, युवा और महिला वर्ग के लिये। चुंकि इस बार रेल बजट भी साथ-साथ आ रहा है तो ऐसा लगता है कि रेल का असर बजट को हो गया है और वह बेपटरी हो गई है।


सरकार के बजट के कुछ प्वाइंट हैं कि 2019 तक 50,000 पंचायतों को गरीबीमुक्त करेंगे, ठीक है अच्छी सोच है होनी भी चाहिए लेकिन कैसे? इसका उदाहरण सरकार द्वारा जारी किये गये आर्थिक सर्वेक्षण रिर्पोट के टेबल में दर्शाये अनुसार बताना चाहूंगा कि छत्तीसगढ़ में 13 वर्ष से भाजपा की सरकार है, जो पूर्णतः अतिसंवेदनशील है। इन्होंने गरीबी को पूर्णतः समाप्ति की ओर धकेल दिया है, ये सरकार की स्वयं के जबान के बयान हैं। जिसे मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह स्वयं कई बार भाषणों में बोलते हैं, किन्तु भारत सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण रिर्पोट में कहा गया है कि प्रदेश की कुल आबादी के 40 प्रतिशत से भी अधिक आबादी गरीबी रेखा के निचे अथवा गरीब है। चलिये मान लेते हैं कि यह आंकड़ा 2011 जनगणना से लिये गये हैं किन्तु क्या भाजपा की इस सरकार ने केवल 4-5 वर्षों में गरीबी को समाप्त कर दिया, छत्तीसगढ़ के लोग भलीभांती जानते हैं कि गरीबी कितनी समाप्त हुई है। इस लहजे से यदि बजट की घोषणा में कहे गये 50,000 गांवों को 2019 तक गरीबी मुक्त बनाने की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि यह मात्र कागजी कल्पना है, यथार्थ पर 2019 तक 50,000 पंचायतों को गरीबी मुक्त करना संभव नहीं दिखता, वह भी ऐसे हालात में जब कि लोगों की नौकरी छीन रही है, आय कम हो रहे हैं, सरकार रूपये देने में आनाकानी कर रही है, रोजगार गारण्टी के कार्य बंद हैं, जो कार्य हुए हैं उनका पैसा बकाया है, ऊपर से सरकार बजट में मनरेगा हेतु 48000 करोड़ की घोषणा करती है जबकि लगभग 47499 विगत वर्ष के खर्च का अनुमान है। इस लहजे से देखा जाये तो मनरेगा मजदूरों की जैसी हालत अभी है, वहीं अगले वित्त वर्ष में भी रहने का अनुमान है, क्योंकि मनरेगा बजट के अधिकतर रकम इन दिनों पंचायतों में शौचालय निर्माण में खर्च हो रहे हैं, उस लिहाज से देखा जाये तो रोजगार सृजर काफी कम होंगे। ऊपर से सरकार ने यह भी कह दिया है कि 8 प्रतिशत प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में कमी आयी है, लोगों के रोजगार नोटबंदी के कारण छीने हैं। अब तय कर लिजिये कि बजट से मजदूर वर्ग को क्या मिला?


अमृत मिशन एवं स्मार्ट सीटी सरकार की सबसे बड़ी दूसरी प्राथमिकता वाली योजना है:-

विगत वर्ष इस योजना मद में सरकार ने 7296 करोड़ की घोषणा की थी जिस पर खर्च 9559 करोड़ होने का अनुमान है। वर्तमान वर्ष में सरकार ने 9000 करोड़ इस मद हेतु घोषणा की है। ऐसे में मेरा प्रश्न यह है कि जो सरकार 1, 2 नहीं 100 स्मार्ट सीटी की बात करती है, उसके पास जब स्मार्ट सीटी हेतु रूपये ही नहीं हैं तो फिर इस योजना के लिये रूपये कहां से मिलेगा? और सरकार ने स्वयं जो समय सीमा स्मार्ट सीटी हेतु तय की है, क्या उक्त समय में इस तरह कछुआ चाल से राशि खर्च करते हुए अपने द्वारा तय समय सीमा में 100 स्मार्ट सीटी पूर्ण कर लेगी? यह सरकार को सोचना होगा, घोषणा करना बड़ी बात नहीं है, कुछ भी घोषणा करने के पूर्व इसकी पुरी प्लानिंग होनी चाहिए, कि कितने दिन में क्या कर सकते हैं? ऐसा नहीं कि 5 वर्ष में बुलेट टेªन दौड़ा देंगे, साहब पहले जो टेªन चल रहे हैं, उसें ही हम अच्छे से नहीं चला पा रहे हैं, हमारे पास रूपये की कमी है तो फिर बुलेट टेªन हेतु अलग से संसाधन और रूपये कहां से आयेंगे?


