माना महंगाई है अधिक, माना आज नहीं हैं रोजगार।
दिल पर रख कर हाथ ये सोचो, क्या पहले जैसे हैं हालात??
एक समय था जब आतंकवादी, दिल्ली तक आ जाते थे।
और हमारी संसद पर वो, आ-आ कर बम्ब बरसाते थे।।
ताज होटल में आये मेहमानों को, बन्धक वो ही बनाते थे।
और अपनी मेहमान नबाजी में, जेलों में बिरयानी खाते थे।।
कांधार काण्ड को भूल गये तुम, या भूल गये ढाका का काण्ड।
हाई जैक जहाजों को करके, फिर रखते थे अपनी डिमांड ।।
आज वहीं आतंकवादी, कश्मीर भी आ नहीं पाते है।
जब जब अपने कदम बढाते, वहीं पर मारे जाते है।।
अब सोचो हमको क्या चाहिये, झूट मूट का रोज़गार ।
या हराम के बिजली पानी संग, तालिबान जैसे हालात।।