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अपनी वास्तविक इच्छाओं को जांचे और परखे

31 अक्टूबर 2017

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इच्छा, आकांक्षा मनुष्य की प्रेरणा स्त्रोत है इच्छाएं है तो मनुष्य कर्म की और अग्रसर होता है | इच्छाएं नया जोश नई प्रेरणा का संचार मनुष्य के अंदर करने के साथ-साथ समाज में उसका स्थान भी निश्चित करती है लेकिन जब ये इच्छाएं आकाँक्षायें विकृत हो जाती हैं तो सम्पूर्ण जीवन को अशाँति तथा असन्तोष की आग में जलने के लिए फेंक देती हैं। वर्तमान समय में आज ये ही स्थिति हम समाज में देखते है| आज हम सभी लोगों का जीवन संतोष तथा शाँति से वंचित हो गया है। जीवन संघर्ष इतना बढ़ गया है कि इस पर बैठ कर दो मिनट सोच-विचार करने का समय भी नहीं मिलता। दिन-रात भागते, दौड़ते, सुख-सन्तोष की सम्भावनायें लाने के लिए कोई प्रयत्न अछूता नहीं छोड़ते फिर भी विकल तथा क्षुब्ध ही रहना पड़ रहा है। जीवनभर शांति और सुख के दर्शन ही नहीं होते। जहाँ और जिधर सुख-शाँति के लिए जाते हैं, उधर प्रतिकूल परिणाम ही हाथ आते हैं। आजीवन स्वयं को खपाते रहने, श्रम करते रहने, जीवन-रस सुखाते रहने और दौड़-धूप करते रहने पर भी रिक्तता, खिन्नता तथा सन्ताप की प्राप्ति मनुष्य के लिए निःसन्देह बड़े खेद तथा चिन्ता का विषय है। इसके आधार-भूत कारण की खोज निकालना, नितांत आवश्यक हो गया है। इस असफलता पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने से तो इसी परिणाम पर आना होता है कि हमें लक्ष्य-पथ भटका देने में हमारी स्वयं की विकृत आकाँक्षाओं का गहरा हाथ है। जो आकाँक्षायें जीवन की प्रेरणा स्त्रोत हैं वही विकृत हो जाने पर प्रवंचक बन कर जीवन के सहज तथा अभीष्ट पथ से हमें इधर-उधर ले जाकर अशाँति तथा असन्तोष के कंटकाकीर्ण मार्गों पर घसीट रही हैं। निश्चय ही जीवन में अभीष्ट सुख-शाँति पाने के लिए विकृत आकाँक्षाओं को संस्कृत तथा परिष्कृत करना होगा अथवा उन्हें अकल्याणकारी साथियों की तरह छोड़ ही देना होगा। जो प्रेरणा पाप बन कर अपने लिए भयानक हो उठे उसका परित्याग कर देना ही उचित है। विकृत आकाँक्षायें बड़ी भयावनी होती हैं। उनके प्रभाव से शीघ्र ही मनुष्य सत्पथ से भटककर विपथ पर खींचा चला जाता है। उसकी तृष्णा इतनी बढ़ जाती है कि मनुष्य उस बाज पक्षी की तरह मूढ़मति हो जाता है, जो जमीन पर पड़े काँच के टुकड़े में अपना प्रतिबिम्ब देख कर झपटता और उससे टकरा कर आहत हो जाता है। जीवन की वास्तविकता बहुत ही कठोर और कर्कश होती है। इस पर चल कर लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बड़ी ही दृढ़ता तथा सतर्कता एवं धैर्य की आवश्यकता होती है किन्तु स्वार्थपूर्ण विकृत आकाँक्षाओं की माया मनुष्य को इतना कल्पनाशील तथा लोलुप बना देती है कि वह हर ध्येय को नितांत सरल तथा अपने योग्य मान लेता है। इसका फल यह है कि मनुष्य अपनी महत्वाकाँक्षाओं के साथ शीघ्र ही आकाश में उड़ जाता है और शीघ्र ही वेग कम होने से नीचे पृथ्वी पर गिर कर आहत होता और कराह उठता है। जिस सुख-शाँति के लिए उसने उड़ान भरी थी, वह तो मिली नहीं उल्टा अशाँति, पीड़ा तथा असन्तोष का भागी बनना पड़ा। विकृत आकाँक्षाओं का विष बड़ा तीव्र होता है। इसका अभ्यस्त मनुष्य एक अजीब नशे से रह कर जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर ही भागता दौड़ता है और अन्त में अशाँति तथा पश्चाताप के साथ विदा हो जाता है। वास्तविक आकाँक्षायें तो वही कही जायेंगी जिनके पीछे कुछ उद्देश्य, हित, आदर्श, आवश्यकता अथवा उपयोगिता की प्रेरणा