अब तक देश में बाढ़ और बारिश से जुड़ीं घटनाओं में 1136 लोगों की मौत हो चुकी है. खैबर पख्तूनख्वा में बाढ़ का खतरा और बढ़ रहा है. उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पाकिस्तान में बाढ़ से हो रहीं मौतों को लेकर दुख जताया है
भारत में 10 सबसे बड़ी 'जलप्रलय', जब गई हजारों की जान
(1) उत्तराखंड बाढ़ 2013 :-
(2) हिमालय बाढ़ 2012 :-
(3) ब्रह्मपुत्र बाढ़ 2012 :-
(4) लद्दाख बाढ़ 2010 :-
(5) बिहार बाढ़ 2008 :-
(6) गुजरात बाढ़ 2005 :-
(7) महाराष्ट्र बाढ़ 2005 :-
(8) चेन्नई बाढ़ 2005 :-
साल 1987 में बिहार में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी। इस प्राकृतिक आपदा में 30 जिलों के 382 ब्लॉक, 6,112 पंचायत और 24,518 गांव में कुल 2.9 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। उस साल बाढ़ के कारण पूरे बिहार में 1,399 लोग और 5,302 जानवरों की मौत हुई थी। इस तबाही में करीब 68 सौ करोड़ रुपए के फसलों का नुकसान भी हुआ था। बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है, जिसमें 76% आबादी ऐसी जगह पर रहती है, जहाँ बाढ़ का पानी कभी भी तबाही मचा सकता है।
देश में बाढ़ से हर साल तबाही होती है और इस बाढ़ से जानमाल का नुकसान होता है। देश में कम से कम दस ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्रतिवर्ष बाढ़ का आना लगभग तय माना जाता है लेकिन अगर बाढ़ के कारण सारे देश में हाहाकार मचा हो तो इन क्षेत्रों में मौसमी विनाश की कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है। पिछले कुछ दशकों के दौरान मध्य भारत जैसे क्षेत्र में भी लोग मूसलाधार बारिश और एकाएक बड़ी मात्रा में बारिश होने, बादल फटने की घटनाओं से सामना करने लगे हैं। देश में ज्यादातर नदी के किनारों और नदियों के डेल्टाओं में बाढ़ भारी कहर बरपाती है। खबरों के मुताबिक, इस वर्ष गुजरात और राजस्थान में आई बाढ़ से करीब 80 लोगों की मौत हो चुकी है। भारत तीन ओर से समुद्रों (अरब सागर, हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी) से घिरा है। भारत के ज्योलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया का कहना है कि इस कारण यह देश बाढ़ की विभीषिका को लेकर संवेदनशील है और समूचे देश में ऐसे इलाके हैं, जो कि हर वर्ष बाढ़ का सामना करते हैं। देश में ऐसे कुल इलाकों की संख्या 12.5 प्रतिशत है।
इन राज्यों में होता है बाढ़ का अधिक असर : भारत में बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य हैं जिनमें बाढ़ का ज्यादा असर होता है। इस वर्ष तो सूखे के लिए जाना जाने वाला राजस्थान भी बाढ़ की चपेट में आ गया है। मानसून की होने वाली बहुत अधिक बरसात दक्षिण पश्चिम भारत की नदियां जैसे ब्रहमपुत्र, गंगा, यमुना आदि बाढ़ के साथ इन प्रदेशों के किनारे बसी बहुत बड़ी आबादी के लिए खतरे और विनाश का पर्याय बन जाते हैं। इन सभी बड़ी नदियों के आसपास या किनारों पर बसे शहर, गांव और कस्बे इसका सबसे ज्यादा शिकार बन जाते हैं।
इन नदियों में आता है बाढ़ का पानी : देश में रावी, यमुना-साहिबी, गंडक, सतलज, गंगा, घग्गर, कोसी तीस्ता, ब्रह्मपुत्र महानदी, महानंदा, दामोदर, गोदावरी, मयूराक्षी, साबरमती और इनकी सहायक नदियों में पानी किनारों को छोड़-छोड़कर बड़ी दूर तक पानी फैल जाता है। राज्य के राज्यवार बाढ़ प्रवृत क्षेत्रों को समझा जा सकता है। ज्यादातर राज्यों में बाढ़ प्रवृत्त इलाका भी इस प्रकार है।
