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आज़ाद देश की गुलाम

7 फरवरी 2022

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जब कभी  खुद को पुछताहूँ

क्या हम बकाई आज़ाद हे?

दिल की किसी कोने पे रह रह कर

यह आवाज़ आता हे:- की हम अभी भी गुलामी के ज़ंजीर में जकड़े हुए हें -१-

जकड़े हुएँ हें गूलमी की जंजीरों से

सर से पाओं तक बिलकुल

अपना ही सोच और बिचार में

रुकता हुआ सांश, बोझल नजरे- ना आवाज़ हे, हिम्मत में बस गया हे धूल । -२-

अंग्रेज़ो से छुड़ाया वतन

हम खुद अपना शासन करेंगे,

हमारा करम हमारा वतन

एक मिसाल बनकर इस धरती पे- एक नया इतिहास लिखेंगे । -३-

मेरा वतन और अमन से

मिटा देंगे  सब रश्मों की दीबारें

ना डर ना कोई खाफ

पाओं इस धरती पर –नज़र आसमान पर टिकता रहे । -४-

[लेकिन] ये बस एक सपना था

हकीकत कुछ और कह रहा हे

अपना ही मुल्क और शासन में

जिल्लत -और- जेहाद के नाम पर – हम बस आज़ाद देश के गुलाम ही हे । -५-

एक तरफ भूक तो दूसरी और

आबरू से हो रहा हे खिलवाड़

अपना हॉक पाने के लिए

आबाज उठाए तो -नीचे से ऊपर तक बस मिलता हे मारधाड़ । -६-

चलो मिटाएँगे यह सारी अडचन

खुद को ना करेंगे नीलाम

खुद के साथ और बिचार से

ये होगा एक आर-पार की लढाई- क्यौन की नेहीन बनाना होगा हम को

अपना ही मुल्क में- ‘आज़ाद देश की गुलाम’

-समाप्त  -

कबी: श्री सहसरानशु प्रियदर्शी [अध्यापक रबीन्द्र मिश्रा]

‘अदयशा’ सरकारी बिज्ञान महाबिद्यालाय के करीब

तनवात छक-766105 , जिल्ला: नुयापाड़ा

व्हात्सप्प:78737-09277

मेल: shri.sdnpd@gmail.com

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