रात के सन्नाटे में मुंबई से लोना वला जा रही दो गाड़ियां एक दूसरे को फॉलो कर रही थी. पुलिस की गाड़ी में मेजर सुमित छह फुट के मूंछों वालअफ़सर, काली आधी बांह की कमीज़ और जींस पहने बैठे थे. वो ही हेडफोन से लोकेशन को सुन कर इशारे में अपने दोस्तो पुलिस अफसर विजय को रास्ता बता रहे थे.
''भाभी इधर मुंबई आई थी तभी बताना चाहिए था, '' विजय ने सुमित से पूंछा. वो पुलिस जीप में पुलिस यूनिफॉर्म में थे.
मेजर सुमित सोच रहे थे की क्या बताएं, अवनि उनकी कौन है. वो अपने बेटे सोनू के लिए ज्यादा परेशांन था.
लाल रंग की पुरानी सी सेंट्रो को पुलिस जीप सेफ डिस्टेंस से फॉलो कर रही थी. सेंट्रो का लुक पुराण था लेकिन इंटीरियर बिलकुल नया था. डैशबोर्ड की जगह स्क्रीन थी जो चलता फिरता ऑफिस कम्प्यूटर था. ड्राइविंग सीट पर बैठा आरव छोटे कद का दस पंद्रह किलो ओवर वेट वकील था.जिसका ध्यान स्क्रीन पर लोकेशन देखने, फॉलो करती पुलिस जीप और बाजू की सीट पर सो रहे तेरह माह के बच्चे सोनू पर भी था.
चिंता में उसने चविंगगम चबाने की रफ़्तार और तेज कर दी थी. सोनू अगर जग जायेगा तो चुप कौन करवाएगा.
" अवनि तू किधर गई " आरव बोल रहा था और भयभीत भी हो रहा था.
कुछ ही दुरी पर वो नारियल के पंक्तिवद्ध पेड़ों के पास की सड़क पर आ गए थे. कोई प्राइवेट फार्म घर लग रहा था. पुलिस की गाड़ी का बिना वॉरेंट दबिश का संकोच विजय के मन में था. वो रुकने को हुआ लेकिन अवनि की जिंदगी के सवाल पर वो लोग आगे बढ़ते गए.
जिस सेंट्रो कार का वो पीछा कर रहे थे वो नहीं दिख रही थी. सुमित ने जीप से छलांग लगाई और पिस्तौल सादे