विभिन्न राज्यों के बाढ़ प्रवृत क्षेत्रों का इलाका ज्यादा बढ़ता जा रहा है। उत्तरप्रदेश में ऐसे क्षेत्र की संख्या इस प्रकार है। उत्तर प्रदेश में 7.336 लाख हैक्टेयर, बिहार में 4.26 लाख हैक्टेयर, पंजाब में 3.7 लाख हैक्टेयर, राजस्थान में 3.26 लाख हैक्टेयर, असम 3.15 लाख हैक्टेयर, बंगाल 2.65 लाख हैक्टेयर, उड़ीसा का 1.4 लाख हैक्टेयर और आंध्र प्रदेश का 1.39 लाख हैक्टेयर, केरल का 0.87 लाख हैक्टेयर, तमिलनाडु का 0.45 लाख हैक्टेयर, त्रिपुरा 0.33 लाख हैक्टेयर, मध्यप्रदेश का 0.26 लाख हैक्टेयर का क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है। 6 अप्रैल- जम्मू-कश्मीर की कश्मीर घाटी के कई हिस्सों और श्रीनगर में भारी बारिश के बाद पानी भरा और लोगों को 2005 की भारी तबाही की यादें एक बार फिर ताजा हो गईं। तब झेलम में आई बाढ़ ने 44 जिंदगियों को लील लिया था और 12,565 घर क्षतिग्रस्त हो गए थे 21 अप्रैल- भारी बारिश के बाद मेघालय के दक्षिण पश्चिम गारो हिल्स जिले के निचले इलाकों में पानी भर गया। करीब 20 लोग बेघर हो गए। 5 जून- लगातार कई दिनों की बारिश के कारण असम के 3 जिलों लखीमपुर, करीमगंज और दारंग में करीब 60,000 लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। 4 जुलाई- असम में स्थिति और गंभीर हुई और कुल 2.70 लाख लोगों का जीवन प्रभावित हो गया। केवल करीमगंज जिले में 15,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा और उन्होंने 112 राहत शिविरों में शरण ली। करीब 500 गांव जलमग्न हो गए और 8,000 हेक्टेयर में खड़ी फसलें तबाह हो गईं। ताजा स्थिति के अनुसार 24 जुलाई तक असम में बाढ़ से 76 लोगों की मौत हो चुकी है। 15 जुलाई- भीषण बारिश के बाद उड़ीसा के रायगढ़ और कालाहांडी जिलों में करीब 12 गांव पूरी तरह बाहरी दुनिया से कट गए। रेल, रोड क्षतिग्रस्त हो गए और कम से कम 5 पुल बह गए। 24 जुलाई- गुजरात के बनासकांठा में बाढ़ का पानी भर जाने के कारण 25,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है। धनेरा में केवल 6 घंटों में हुई 235 एमएम बारिश के बाद धनेरा, डीसा और थराड में हालात बदतर हो गए और घरों में पानी घुस गया। बाढ़ की घटनाओं की ये फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है। इसमें दोनों ही तरह के इलाके हैं। असम जैसे राज्य भी हैं, जहां बाढ़ एक सालाना त्रासदी है, लेकिन कश्मीर, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्य भी हैं, जो हाल के वर्षों में भीषण बारिश और बाढ़ के हालात से रूबरू हो रहे हैं।
बाढ़ ने कहां-कहां मचाई तबाही, आंकड़ों की नजर से..अगले पेज पर... क्या कहते हैं आंकड़े : गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से पिछले साल सितंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में बाढ़ के कारण 1.09 करोड़ लोग प्रभावित हुए। 850 लोगों को जान गंवानी पड़ी, जिनमें 184 मध्य प्रदेश में, 99 उत्तराखंड में, 93 महाराष्ट्र में 74 उत्तरप्रदेश में और 61 गुजरात में थे। बिहार में 31 जिलों के 86 लाख लोगों पर मुसीबत का पहाड़ टूटा, जिनमें से 249 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। कुछ ऐसा ही हाल असम में रहा, जहां 35 में से 30 जिलों में बाढ़ के कहर ने करीब 35 लाख लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान के लिए खून के आंसू रुला दिया।
पिछले करीब डेढ़ दशकों से हालात ये बनने लगे हैं कि लगभग हर दूसरे-तीसरे साल किसी न किसी राज्य या शहर में भारी बारिश और बाढ़ के कारण त्रासदी इतिहास का हिस्सा बन रही है। वर्ष 2004- बिहार के 20 जिलों में 2.10 करोड़ लोगों को प्रभावित करने वाली बाढ़ ने 3272 पशुओं और 885 लोगों की बलि ली।
2005- 26 जुलाई को मुंबई में हुई भारी बारिश ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। मुंबई में औसतन 242 एमएम बारिश होती है, लेकिन उस दिन 24 घंटे में शहर में 994 एमएम वर्षा दर्ज की गई। पूरी मुंबई जहां के तहां ठहर गई। लोग 2-2 दिन तक ऑफिस से घर नहीं जा सके। जो जहां था, वहीं ठहर गया।
