‘मज़दूर’ एक ऐसा शब्द जिसके ज़हन में आते ही दुख, दरिद्रता, भूख, अभाव, अशिक्षा, कष्ट, मजबूरी, शोषण और
अभावग्रस्त व्यक्ति का चेहरा हमारे सामने घूमने लगता है।आप जब भी किसी पुल से
गुज़रें तो ये ज़रूर सोचें कि ये न जाने किन मज़दूरों के कंधों पर टिका हुआ है, जब आप नदियों
के सशक्त और मजबूत बाँधो को देखें तो याद करें कि ये न जाने कितने ही मजदूरों का
भुजबल है,जिसने इन
वेगवती,
अभिमानिनी
नदियों को बांध दिया,गगनचुंबी इमारतों की नींव को सींचने वाले मजदूरों
को आज याद करना ज़रूरी है।मजदूर दिवस पर हमारा कर्तव्य है कि हम उन सभी मजदूरों को
प्रणाम करें जो अपने अथक परिश्रम से इस धरा को सौंदर्य प्रदान करने में लगे हुए
हैं,
क्योंकि
संसार के समस्त निर्माण इन्हीं के हाथों का हुनर है और इन्हीं के कंधों पर ही टिका
हुआ है ।
हमारे देश में मजदूरों की कोई निश्चित उम्र नहीं है कहने
को कानून तो बने हैं लेकिन उनका सख्ती से पालन करने में हम पिछड़ गए हैं इसलिए आपको
कोई छोटू सड़क किनारे पत्थर तोड़ता,चाय बेचता या अखबार बाँटता मिल जाए तो आश्चर्य
मत करना ।
मज़दूर वो शख्स है जिसने शहरों का निर्माण किया है लेकिन वो
स्वयं शहरों से उपेक्षित है खूबसूरत शहरों का निर्माण करने वाले मजदूरों की बस्ती
लगभग शहर से बाहर गंदगी के ढेरों के बीच देखने को मिलती है ।जहां उनके अभावग्रस्त
जीवन को आसानी से देखा और उनके त्रस्त चेहरों को बड़ी आसानी से पढ़ा जा सकता है
हमारे देश के मज़दूर पीड़ित और शोषित जीवन जीने को मजबूर हैं ।
मज़दूर समाज का एक ऐसा अंग है जो विषम परिस्थितियों में भी
काम करना बंद नहीं करता क्योंकि भूख किसी भी परिस्थिति को नहीं जानती।इनके घर गंदे
और अभावग्रस्त होते हैं जहां ये अपना नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं न जाने समाज
इन्हें किस पाप की सज़ा देता है?
इन श्रमिकों के धूप से झुलसे चेहरे,फटे हुए और
उभरी नसों वाले हाथ इनके कठोरतम परिश्रम की गवाही देते हैं।काम करते हुए ज़ख्मी हुए
हाथों की सुध लेने वाला कोई नहीं हैं अगर छुट्टी ली तो आधे दिन कि मजदूरी गई समझो इसलिए
हाथों के ज़ख़्मों पर कपड़े की चिंदी बांधे ये मजदूरी करते रहने को मजबूर हैं और वहीं
कहीं पास ही इनके बच्चे भविष्य के मज़दूर बनने के लिए तैयार हो रहे होते हैं जिनका
शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं हैं कहने के लिए देश में सर्व शिक्षा अभियान चल है।मज़दूर
कितना भी अभावग्रस्त और दीन-हीन क्यों न हो पर देश कि उन्नति तो हो रही है।उसकी
मेहनत और प्रतिभा देश के काम आ रही है और देश का स्वरूप निखरता चला जा रहा है ।ये
निश्चित रूप से मज़दूर के लिए गर्व कि बात है ।इतिहास साक्षी है कि हमारी विरासत का
निर्माता भी मज़दूर है वो कहलाता मज़दूर है परंतु वो निर्माता है और न्यूनतम
पारिश्रमिक में अपना जीवन चलाता है।
वास्तव मैं देखा जाए तो वास्तविक सम्मान का अधिकारी मज़दूर
ही है क्योंकि यदि वो काम करना बंद कर दे तो बड़ी-बड़ी मशीनें कल-कारखाने बंद पड़
जाएं।हमारे लिए छोटी-बड़ी सभी वस्तुओं का निर्माण मज़दूर ही करता है इसलिए वो
निर्माता और हम उपभोक्ता है और उपभोक्ता से कहीं ऊंचा स्थान निर्माता का होता है ।
लेकिन निर्माता होने के बाद भी उसे सामान्य वस्तुएं भी
उपभोग के लिए नहीं मिलती, क्योंकि सुविधाएं पैसों से मिलती हैं, जिनका मज़दूर
के पास सर्वथा अभाव रहता है।आज की महंगाई देखकर मध्यमवर्गीय लोग परेशान हैं तो सोचिए इन मजदूरों का क्या हाल होता होगा ।कोई
भी जानबूझकर मज़दूर नहीं बनाना चाहता लेकिन परिस्थितियाँ प्रबल होती हैं और फिर पेट
की आग सब करवा लेती है और कहीं ये आग बच्चों के पेट की हो तो फिर परिस्थितियाँ और
गंभीर हो जाती हैं।
अशिक्षा और अज्ञान मजदूरों के शोषण में बड़ी भूमिका निभाते
हैं जिनके कारण ये समाज के कई धूर्त लोगों द्वारा ठगे जाते हैं ।हालांकि मजदूरों
के उत्थान के लिए कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं काम में लगी हुई हैं लेकिन
हमारे देश में मज़दूरों की संख्या के आगे उनके कार्य ऊंट के मुंह में जीरा भर हैं
और ये सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता ।इसके लिए हम सभी को मिलकर आगे आना
होगा अपनी मानवीय संवेदनाओं का परिचय देते हुए इनके शोषण को रोकना होगा,इनके परिश्रम
का उचित मूल्य देना होगा साथ ही साथ इनके बच्चों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाने
होने।इस मज़दूर दिवस पर मेरे इस लेख का उद्देश्य श्रमिक वर्ग के जीवन की कठिनाइयों को
उजागर कर अपनी और आपकी मानवीय संवेदनाओं को प्रज्वलित करना है क्योंकि एक दीप
हजारों,लाखों दीपकों
को प्रज्वलित करने में सक्षम होता है मज़दूरों के प्रति यदि हम संवेदनशील बनें
उन्हें दो मीठे बोल और सम्मान भी दे सकें तो हमारा ये मज़दूर दिवस मनाना सफल होगा ।