मौजूद है। यूँ ही किसी लोभ-लालच अथवा स्वार्थ से प्रेरित होकर ऊट-पटाँग आकाँक्षाओं को पाल लेना कोई बुद्धिमानि नही है? यह तो उसकी कबाड़ी जैसा काम है जो अपने घर में जगह-जगह से उठा कर लायी गयी तमाम निरर्थक और निरुपयोगी वस्तुओं का ढेर लगा लिया करता है। आकाँक्षायें जीवन की प्रेरणा स्त्रोत अवश्य हैं किन्तु उनको समझने, परखने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। अपने हृदय में पालने से पहले अपनी आकाँक्षाओं की परीक्षा कर लेना और यह समझ लेना परम आवश्यक है कि इनमें कोई यथार्थ तथा उपयोगी तत्व भी है अथवा यह केवल वह माया-जाल है जो मनुष्य के सहज सुन्दर जीवन को भुलावे की राहों पर भटका देता है और मनुष्य अपनी सहज शाँति, मानसिक व्यवस्था और बौद्धिक संतुलन खो बैठता है। थोड़ी बहुत आकाँक्षायें सभी में होती हैं। इस संसार में सर्वथा इच्छाशून्य हो सकना सम्भव नहीं है। आकाँक्षायें जीवन का प्रतीक हैं, अग्रसर होने की प्रेरणा हैं। मनुष्य में इनका होना स्वाभाविक ही है। फिर भी अकल्याणकारी इच्छाओं को मनुष्य की स्वाभाविक आकाँक्षाओं में स्थान नहीं दिया जा सकता है। मानिये, यदि कोई चोरी, मक्कारी, लूट-पाट और दूसरों का शोषण करके धन प्राप्त करने की आकाँक्षा करता है, किसी भी अनीति और अन्यायपूर्ण प्रयत्नों से धनाढ्य बनना चाहता है तो क्या उसकी यह आकाँक्षा उचित और स्वाभाविक मानी जायगी? नहीं कदापि नहीं। यह तो आकाँक्षा नहीं है। इसको तो उसकी आसुरी और आततायी वृत्ति ही कहा जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति में स्थान पाने, अपना प्रभाव जमाने की आकाँक्षा रखता है और उसे मूर्तिमान करने के लिये निर्बल एवं असहाय व्यक्तियों को सताता उनको ताड़ना देता है, और इस प्रकार अपना आतंक फैलाता है तो क्या उसकी यह आकाँक्षा उचित कही जायेगी? यह तो एक मात्र उसका पागलपन ही माना जायेगा। समाज में स्थान पाने, लोगों को प्रभावित करने के लिये तो सेवा, परोपकार और सहयोग, सहायता एवं सद्-व्यवहार तथा सदाचरण का ही मार्ग निर्धारित किया गया है। इससे विपरीत मार्ग पर चल कर उद्देश्य की पूर्ति के लिये प्रयत्नशील होने वाला व्यक्ति तो समाज का शत्रु ही माना जायेगा। मनुष्य की वे आकाँक्षायें ही वास्तविक आकांक्षायें हैं, जिनके पीछे स्वयं उसका तथा समाज का हित सन्निहित हो। जो आकाँक्षायें समाज अथवा अपनी आत्मा की साधक न होकर बाधक होती हैं, वे वास्तव में दुष्प्रवृत्तियाँ ही हुआ करती हैं, जो लोभ और मोहवश आकाँक्षा जैसी जान पड़ती हैं। विनाशात्मक आकाँक्षायें रखने वाले व्यक्ति रावण, कंस, दुर्योधन जैसे दुष्ट महत्वाकाँक्षियों के ही संक्षिप्त संस्करण होते हैं जो जीवन में एक बूँद भी सुख-शाँति और सन्तोष नहीं पा सकते और मरणोपरान्त युग-युग तक धिक्कारे जाते रहते हैं। आज हमारी अशाँति, असन्तोष और सन्ताप से भरी हुई जिन्दगी का मुख्य कारण हमारी विकृत आकाँक्षायें ही हैं, जो लोभ की मरु-मरीचिका और मोह की मृग-तृष्णा में भटकती हुई उस पथ पर नहीं आने देतीं, जिस पर स्वर्गीय शाँति और सन्तोष के दर्शन हो सकते हैं। अपनी आकाँक्षाओं की परीक्षा कीजिये, उन्हें सत्य एवं यथार्थ की कसौटी पर परखिये, हित-अहित की तुला पर उनका जाँचिये और जो भी बाधक आकाँक्षायें हो उन्हें तुरन्त अपनी मनोभूमि से निकाल बाहर करिये। उचित, उपयोगी और रम्य, रंजक आकाँक्षाओं को पालिये उनकी पूर्ति के लिये अबाध प्रयत्न एवं अखण्ड पुरुषार्थ करिये, सुन्दर, शिष्ट और सुशील मार्ग का अवलम्बन कीजिये और तब देखिये कि आपके जीवन में स्थायी और अक्षय सुख-शाँति का समावेश होता है या नहीं?

