देवर्षि नारद भगवान के जितने प्रेमी भक्त हैं,भगवान भी नारद जी के उतने ही बड़े भक्त हैं।लेकिन आज की पीढ़ीनारद जी का जिस तरह से चरित्र-चित्रण करती है, उससे उनकी छवि उपहास के पात्र और चुगलखोर की बन गई है जो अतिनिंदनीयहै। आज आवश्यकता है कि देवर्षि नारद का वास्तवित चरित्र समाज के सामने आए। प्राणिमात्र के कल्याण की भावना रखने वाले नारदजी ईश्वरीय मार्ग पर अग्रसर होने की इच्छा रखने वाले प्राणियों को सहयोग देते रहते हैं । उन्होंने कितने प्राणियों को किस प्रकार भगवान के पावन चरणों में पहुँचा दिया, इसकी गणना संभव नहीं है। वे सदा भक्तों, जिज्ञासुओं के मार्गदर्शन में लगे रहते हैं ।
वे तीनों लोकों में घटने वाली प्रिय-अप्रिय घटनाओं की
जानकारी भगवान तक पहुँचाते हैं । वे देवताओं के साथ-साथ दानवों का मार्गदर्शन भी
करते हैं ।नारद जी के विषय में शोध करते हुए उनके जन्म से संबन्धित वैसे तो अनेक
प्रकार की कथाएँ पढ़ने को मिली लेकिन उनमें से एक कथा जो मुझे सबसे अधिक प्रिय और प्रामाणिक
मिली वह ये है कि नारद जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के यहाँ हुआ। माँ बहुत गरीब
थी और जहां जो काम मिल उसे करके अपना व अपने पुत्र का जीवन यापन करती एक दिन नगर
सेठ ने कुछ साधु-संतों को नगर में चातुर्मास के लिए बुलाया और उस विधवा माँ को
उनकी सेवा में रख दिया। वह नित्य उन साधु संतों की सेवा में लगी रहती ।इसके बदले
में उसे और उसके पुत्र को भोजन आदि मिल जाता था। जब भी साधु सत्संग करने बैठते तो
माँ बेटे दोनों उनके सत्संग को ध्यान से सुना करते इतने छोटे बालक को शांत चित्त
सत्संग सुनते देख साधु संत उसे स्नेह करने लगे ।
भगवत कथा के प्रभाव से उस बालक का मन शुद्ध हो गया और उसके
पिछले जन्मो के समस्त पाप धुल गए। नगर से जाते समय महात्माओं ने प्रसन्न होकर बालक
को भगवन्नाम का जप एवं भगवान के स्वरूप के ध्यान का उपदेश दिया और बालक नित्य
ईश्वर का ध्यान और जप करने लगा ।
एक दिन साँप के काटने से उसकी माता की मृत्यु हो गई बालक
अकेला रह गया।अतः वह गिरि,कन्दराओं में जाकर भगवान नाम का जप करने लगा।
बालक के शुद्ध हृदय की पुकार भगवान तक पहुंची और भगवान उसके हृदय में प्रकट हो गए
और उसे कहा कि समय आने पर तुम्हारा ये भौतिक शरीर छूट जाएगा और तुम मेरे प्रिय
पार्षद के रूप में मुझे प्राप्त करोगे। समय आने पर नारद जी का पंच भौतिक शरीर छूट
गया और कल्प के अंत में वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए।
देवर्षि नारद भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं।इन्हें भगवान का मन कहा गया है।
इन्होंने नारद-भक्ति सूत्र की रचना की जिसमें भक्ति की बड़ी ही सुंदर व्याख्या है।
यह ज्ञान के स्वरूप, विद्या के
भंडार,
आनंद
के सागर और विश्व के हितकारी हैं। वह श्रीमन्नारायन के महानतम भक्तों में माने
जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। भगवान विष्णु की कृपा से यह सभी
युगों और तीनों लोकों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। सर्वोत्तम भक्ति के प्रतीक
और ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाने वाले देवर्षि नारद का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक
भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना है।
जिस प्रकार भक्त अपने भगवान का चिंतन करते है उनका ध्यान
और स्तुति करते हैं उसी प्रकार ईश्वर भी अपने भक्तों का ध्यान, चिंतन और यहाँ
तक की उनकी स्तुति भी करते हैं इसका एक प्रमाण मुझे इस प्रकार मिला।
एक समय महीसागर संगम तीर्थ में भगवान श्री कृष्ण ने
देवर्षि नारदजी की पूजा अर्चना की । वहाँ महाराज उग्रसेन ने पूछा : "जगदीश्वर
श्री कृष्ण ! आपके प्रति देवर्षि नारदजी का अत्यंत प्रेम कैसे है?"
भगवान श्री कृष्ण ने कहा: "राजन! मैं देवराज इन्द्र
द्वारा किये गए स्तोत्र पाठ से दिव्य-दृष्टि संपन्न श्री नारदजी की सदा स्तुति
करता हूँ । आप भी वह स्तुति सुनिये :
'जो ब्रह्माजी की गोद से प्रकट हुए हैं, जिनके मन में अहंकार नहीं है, जिनका विश्व-विख्यात चरित्र किसी से छिपा नहीं है जो कामना या लोभवश झूठी बात मुँह से नहीं निकालते, जो जितेन्द्रिय हैं, जिन में सरलता भरी है और जो यथार्थ बात कहने वाले हैं, जो तेज, यश, बुद्धि, विनय, जन्म तथा तपस्या इन सभी दृष्टियों से बड़े हैं, जिनका स्वभाव सुखमय, वेश सुन्दर तथा भोजन उत्तम है, जो प्रकाशमान, शुभदृष्टि-संपन्न तथा सुन्दर वचन बोलने वाले हैं, उन नारदजी को मैं प्रणाम करता हूँ ।
इस स्तुति के कारण वे मुनि-श्रेष्ठ मुझ पर अधिक प्रेम रखते
हैं । देवर्षि नारदजी की इस स्तुति के द्वारा भगवान भक्तों के आदर्श गुणों को
प्रकट करते हैं । भक्त की इतनी महिमा है कि स्वयं भगवान भी उनकी स्तुति करते हैं ।
अतः जो लोग नारद जी का उपहास करते हैं उन्हें चुगलखोर आदि
शब्दों से अपमानित करते हैं उन्हें देवर्षि नारद के इन विशेष गुणों का चिंतन करना
चाहिए क्योंकि वे इतने महान हैं कि भगवान भी उनकी स्तुति करते हैं। जीवन-मुक्ति की
इच्छा रखने वाले साधु पुरुषों के हित के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहते हैं ।
अतःउनके चरणों में मुझ अकिंचन का कोटि-कोटि प्रणाम हैं !
पंकज 'प्रखर '
पौराणिक पात्रों एवं कथानकों पर लेखनसुन्दर नगर, कोटा राजस्थान