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स्वच्छता अभियान कुछ इस तरह से

12 जनवरी 2017

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पूर्व से ही निर्मल भारत अभियान के नाम से यह योजना संचालित थी, किन्तु तब शौचालय बनवाने एवं अन्य कार्य के लिये जबरदस्ती नहीं किया जा रहा था। देश में नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आयी उसने स्वच्छ भारत अभियान को ज्यादा तवज्जों दी और राज्य सरकारों को, राज्य सरकारों ने जिला सरकारों को और जिलाधिशों ने ब्लाॅक अधिकारियों को यह निर्देश दे डाले कि हर घर में शौचालय आवश्यक है, एक तिथि तय करके कि इतने दिनों में गांव को खुले शौच मुक्त कर देना है, जिसे अंग्रेजी में ओडीएफ ग्राम के नाम से पुकारा जाता है। सरपंचों पर दबाव डाला गया, सरपंचों ने साहुकारों से व्यापार ियों से कर्ज लेकर अपने गांवों में घर-घर शोचालय बनवा दिया और बनवा रहे हैं। जिन सरपंचों ने अथवा पंचायतों ने ऐसा नहीं किया वहां पंचायत की मुलभुत की राशि रोक दी गई, 11वें वित्त की राशि रोक दी गई है और कहते हैं कि हम सारे कार्य देशहित में कर रहे हैं। मेरा सीधा सा सवाल है पंचायत का जो जायज हक है मुलभुत की राशि पर उसका हक है, 11वें वित्त की राशि पर हक है लेकिन शौचालय नहीं बना तो आपने राशि नहीं दिया। हुजूर जिन ग्राम पंचायतों ने 100 प्रतिशत घरों में शौचालय बनवा लिया, उन्होंने कौन-सा तीर मार लिया। घर-घर पानी की उपलब्धता नहीं है, कई स्थानों पर यह स्थिति है कि लोग पेयजल हेतु पानी किसी तरह इंतजाम करके घर चलाते हैं, वहां पर शौचालय के लिये पानी क्या मोदी सरकार द्वारा, राज्य की सरकार द्वारा और जिला प्रशासन एवं ब्लाॅक अधिकारियों द्वारा आसमान से बरसाये जायेंगे। चलिये ठंड के दिनों में तो किसी तरह स्थिति को काबु में कर लिया जायेगा, किन्तु गर्मी के दिनों में जब लोगों को कई किलोमीटर का सफर तय करके पेयजल एवं अन्य कार्य हेतु पानी जुटाना पड़ता है तब इन शौचालय में पानी कहां से आयेंगे। समझ में नहीं आता है यह सरकार क्या करना चाहती? मित्रों/भाई,बहनों अच्छा होता ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय की बात की जाती हर मुहल्ले में एक सामुदायिक शौचालय का निर्माण होता, जल की व्यवस्था हेतु ट्यूबवेल अन्य माध्यम लगाये जाते, लोगों को शौचालय के उपयोग के लिये जागरूक किया जाता तथा ग्रामीण स्तर की निगरानी समिति होती, कम कीमत पर एक अच्छी व्यवस्था को लागू किया जा सकता था। किन्तु सरकार का ध्येय केवल इतना है कि बस हमारी योजना लागू होनी चाहिए, चाहे उसके लिये सरकारी कर्मचारी और अधिकारी गुण्डागर्दी करें या फिर कुछ भी करें। प्रशासनिक गुण्डागर्दी तो इसी को कहते हैं कि आप पंचायतों से जबरन शौचालय बनवाने उनके मुलभुत की राशि रोक लेते हैं, 11वें वित्त की राशि से विकास कार्य की स्वीकृति नहीं मिलती। लेकिन फिर भी यदि इस सच्चाई को सामने लाया जाये तो लोग या तो देशद्रोही घोषित कर देते हैं या फिर नक्सल और आतंकी विचारधारा का। किन्तु जो सरकार तुगलकी फरमान की तरह चाहे जो हो जाये अपने आदेश को प्रशासन का गलत तरिके से उपयोग करके मनवाती है, वह सरकार क्या है, असली गुण्डागर्दी तो प्रशासन के लोग कर रहे हैं। भईया स्वच्छता होना चाहिए, हम भी स्वच्छता के पक्षधर हैं, किन्तु इसके लिये यथार्थ के धरातल पर यहां की आवश्यकता और उपलब्धता को ध्यान में रखकर योजना बनायईये, तो सभी हाथों हाथ लेंगे, अन्यथा शौचालय तो बन जायेंगे, शौचालय घर में बैठक लोग खाना खायेंगे और शौच के लिये वहीं जायेंगे जहां पहले से जाते थे? (भाई कम से कम छत्तीसगढ़ में तो यही हो रहा है, बाकि जगहों पर क्या हो रहा है आप सभी जानें?