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' की अन्य किताबें

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रचनाएँ
पारस... छूते ही सोना कर दे
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पाठकों को समर्पित शब्द गुच्छ...
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युवाओं का मानसिक तनाव राष्ट्र प्रगति में अवरोध (लेखक :- पंकज “प्रखर ” कोटा (राज.)

29 सितम्बर 2016
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युवाओं का मानसिक तनाव राष्ट्र प्रगति में अवरोध (लेखक :- पंकज “प्रखर ” कोटा (राज.) कुछ दिन पहले एक नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला जिसमे एक पात्र दुसरे पात्र से पूछता है की जीवन क्या है तो दुसरे पात्र ने उत्तर दिया “हमारी सबसे पहली और सबसे अंतिम सांस के बीच का जो समय है वो जीवन है ” जीवन के प्रत

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भावनाओं में घुला हुआ विष और अमृत ( लेखक :- पंकज”प्रखर”, कोटा ( राज.) )

30 सितम्बर 2016
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लेख क :- पंकज”प्रखर”भावनाओं में घुला हुआ विष और अमृतइस लेख का प्रारम्भ तुलसी बाबा की एक चौपाई से करता हूँ “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तेसी” इस चौपाई का सार सीधे शब्दों में ये है की मनुष्य जैसा सोचता है वैसी ही सृष्टि का निर्माण वो अपने आस-पास करने लगता ह

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गांधी - ईश्वरीय चेतना का एक अवतार

1 अक्टूबर 2016
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गांधी - ईश्वरीय चेतना का एक अवतार लेखक :- पंकज " प्रखर " शास्त्र कहते है की जब भी धरती पर अनाचार,अत्याचार,व्यभिचार,शोषण बढ़ता है तथा लोग आसुरी शक्तियों द्वारा सताये व परेशान किये जाते है, जब कभी मनुष्य अपने देवीय गुणों को छोड़ कर आसुरी प्रवृत्ति की और आकर्षित होने लगता है उस समय ईश्वर महानायक के रू

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विद्यार्थी जीवन में माता पिता की भूमिका (लेखक :- पंकज "प्रखर " कोटा , राज.)

15 अक्टूबर 2016
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विद्यार्थी जीवन में माता पिता की भूमिका लेख क :- पंकज " प्रखर " विद्यार्थियों के जीवन में सबसे बड़ी भूमिका में होते है मात पिता ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है की वे अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं और अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन से उनमे आत्मविश्वास का दीपक प्रज

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राम मंदिर या बाबरी मस्जिद (लेखक :- पंकज" प्रखर" कोटा, राज. )

17 अक्टूबर 2016
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गंगा जमुना संस्कृति का समन्वय करने वाला ये देश जिसके गौरव का लोहा समूचा विश्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानता चला आ रहा है| ये देश सूफियों और हिन्दू धर्म गुरुओं की कर्म भूमि रहा है ये देश उन महा पुरुषों की धरोहर है,जिन्होंने इसे अ

