‘हृदय की प्यास’ आचार्यजी का अत्यंत रोचक उपन्यास है। यह उपन्यास ऐसे युवक-युवतियों की सरस कथा है जिसमें वे वासनाओं की ओर झुकते हैं और फिर भावना तथा कर्तव्य की पहेली को सुलझाने का प्रयास करते रहते हैं। यह प्रयास ऐसी कथा बुनता चला जाता है कि पाठक बंधता चला जाता है। प्रारंभ से अन्त तक अत्यंत कौतूहलपूर्ण उपन्यास, जिसे अपने संपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। किसी मनुष्य के हृदय में जब प्यास-सी उठती है, तो अजीब तरह की बेचैनी और छटपटाहट होने लगती है। मन चंचल होने लगता है और इसी के साथ शुरू होता है बहकना-भटकना। आचार्य जी ने इसी मनोवैज्ञानिक सत्य को रोचक ढंग से ‘हृदय की प्यास’ की कथा में मोती की तरह पिरोया है। यह उपन्यास युवा मन को समझने का भी प्रयास करती है।.
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