प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना:-

आपने पूर्ववर्ती सरकार से ज्यादा सड़क प्रतिदिन के हिसाब से बनाने की घोषणा की आपका स्वागत है। अब आपने इससे भी ज्यादा तेज गति से कार्य करने का संकल्प भी ले लिया है और इस मद हेतु राशि आपने विगत वर्ष के बराबर रखी है बात साफ है कि राज्यों पर इसका भार पड़ेगा, राज्य सड़क निर्माण हेतु कर्ज लेंगे। आपने सड़क निर्माण हेतु केन्द्र व राज्य का अनुपात भी बढ़ाया है चलिये इसे किनारे करते हैं। किन्तु मेरी समझ में जो बात आती है वह यह है कि केन्द्र सरकार सभी राज्यों को इस मद से सड़क निर्माण हेतु रूपये उपलब्ध कराती है, कई राज्य ऐसे हैं जो कि उक्त राशि पुरी खर्च नहीं कर पाते, इसे ध्यान में रखते हुए यह तय किया जाना चाहिए कि राज्यों के परफार्मेंस के आधार पर राशि उन्हें उपलब्ध करायी जाये और जो राज्य पुरी राशि खर्च कर सड़क निर्माण में प्रगति ला रहे हैं, उनके राशि आवंटन के अनुपात को बढ़ाया जाये ताकि योजना में उपलब्ध रूपये का सही खर्च हो सके और सरकार कोई भी राज्य सरकार कार्य में ढिलाई न करें।


राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा एवं सहायता कार्यक्रम:-

इस मद में आपने विगत वर्ष के बराबर राशि का प्रावधान किया है, जिस गति से महंगाई दर बढ़ रही है, लोगों के रोजगार छीन रहे हैं साथ ही नोट बंदी के बाद कई समस्या आयी है उसे ध्यान में रखते हुए सामाजिक सुरक्षा पेंशन की रकम को बढ़ाने की भी आवश्यता है साथ ही सामाजिक सुरक्षा पेंशन हेतु 2011 के जनगणना को आधार बनाये जाने की आवश्यकता है जिससे की अधिक से अधिक लोग योजना से लाभांवित हों, जिन्हें पैसा नहीं मिल रहा है योजना का लाभ पाने के योग्य हैं किन्तु 2011 की जनगणना रिर्पोट को आधार नहीं बनाने के कारण उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है, इस पर भी बदलाव लाने की सरकार को आवश्यकता है यदि इस पर कार्य किया गया तो यह बजट कम होगा और बजट की आवश्यकता होगी और आज नहीं तो कल इसे करना ही पड़ेगा, इस लिहाज से सरकार को इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम:-

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम मद में आपने विगत वर्ष की तुलना में इस वर्ष केवल 50 करोड़ रूपये बढ़ाये हैं, अब ऐसे में मेरा यह प्रश्न है कि वर्तमान में स्वच्छता अभियान के तहत् आपकी सरकार लोगों को घर-घर शौचालय बनाना अनिवार्य कर रही है और इसके लिये प्रयास तेजी से चल रहे हैं, अभी भी लगभग 50 प्रतिशत से भी अधिक ग्रामों की स्थिति यह है कि प्रत्येक घर तक पेयजल एवं अन्य उपयोग हेतु जल के पहुंचने की सुविधा नहीं है। ऐसे में आपने पाईप द्वारा गांव के घरों तक जल पहुंचाने की बात तो की है किन्तु उसके लिये राशि प्रावधान नहीं है। ऐसे में पेयजल अभियान और स्वच्छ भारत अभियान के तहत् शौचालय का कार्य दोनों प्रभावित होंगे और खासकर गर्मी के दिनों में इन ग्रामों में शौचालय केवल देखने भर को होगा और उसका उपयोग नहीं होगा, क्योंकि जल की उपलब्धता 50 प्रतिशत से भी अधिक ग्रामों के घरों में नहीं है।