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धन उपार्जन और आपका विवेक

4 नवम्बर 2016
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धन उपार्जन और आपका विवेकपंकज “प्रखर” पिछले दिनों अमीरी को इज्जत का माध्यम माना जाता रहा है।इज्जत पाना हर मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है। इसलिये प्रचलित मान्यताओं के अनुसारहर मनुष्य अमीरी का इच्छुक रहता है, ताकि उसे दूसरे लोग बड़ाआदमी समझें और इज्जत करें। अमीरी सीधे रास्ते नहीं आ सकती। उसके लिए टेड़े र

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आरक्षण एक मुद्दा ,लेखक :- पंकज “प्रखर”वरिष्ठ स्तंभकार ,कोटा (राज.)

5 नवम्बर 2016
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आज वर्तमान भारत एक भीषण रोग से ग्रसित है और इस महारोग का नाम है “आरक्षण “ आज समाज में आरक्षण पाने की ऐसी भीषण आंधी चल पड़ी जिसने योग्यता रुपी वटवृक्ष की जड़ों को मूल से हिला दिया है | ये आंधी समूचे जन मानस को झकझोर रही है, आज हर जाति के व्यक्ति के सुर बदले हुए है हर व्यक्ति आरक्षण रुपी बैसाखियों के सह

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श्रेष्ट विद्यार्थी और गौरवशाली राष्ट्र (लेखक :- पंकज “प्रखर”)

14 दिसम्बर 2016
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विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है | इस समय में बने संस्कार, सीखी हुई कलाएँ हमारा भविष्य निर्धारित करती हैं | इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि मनुष्य अपने विद्यार्थी जीवन से ही देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे | इससे वह अपने जीवन को इस प्रकार ढाल सकेगा कि राष्ट्र के प्

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विद्यार्थी को पतन की ओर ले जाती माता पिता की महत्वाकांक्षा

15 दिसम्बर 2016
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लेख क :- पंकज “प्रखर”कोटा (राज.) प्यारे विद्यार्थियों आपके लिए आज का लेख स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन की निम्न पंक्तियों से शुरू कर रहा हूँ ..“असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।जब तक न सफल हो, नींद चैन क

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परिवार का वृद्ध वृक्ष और नयी कोपलें

20 दिसम्बर 2016
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जब हम किसी पुराने पीपल या बरगद के वृक्ष को देखते है तो हमारा हृदय एक प्रकार की श्रद्धा से भर जाता है पुराने वृक्ष ज्यादातर पूजा पाठ के लिए देव स्वरूप माने जाते है इसी प्रकार हमारे घर के वृद्ध वृक्ष हमारे बुजुर्ग भी देव स्वरुप है | जिनकी शीतल छाँव में हम अपने सब दुखों और समस्याओं को भूल कर शांति का

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विश्वेश्वर से स्वामी विवेकानंद बनने तक की यात्रा(जन्म जयन्ती विशेष)

11 जनवरी 2017
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आज 12 जनवरी 2017 में हम स्वामी विवेकानंद की 154 वी जन्म जयन्ती मना रहे है| जिसे हम युवा दिवस के रूप में जानते है| आज से 154 वर्ष पूर्व एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम विश्वेश्वर रखा गया जिसे घर में प्यार से नरेंद्र के नाम से बुलाया जाता था | लेकिन ये बालक अपनी अद्भुत

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गौरवशाली राष्ट्र का गौरवशाली गणतांत्रिक इतिहास

25 जनवरी 2017
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लेखक :- पंकज प्रखर गणतन्त्र दिवस यानी की पूर्ण स्वराज्य दिवस ये केवल एक दिन याद की जाने वाली देश भक्ति नही है बल्कि अपने देश के गौरव ,गरिमा की रक्षा के लिए मर मिटने की उद्दात भावना है | राष्ट्र हित में मर मिटने वाले देश भक्तों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है अपने राष्ट्र से प्रेम होना सहज-स्वाभाविक

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आधुनिकता के इस दौर में संस्कृति से समझौता क्यों

