14 फरवरी 2012. गुजरात अहमदाबाद.
मुझे अच्छी तरह से याद है. वैलेंटाइन डे का वह दिन
मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती. उस दिन मेरे साथ इतनी भयानक घटना हुई थी, जिसका एहसास मुझे जिंदगी भर रहेगा।
दोपहर का समय था. धूप अपने आखिरी चरण पर पहुंच चुकी थी.
स्कूल की छुट्टी हो चली थी. मैं प्रीति के साथ स्कूल के गेट से बाहर निकल रही थी. प्रीति मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी. हम लोग संत कबीर स्कूल के स्टूडेंट थे. मैं सफेद रंग का शर्ट, और नीले रंग का स्कर्ट पहनी हुई थी. स्कूल बैग को साइकिल पर रखकर, हम दोनों अपने घर की ओर चले जा रहे थे. अहमदाबाद की बड़ी-बड़ी सड़कें. और उस पर से धूप का रिफ्लेक्शन, मानों सड़क पर, हीरे बिछे हुए हो. हम दोनों एक दूसरे से बात करते हुए, उसी सड़क पर आगे बढ़े जा रहे थे. कुछ दूर प्रीति के साथ जाने पर, हम दोनों के रास्ते अलग हो गए. उसे देसाई मार्ग पर आगे बढ़ना था, और मुझे जोशी मार्ग से लाल दरवाजा पहुंचना था. जहां पर मेरा घर था. मैंने उसे हाथ हिलाकर बाय कहा, और अपने रास्ते आगे बढ़ने लगी. साइकिल चलाते हूे, मेरे मन में हजारों विचार का आक्रमण हो रहा था. मैं सोच रही थी. आज मैं जाकर अपनी मम्मी को बताऊँगी. कि हमारे स्कूल में ऐनुअल फ़ंक्शन होने वाला है. कितना मजा आएगा मुझे. कुछ दिन पढ़ाई से राहत मिल जाएगी. और दोस्तों से मिलने का मौका भी तो मिलेगा. मैं तो ज्यादा से ज्यादा समय, उन्हीं के साथ बिताऊंगी। मैं एसपी रोड पर तेज़ी से साइकिल चला रही थी. रास्ता थोड़ा सुनसान हो चला था. मैं मन ही मन थोड़ी सी घबरा रही थी. यूं तो मैं हर दिन स्कूल से घर जाती थी. पर आज किसी अनजान डर ने मेरे मन पर कब्जा कर लिया था. वह कहते हैं ना, कुछ अनहोनी होने से पहले, आपको उसकी अनुभूति होने लती है. मैंने अपनी साइकिल की हैंडल को जोर से पकड़ रखा था. यहां तो कोई नहीं है. अगर कोई आ गया तो? मैंने खुद से कहा. जल्दी से मैं नेहरू ब्रिज पहुंच जाती हूं. वहां से तो मेरा घर ज्यादा दूर नहीं है. यह सोचकर मैं और तेज़ी से साइकिल चलाने लगी. मुझे आने वाले खतरे का एहसास तो हो रहा था. लेकिन, बदकिस्मती से मैं कुछ कर नहीं पा रही थी.
करती भी कैसे. वह दिन तो, मेरी जिंदगी का सबसे भयानक दिन बनने वाला था. मैंने देखा. एक सफेद रंग की कार, बड़ी तेज़ी के साथ मेरी दाईं तरफ से निकल गई. गाड़ी में कुछ लड़के बैठे हुए थे. मैं सोचने लगी. कौन होगा, जो इतनी तेज़ी से कार चला रहा होगा? खैर मुझे क्या. जो भी हो. लेकिन यह क्या. कार तो कुछ दूर पर जा कर रुक गई. मैं सोच रही थी, कि वे लोग अपनी गाड़ी वहां पर क्यों रोके होंगे. क्या गाड़ी में कोई खराबी आ गई? आस पास कोई दुकान भी तो नहीं है, जिसकी वजह से, उन लोगों को गाड़ी रोकना पड़े. मैं घबरा गई. मैंने देखा, कि कार में 3 से चार लड़के बैठे हुए थे. साइकिल चलाते हुए, अब मैं कार के पास पहुंच चुकी थी. अब मुझे विचारों साफ दिखाई दे रहे थे. पर यह क्या? वह तो चारों के चारों, मेरी तरफ ही देखे जा रहे थे. थी तो मैं एक लड़की. वह भी सिर्फ 13 साल की. उनकी नजरें पहचानने की शक्ति, शायद भगवान से ही मुझे उपहार के रूप में मिली थी. मैं समझ गई थी की कुछ गड़बड़ है. अब डर की वजह से, मेरे हाथ पैर कांपने लगे. धूप की गर्मी, अचानक से आग की तपिश ले चुकी थी. दिल की धड़कन, बहुत तेज़ी से धड़क रही थी. मैं अपनी मम्मी पापा को याद करने लगी. क्या करूं. इस परिस्थिति से कैसे बाहर निकलो. यह सोचती हुई, मैं उस रास्ते आगे बढ़ी जा रही थी. मैं जल्दी से निकल जाती हूं. लड़कों के देखने से क्या होता है? इस तरह से, मैं अपने मन को समझाने लगी.