प्रधानमंत्री कौशल विकास, मुद्रा योजना एवं अन्य:-

इस मद हेतु आपने विगत वर्ष की तुलना में एक हजार करोड़ एक लगभग राशि बढ़ाई है। किन्तु इस योजना की सच्चाई यह है कि बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 25000 रूपये मुद्रा योजना के तहत् लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं, बड़ी रकम काफी कम लोगों को मिल रहा है। वहीं प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में जितने भी लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसका 10 प्रतिशत लोगों को भी रोजगार प्रशिक्षण एवं टेªड के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है। उदाहरण के लिये यदि आपने किसी को कम्प्युटर आॅपरेटर की टेªनिंग उपलब्ध करायी और आपके प्लेसमेंट से उसे 4000से 6000 रूपये की नौकरी मिल गई। ठीक है आपके प्रशिक्षण से 100 प्रतिशत प्लेसमेंट हुई, किन्तु सच्चाई यह है कि यदि वहीं व्यक्ति मजदूरी का कार्य करे तो उससे अधिक पैसा कमायेगा, क्योंकि अब मजदूरी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 250 रूपये प्रतिदिन एवं शहरी क्षेत्रों में 300 रूपये तक चल रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री कौशल योजना के तहत् उपलब्ध कराये जा रहे प्रशिक्षण और प्लेसमेंट के बाद युवाओं में काफी आक्रोश है और जाॅब छोड़ कर वापस घर आ रहे हैं। यदि यथार्थ पर रिर्पोट चाहिए तो छ.ग. का रिर्पोट हासिल किया जा सकता है।


फसल बिमा:-

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और नोटबंदी के बाद कृषकों के ऋण माफी को लेकर किसान काफी आशांवित थे कि शायद अब बजट के दौरान इसको लेकर एक बड़ी घोषणा हो सकती है, किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। हां आपने कुछ राशि का प्रावधान कृषि ऋण माफी हेतु किया है, लेकिन वे कब, क्यों और किसके लिये हैं, भविष्य के गर्त में है। किन्तु फसल बीमा हेतु विगत वर्ष की तुलना में 4000 करोड़ कम राशि का प्रावधान करना समझ से परे है। एक ओर आप 5-10 वर्षों में किसान की आय को दुगनी-तिगुनी करने की बात करते हैं, दूसरी ओर बजट में राशि का प्रावधान नहीं करते आखिर इन सब के लिये राशि कहां से आयेगी अथवा किसानों की आय बढ़ाने हेतु कोई योजना है तो वह क्या है?

कुल मिलाकर देखा जाये तो मुझे जो लगता है वह यह है कि सरकार नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था को बैलेंस करने के उद्देश्य से कुछ करने का प्रयत्न करना चाह रही है, किन्तु वह हमेशा ऐसा प्रयास करती है जिससे आमजनों को कोई होता नहीं दिख रहा है, कई मद में राशि की बढ़ोत्तरी भी हुई है, सरकार ने स्वयं माना है जीडीपी दर घटेगी ऐसे में जो राशि कागज के पन्नों में दिखाये गये हैं, खर्च करने के लिये वह कहां से आयेंगे। जीडीपी दर घटने का साफ इशारा है आपके आय में कमी, उत्पादन में कमी, जब यह स्थिति बनेगी ऐसे में आपको खर्च करने हेतु राशि कहां से आयेगी, समझ से परे है। खैर अब धिरे-धिरे जब पुरी बजट पर चर्चा होगी तो कई चीजें खुल कर निकलेंगी, किन्तु वर्तमान में जो चिजें दिख रही हैं वह साफ इशारा करती है कि अभी अर्थव्यवस्था को लेकर और भी विकट स्थिति देश में देखने को मिल सकती है।article-image

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