31 जनवरी 2017
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आज एक बच्चे से लेकर 80 वर्ष का बुज़ुर्ग आधुनिकता की अंधी दौध में लगा हुआ है आज हम पश्चिमी हवाओं के झंझावत में फंसे हुए है |पश्चिमी देशो ने हमे बरगलाया है और हम इतने मुर्ख की उससे प्रभावित होकर इस दिशा की और भागे जा रहे है जिसका कोई अंत नही है |वास्तव में देखा जाए तो हमारा स्वयं का कोई विवेक नही है ह

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एक महान सती थी “पद्मिनी”

31 जनवरी 2017
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एक सती जिसने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया उसकी मृत्यु के सैकड़ों वर्ष बाद उसके विषय में अनर्गल बात करना उसकी अस्मिता को तार-तार करना कहां तक उचित है | ये समय वास्तव में संस्कृति के ह्रास का समय है कुछ मुर्ख इतिहास को झूठलाने का प्रयत्न करने में लगे हुए है अब देखिये एक सर

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वाणी की देवी वीणापाणी और उनके श्री विगृह का मूक सन्देश

1 फरवरी 2017
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वसंत को ऋतुराज राज कहा जाता है पश्चिन का भूगोल हमारे देश में तीन ऋतुएं बताता है जबकि भारत के प्राचीन ग्रंथों में छ: ऋतुओं का वर्णन मिलता है उन सभी ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की प्रथ्वी पर जो भी

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राम केवल एक चुनावी मुद्दा नही हमारे आराध्य है

7 फरवरी 2017
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राम केवल चुनावी मुद्दा नही बल्कि हमारे आराध्य होने केसाथ-साथ हमारे गौरव का प्रतीक है | ये देश जो राम के आदर्शों का साक्षी रहा है येअयोध्या जहां राम ने अपने जीवन आदर्शों के लिए न केवल कष्ट सहे बल्कि मनुष्यत्व केश्रेष्ठ गुणों को उसके चरम तक पहुँचाया वो राम आज केवल एक चुनावी मुद्दा है जिसेनेता अपनी–अपन

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वैलेंटाइन डे युवाओं का एक दिवालियापन

13 फरवरी 2017
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लेखक:- पंकज प्रखर प्रेम शब्दों का मोहताज़ नही होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती है, प्रेमी के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है| एक शेर मुझे याद आता है की.... “बात आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है ,जुबां का क्या है ये कभी भी मुकर जाती है| ” इस शेर के बाद आज के

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विद्यार्थी परीक्षाओं से डरें नही बल्कि डटकर मुकाबला करें (लेखक :- पंकज प्रखर)

1 मार्च 2017
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प्रिय विद्यार्थीयों जैसा की आप लोग जानते है की कुछ ही दिनों में बोर्ड की वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने जा रही है ऐसे में आप लोगों के परीक्षा संबंधी तनाव और परेशानियों को दूर करने के लिए मै कुछ नये सकारात्मक सूत्र आपको देना चाहता हूँ, क्योकि अपने इतने वर्षों के शिक्षण काल में मैंने अनुभव किया है की छात

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“अवसर”

5 अप्रैल 2017
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“अवसर” खोजें, पहचाने और लाभ उठायें अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नही मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को

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सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थ

14 मई 2017
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सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थमानव ईश्वर की अनमोल कृति है लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्द गिर्द ही रचा बसा है गीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की क

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स्त्री और नदी का स्वच्छन्द विचरण घातक और विनाशकारी

21 मई 2017
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स्त्री और नदी दोनों ही समाज में वन्दनीय है तब तक जब तक कि वो अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन नही करती | स्त्री का व्यक्तित्व स्वच्छ निर्मल नदी की तरह है जिस प्रकार नदी का प्रवाह पवित्र और आनन्दकारक होता है उसी प्रकार सीमा रेखा में बंधी नारी आदरणीय और वन्दनीय शक्ति के रूप में परिवार और समाज में रहती है|

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न सुख से प्रभावित हों और न दुःख से विचलित

25 मई 2017
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लेखक:- पंकज “प्रखर”कोटा (राजस्थान) मानव जीवन में कठिनाइयों का भी अपना महत्व है| कठिनाइयां हमारी परीक्षा लेती हुई हमारी योग्यताओं को और धारदार कर देती है ज्यादातर लोग कठिनाइयों को अपना दुर्भाग्य मानकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है | इनमे वो लोग विशेषकर होते है जिन्होने सामान्य से निचले स्तर के परिवार