पूर्व

रवि कुमार

रवि कुमार

बहुत ही अच्छा लिखा

13 जनवरी 2017

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क्या यही है देश की तकदीर

12 जून 2016
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जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में,पैदा होता देश का तारणहार है,जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में,वोट का करता वह नोट से व्यापार है।क्या वो देश को चला पायेगा,इस तरह के लोभ में मतंगियों को,कौन राह दिखायेगा ?क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,या फिर से पैदा होना पड़ेगा,भगत, आजाद, शिव

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स्वच्छ पर्यावरण हेतु मजबुत इच्छाशक्ति की आवष्यकता : अंचल ओझा

23 जून 2016
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पाॅलिसी निर्माण में सरकार की अह्म भूमिका होती है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को लेकर बात की जा रही है, शुद्ध, स्वच्छ एवं स्वस्थ्य पर्यावरण को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है। भारत के परिपेक्ष्य में मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि पर्यावरण को

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निर्भया का पत्र आपके नाम

23 जून 2016
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निर्भया का पत्र आपके नाम- अंचल ओझा, अंबिकापुरलोग कहते हैं मुझे आज़ादी ज्यादा मिल गई, इसलिये बिगड़ गई हूँ।लोग कहते हैं मैं छोटे कपड़े पहनती हूँ, इस लिये बदचलन हूँ। पड़ोस के काका ने भाई से कहा आजकल तेरी बहन मोबाईल पर ज्यादा बात करती है, सम्हालो नहीं तो हाथ से निकल जायेगी। पड़ोस में चर्चा होती है की बेटी को

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स्वच्छता अभियान कुछ इस तरह से

12 जनवरी 2017
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खादी और चरखा विचारधारा की लड़ाई

14 जनवरी 2017
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खादी और चरखा दोनोें ही महात्मा गांधी के पर्याय माने जाते हैं। राजनीति के चश्में को यदि किनारे कर दिया जाये, कांग्रेस और भाजपा की सोच पर यदि निष्र्कष निकाला जाये तो मुझे जहां तक लगता है, कि हां कम से कम कांग्रेस ने गांधी को मिटाने या हटाने का प्रयास नहीं किया। उनके ब

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क्या हिन्दू धर्म खोखला और कमजोर है ?

16 जनवरी 2017
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डॉ पाल दिनाकरन प्रार्थना सभा : फोटो धर्म इतना कमजोर कैसे है कि वह मात्र एक प्रार्थना से बदल दिया जाता है, या फिर आपके छुआ-छूत का भेदभाव इतना बड़ा है कि लोगों को दूसरी ओर खिंचता है, चाहे जो भी हो। किन्तु पिछले तीन दिनों में जो कुछ भी सरगुजा संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर में घटित हुआ। उसने कहीं न कहीं स

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बेपटरी हुई बजट?

1 फरवरी 2017
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सरकार का बजट आ गया है, उम्मीद से बहुत दूर और निराशाजनक बजट कई मायनों में है, एकाध-दो प्वाइंट को छोड़ दिया जाये, सरकार के साहस को दरकिनार कर दिया जाये तो एक-दो प्रमुख बातों के अलावा मुझे जो लगता है बजट से जनता को जितनी उम्मीदें थी, उस मुताबिक कुछ भी नहीं है, खासकर मजदूर, गरीब, किसान, युवा और महिला वर्

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