प्रेम पर आधारित कहानी हैं। जिसमें प्रेम हैं करुणा हैं विश्वास हैं सब कुछ है एक बार जब आप पढेंगे तो निरन्तर पढेंगे
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घर घर में तिरंगा हो, हर घर में तिरंगा हो।निर्मल हो माँ यमुना, पावन माँ गंगा हो।।ना भूका सोए कोई, ना कोई तन नंगा हो।हर सिर पर छत हो, आँकड़ा यह सो प्रतिशत हो।।घर घर में तिरंगा हो, मन सबका चंगा हो।
वेद और काव्या दोनों हीं एक सामान्य परिवार से थे जहाँ वेद थोडा चंचल था वहीं काव्या शान्त थी दोनों एक हीं सोसायटी मे रहते थे दोनो एक दूजे को आते जाते देखते किन्तु बात करने की हिम्मत नहीं जुट
इधर काव्या भेज तो देती हैं पर खुद को नहीं समझा पाती और हर बख्त उदास खोई खोई रहती हैं उधर हाल उसका भी वही था न काव्या का पढ़ाई में मन लगता हैं न वेद का काम में एक दिन वेद अपनी बाइक से जा रहा होता हैं औ
तोड़ के इन जंजीरों को मैं, पंछी बन उड़ जाऊ।मां भारती का तिरंगा, नील गगन में फिर लहराऊं।।हम भारत माता की बेटी है, हममें साहस है अपार।एक बार जब हम ठाने तो, कर जाये हर मुस्किल पार।।कृष्ण प्रेम में मीरा ज
काव्या उनके साथ गुजरात चली जाती हैं पर उसके तन व मन पर तो जैसे वहार आने से पहले हीं पतझड़ आ गया हो वह वहां भी कई दिन घर में हीं बिता देती हैं और हाल पहले से भी बुरा होने लगता हैं । ****************"**
वह रोती हैं और मन हीं मन खुद को कोसती हैं वह वहाँ के सारे बंधन तोड़ कर भाग जाना चाहती हैं पर वह असहाय एक कटे पेड़ की भाति गिर पड़ती हैं उसका खुद पर भी बस नहीं चलता औरो की तो वह सोचे भी क्यो? *********
वेद यह सुन कर चौक जाता हैं और बड़ी उत्सुकता से उसे पकड़कर पूछता हैं काका क्या आप मुझे पहचानते हो।सिक्योरिटी क्यों मजाक करते हो साहब? आपको कैसे भूल सकता हूं आपने ही तो उस लड़की की जान बचाई थी इसी स्वीम
वह मात्र और मात्र उन बातों को बताता हैं जिनमें उन्होंने बचपन में मस्ती की थी किस प्रकार स्कूल में बंक मारके खेला करते थे और आपस में लड़ा करते थे उसकी बाते सुनकर एक लम्बे समय बाद वेद के चैह
दिव्या भी वेद की हां में हां मिलाते हुये कहती हैं हां पापा आप हैं तो सब कुछ हैं आप ठीक हो जाये पहले फिर हम इस विषय पर बात कर लेंगे। दिव्या के पिता कहते हैं बेटा जानता हूँ तुम दोनों समझदार हो पर एक बात