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भारत का महान सम्राट अकबर नही महाराणा प्रताप थे

3 जून 2017
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राजस्थान की भूमि वीर प्रसूता रही है इस भूमि पर ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश की रक्षा में न केवल अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया बल्कि शत्रुदल को भी अपनी वीरता का लोहा मानने पर विवश कर दिया | लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की हमारे देश का इतिहास ऐसे मुर्ख पक्ष

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हिन्दू मुस्लिम समन्वय के प्रतीक कबीर बाबा

9 जून 2017
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आज धर्म के नाम पर एक दुसरे पर छींटाकसी करने वाले तथाकथित हिन्दू और मुसलमान जो शायद ही धर्म के वास्तविक स्वरूप की परिभाषा जानते हो ऐसे समय में उन्हें कबीर जैसे महान व्यक्तित्व के विचारों को पुन: पढना चाहिए | कबीर किसी विशेष पंथ सम्प्रदाय के नही अपितु पूरी मानव जाति के लिए

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“अच्छे दिन आने वाले है” आ गये किसानो के अच्छे दिन

9 जून 2017
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राजनैतिक परिस्थितियाँ इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो गयी है कि देश का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हमारा अन्नदाता किसान आज विकट परिस्थितियों से जुझ रहा है कारण है की वो अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है| क्या ये सरकार इतनी नाकारा हो गयी है की अपना अधिकार मांगने वाले किसान पर गोली दाग

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“नज़रे बदलो नज़ारे बदल जायेंगे”आपकी सोच जीवन बना भी सकती है बिगाढ़ भी सकती है

22 जून 2017
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सकारात्मक सोच व्यक्ति को उस लक्ष्य तक पहुंचा देती है जिसे वो वास्तव में प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसके लिए एक दृण सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है| जब जीवन रुपी सागर में समस्यारूपी लहरें हमे डराने का प्रयत्न तो हमे सकारात्मकता का चप्पू दृण निश्चय के साथ उठाना चाहिए

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“कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंडे बन माहि " समाधान स्वयं में ही छिपा हुआ है

22 जून 2017
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आज के इस आपाधापी के युग में हर व्यक्ति अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है कोई न कोई ऐसी समस्या हर व्यक्ति के जीवन में है जिससे पीछा छुडाने के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है लेकिन विडम्बना ये है की जैसे ही वो एक समस्या से पीछा छुड़ाता

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‘प्रेम’ और उसका अनुभव

8 अगस्त 2017
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कबीरा मन निर्मलभया जैसे गंगा नीरपीछे-पीछे हरिफ़िरे कहत कबीर कबीर||यदि मनुष्य कामन निर्मल हो जता है तो उसमे पवित्र प्रेम उपजता है वो प्रेम जिसके वशीभूत होकर स्वयंईश्वर भी अपने प्रेमी के पीछे दौड़ने के लिए विवश हो जाते है| ये गोपियों कानिस्वार्थ, निर्मल प्रेम ही था जिनकी याद में बैठकर द्वारिकाधीश अपने म

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‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भाव रखने वाली एकमात्र संस्कृति ‘भारतीय संस्कृति’

18 अगस्त 2017
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हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है | भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि हैं। अब जबकि हर एक की जीवन शैली आधुनिक हो रही है भार

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तीन तलाक का खेल ख़त्म हुआ

17 सितम्बर 2017
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मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के लिए आज सोने का सूरज उगा है ये तारीख और ये फैसला इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा |क्योंकि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का उद्घोष करने वाले इस भारत देश में अब हमारी मुस्लिम बहनों को भी आज समाज में बराबरी का दर्जा मिला है | सुप्रीम कौर्ट के तीन तलाक

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तकनीकी के अग्रदूत राजीव गांधी का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण

17 सितम्बर 2017
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हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी का कहना था कि देश के प्रत्येक व्यक्ति तक शिक्षा का प्रसार होना चाहिए| यदि प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा तो एक श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण होगा| श्री गांधी हमारे देश में तकनीक लाने वाले पहले व्यक्ति थे जिन्होंने न केवल भारतीय जनता को तकनीकी से रूबरू

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नारी सृष्टि निर्माता के रूप में

23 सितम्बर 2017
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आज के लेख की शुरुआत दुर्गा सप्तशती के इस श्लोक से करता हूँ इसमें कहा गया है...विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः, स्त्रियाः समस्ताः सकला जगत्सु।त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः॥ - दुर्गा सप्तशती अर्थात्:- हे देवी! समस्त संसार की सब विद्याएँ तुम्हीं से निकली है तथा सब स्त्रियाँ तुम

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‘कन्याभ्रूण’ आखिर ये हत्याएँ क्यों?