2005- इस साल गुजरात ने भी अपने इतिहास की भीषणतम बाढ़ देखी। बहुत कम समय में हुई 505 एमएम बारिश के बाद करीब 7200 गांवों में पानी घुस गया और 1.76 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा।
2008- एक बार फिर बिहार में 23 लाख लोग बाढ़ की चपेट में आए, जिनमें से 250 तो मौत के मुंह में ही समा गए। कुल 8.4 लाख हेक्टेयर जमीन पूरी तरह धुल गई और 3 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो गए।
2010- लद्दाख में छह विदेशियों सहित 255 लोग बाढ़ की भेंट चढ़ गए। 2012- ब्रह्मपुत्र में आई बाढ़ ने न केवल 60 लोगों को बेघर किया, बल्कि 124 लोगों की जान भी ले ली, साथ ही काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क में 540 जानवर भी काल-कवलित हो गए।
2014- जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ में 280 लोग मारे गए और करीब 400 गांव पूरी तरह डूब गए।
2015- चेन्नई ने पिछले 100 सालों की सबसे भीषण बाढ़ देखी। जब दिसंबर के पहले हफ्ते में हुई करीब 500 एमएम बारिश के बाद पूरा शहर डूब गया। इस बाढ़ से 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इतना क्षेत्र होता है प्रभावित : इस सूची में हिमाचल प्रदेश का 0.23 लाख हैक्टेयर, महाराष्ट्र का 0.23 लाख हैक्टेयर, जम्मू और कश्मीर 0.1 लाख हैक्टेयर, मणिपुर का ऐसा क्षेत्र 0.08 लाख हैक्टेयर और दिल्ली का 0.08 लाख हैक्टेयर नोट किया गया था। इस मामले में कर्नाटक का 0.02 लाख हैक्टेयर, मेघालय का 0.02 लाख हैक्टेयर क्षेत्र और पांडिचेरी के 0.01 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ प्रभावित करती है। इस तरह देश में लगभग प्रतिवर्ष 33.516 लाख हैक्टेयर का इलाका इससे प्रभावित क्षेत्र में शामिल होता है, लेकिन जब बहुत अधिक बरसात होती है तो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का इलाका भी बढ़ जाता है। सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है। हालांकि उत्तर भारत के बाढ़ से प्रभावित होने वाले भागों में तीन डिवीजन प्रमुख हैं।
गंगा बेसिन का क्षेत्र : अपनी उत्तरी सहायक नदियों की अधिकता के कारण गंगा बेसिन का ज्यादातर क्षेत्र बाढ़ को झेलता है लेकिन इन इलाकों में सर्वाधिक बुरी तरह प्रभावित होने वाले क्षेत्र, बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश हैं। गंगा बेसिन के प्रभावित राज्यों में इन बड़ी नदियों की सहायक नदियों जैसे सारदा, राप्ती, गंडक और घाघरा नदियां पूर्वी उत्तरप्रदेश को बाढ़ग्रस्त बनाती हैं। इसी तरह हरियाणा और दिल्ली में बाढ़ का प्रमुख कारण यमुना नदी है।
बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ अपनी पूरी भयंकरता के साथ लोगों को निशाना बनाती है, पर गंगा बेसिन के सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्यों में बिहार सबसे पहले है और प्रतिवर्ष बाढ़ का तांडव लाने में बूड़ी गंगा, महानंदा, भागीरथी, दामोदर आदि नदियां अपर्याप्त पानी निकलने के रास्तों के कारण बाढ़ को भयानक रूप देती है।
ब्रह्मपुत्र और बराक के बेसिन : जब कभी ब्रह्मपुत्र और बराक बेसिन में अतिरिक्त पानी आ जाता है तो यह अपने साथ तबाही भी लाता है। ये नदियां अपनी सहायक नदियों के साथ उत्तर-पूर्व के राज्यों जैसे बंगाल, असम और सिक्किम में कहर बरपाती हैं। जलदाखा तीस्ता और तोरसा पूर्वी बंगाल में और मणिपुर की नदियों में बाढ़ लाती है और बरसात के दौरान सभी नदियां अपने किनारों को तोड़कर बहने लगती हैं।
आज आधुनिक समय और तकनीकी युग आज बहुत प्रयास और प्रबंधन हो रहे हैं।