ज़िंदगी हर पल एक चलचित्र की तरह अपना रंग रूप बदलती रहती है।है न , जैसे चलचित्र में एक पल सुख का होता है तो दुसरा पल दुःख का ,फिर अगले ही पल कुछ ऐसा जो हमे अचम्भित कर जाता है और एक पल के लिए हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि "क्या
" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ढहरे और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके है ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके है। आप के
"बेटियाँ "कहते है बेटियाँ लक्ष्मी का रूप होती है ,घर की रौनक होती है। ये बात सतप्रतिस्त सही है। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता कि बेटियाँ ही इस संसार का मूल स्त
नूतन को पुरातन से हमेशा शिकायत रही है, आज भी है। इसके बावजूद कि पुरातन से ही नूतन का उद्भव हुआ है। मजेदार बात यह है कि नूतन को यह बात पता है, इसके बावजूद भी..। बात अगर केवल शिकायत तक सीमित रहती तो भी ठीक था, बात अब दोषारोपण तक पहुंच चुकी है। दोषारोपण इसलिए क्योंक
आज कल के दौड के टूटते बिखरते रिश्तो को देख दिल बहुत वय्थित हो जाता है और सोचने पे मज़बूर हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?आखिर क्या थी पहले के रिश्तो की खुबिया और क्या है आज के टूटते बिखरते रिश्तो की वज़ह ? आज के इस व्यवसायिकता के दौड में रिश्ते
इच्छा, आकांक्षा मनुष्य की प्रेरणा स्त्रोत है इच्छाएं है तो मनुष्य कर्म की और अग्रसर होता है | इच्छाएं नया जोश नई प्रेरणा का संचार मनुष्य के अंदर करने के साथ-साथ समाज में उसका स्थान भी निश्चित करती है लेकिन जब ये इच्छाएं आकाँक्षायें विकृत हो जाती हैं तो सम्पूर्ण जीवन को अशाँति तथा असन्तोष की आग में ज
आज के इस आपाधापी के युग में हर व्यक्ति अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है कोई न कोई ऐसी समस्या हर व्यक्ति के जीवन में है जिससे पीछा छुडाने के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है लेकिन विडम्बना ये है की जैसे ही वो एक समस्या से पीछा छुड़ाता
लेखक:- पंकज “प्रखर”कोटा (राजस्थान) मानव जीवन में कठिनाइयों का भी अपना महत्व है| कठिनाइयां हमारी परीक्षा लेती हुई हमारी योग्यताओं को और धारदार कर देती है ज्यादातर लोग कठिनाइयों को अपना दुर्भाग्य मानकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है | इनमे वो लोग विशेषकर होते है जिन्होने सामान्य से निचले स्तर के परिवार
सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थमानव ईश्वर की अनमोल कृति है लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्द गिर्द ही रचा बसा है गीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की क
जरा समझिए:प्रतिभाशीलता शब्द एक विशेषण है, जिसका तात्पर्य है कि एक ऐसा व्यक्ति जो विशेष रूप से असाधारण योग्यता या बुद्धि से सम्पन्न हो. प्रतिभाशाली व्यक्तियों पर अध्ययन लेविस तरमन के सन् 1925 के कार्य से प्रारम्भ हुआ, जिसमें उन्होने उच्च योग्यता वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए बुद्धि परीक्षण का
जब हम किसी पुराने पीपल या बरगद के वृक्ष को देखते है तो हमारा हृदय एक प्रकार की श्रद्धा से भर जाता है पुराने वृक्ष ज्यादातर पूजा पाठ के लिए देव स्वरूप माने जाते है इसी प्रकार हमारे घर के वृद्ध वृक्ष हमारे बुजुर्ग भी देव स्वरुप है | जिनकी शीतल छाँव में हम अपने सब दुखों और समस्याओं को भूल कर शांति का