28 सितम्बर 2017
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बेटा वंश की बेल को आगे बढ़ाएगा,मेरा अंतिम संस्कार कर बुढ़ापे में मेरी सेवा करेगा| यहाँ तक की मृत्यु उपरान्त मेरा श्राद्ध करेगा जिससे मुझे शांति और मोक्ष की प्राप्ति होगी और बेटी, बेटी तो क्या है पराया कूड़ा है जिसे पालते पोसते रहो उसके दहेज की व्यवस्था के लिए अपने को खपाते रहो और अंत में मिलता क्या है

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तपस्या और प्रेम की साकार प्रतिमा है “नारी”

30 सितम्बर 2017
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पग तल में।पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥प्राचीन समय से स्त्रियों के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग होता चला आ रहा है जैसे लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, दुर्गा देवी आदि नारी के साथ जुड़ने वाले इस शब्द का प्रयोग आकस्मिक रूप में नही हुआ है अपितु य

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अपनी वास्तविक इच्छाओं को जांचे और परखे

31 अक्टूबर 2017
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इच्छा, आकांक्षा मनुष्य की प्रेरणा स्त्रोत है इच्छाएं है तो मनुष्य कर्म की और अग्रसर होता है | इच्छाएं नया जोश नई प्रेरणा का संचार मनुष्य के अंदर करने के साथ-साथ समाज में उसका स्थान भी निश्चित करती है लेकिन जब ये इच्छाएं आकाँक्षायें विकृत हो जाती हैं तो सम्पूर्ण जीवन को अशाँति तथा असन्तोष की आग में ज

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आत्मकेंद्रित होते युवा और समाज की आवश्यकता

13 दिसम्बर 2017
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इस तकनीकि के युग में आजकल के युवा इतने आत्मकेंद्रित हो गये है की उन्हें समाज या अपने आसपास के लोगों से मानो कोई सरोकार ही नही रह गया है| इसलिए आज घर के बुजुर्गों को अपने युवा हो रहे किशोरों से ये कहते सुनते है कि समाज में उठा बैठा करो, लोगों से मिला जुला करो, लोगों के यहाँ आया जाया करो थोड़े सोशल (सा

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अकेलापन

15 दिसम्बर 2017
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प्रमोद ने माइक्रोवेव में खाना गरम किया और और डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाने लगा | जाने क्या बात थी कुछ महीनों से उसे अकेलापन खलने लगा था | वह अपने जीवन के बारे में सोचने लगा जवानी में उसने अपने जीवन में कभी कोई कमी महसूस नही की थी, वह अपने में ही मस्त था| उसे लगता था की जीव

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यथा सोच तथा सृष्टि

30 अप्रैल 2018
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इस लेख का प्रारम्भ तुलसी बाबा की एक चौपाई से करता हूँ “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तेसी” इस चौपाई का सार सीधे शब्दों में ये है की मनुष्य जैसा सोचता है वैसी ही सृष्टि का निर्माण वो अपने आस-पास करने लगता है| संसार में अनेक प्रकार के जीव पाए जाते है,जिनमे मानव जीवन को सबसे श्रेष्ठ माना जाता

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विवाह .... एक सामाजिक संस्कार

3 मई 2018
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आज के समय में जब किसी विवाह योग्य युवा से विवाह प्रस्ताव अथवा विवाह करने की बात की जाती है तो वो बिदक जाता है और ये कहकर टालने की कोशिश करता है की अभी इतनी जल्दी क्या है ,अभी मेरा जीवनयापन का माध्यम सही नही है | इसका कारण जब जानने की कोशिश की गयी तो अपने नजदीकी मित्रों और रिश्ते दारों से युवा वास्तव

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कनाडा में आयोजित कार्यक्रम का आदरणीय डॉ.मोनिका शर्मा (हैदराबाद) के निर्देशन में राजस्थान में सफल आयोजन करने हेतु " विश्व हिंदी संस्थान कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन" कनाडा की ओर से प्राप्त हुआ सम्मान आयोजक आदरणीय प्रो. सरन घई जी एवं डॉ. मोनिका शर्मा ,हैदराबाद का हृदयतल आभार।

25 मई 2018
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कनाडा में आयोजित कार्यक्रम का आदरणीय डॉ.मोनिका शर्मा (हैदराबाद) के निर्देशन में राजस्थान में सफल आयोजन करने हेतु " विश्व हिंदी संस्थान कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन" कनाडा की ओर से प्राप्त हुआ सम्मान आयोजक आदरणीय प्रो. सरन घई जी एवं डॉ. मोनिका शर्मा ,हैदराबाद का हृदयतल आभार।

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राष्ट्र स्तरीय सम्मान से पुरस्कृत हुए कोटा के पंकज 'प्रखर

25 मई 2018
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करनाल, हरियाणा में आयोजित राष्ट्र स्तरीय सम्मान समारोह में कोटा राजस्थान के युवा साहित्यकार पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' को उनके साहित्य लेखन के लिए दिया गया प्रस्तुत कार्यक्रम के संयोजक और एंटी करप्शन फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र अरोड़ा ने बताया कि ये समारोह शहीद पुलिस कर्मियों को समर्पित था ।

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वृक्षों का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व

16 जून 2020
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वृक्षों का आध्यात्मिकएवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से विशेष महत्व है ये जहां विभिन्न त्योहारोंतिथियों पर पूजे जाते हैं वहीं विज्ञानइनके फल, फूल, मूल एवं छाल का प्रयोग कर नित नए अनुसंधान करनेमें लगा हुआ है जिनसे की अनेक जानलेवाबीमारियों से हमारी रक्षा हो सके।मानव शरीर में शायद हीऐसा कोई रोग हो जिसक

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मंथरा के ऋणी….. श्रीराम

23 मई 2021
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‘मंथरा’ येशब्द सुनते ही हमारे सामने एक अधेड़ उम्र की कुरूप,घृणित किन्तु रामायण की अत्यंत महत्वपूर्ण स्त्री की छवि बन जाती है जिसकानाम था ‘मंथरा’। इस पात्र ने हमारे मन मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा है कि आजभी जब हम किसी नकारात्मक स्वभाव वाली महिला को देखते हैं तो के

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भारतीय संस्कृति और उसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता

23 मई 2021
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विश्वकी सर्वोत्कृष्ट आदि,अनादिऔर प्राचीनतम संस्कृति है भारतीय संस्कृति यह इस भारत भूमि में रहने वाले हरभारतीय केलिए बड़े गौरव का विषय है परंतु ये बड़े दुख का विषय है कि आज इस पावनपवित्र संस्कृति के ऊपर विदेशी संस्कृतियाँ घात लगाए बैठी हैं और इस संस्कृति की निगलनेका कोई मौका

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देवर्षि नारदजयंती (विशेष लेख)

23 मई 2021
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देवर्षि नारदभगवान के जितने प्रेमी भक्त हैं,भगवान भी नारद जी के उतने ही बड़े भक्त हैं।लेकिनआज की पीढ़ीनारद जी का जिस तरह से चरित्र-चित्रण करती है, उससे उनकीछवि उपहास के पात्र और चुगलखोर की बन गई है जो अतिनिंदनीयहै। आज आवश्यकता है कि देवर्षिनारद का वास्तवित चरित्र समाज के सामने आए। प्राणिमात्र के कल्याण

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मजबूर हूँ ,मैं मज़दूर हूँ

23 मई 2021
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‘मज़दूर’ एक ऐसा शब्द जिसके ज़हन में आते ही दुख, दरिद्रता, भूख, अभाव, अशिक्षा, कष्ट, मजबूरी, शोषण औरअभावग्रस्त व्यक्ति का चेहरा हमारे सामने घूमने लगता है।आप जब भी किसी पुल सेगुज़रें तो ये ज़रूर सोचें कि ये न जाने किन मज़दूरों के कंधों पर टिका हुआ है, जब आप नदियोंके सशक्त और मजब

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