भाग - 2
खैर बारात भी आयी, और मोहनी को रोहन से विवाह भी हो गया। कुछ दिनों के बाद मोहनी अपने ससुराल से वापस मायके लौटी तो मिक्की दौड़ती हुए मोहनी के पास आयी, और आतें ही बोल पड़ी, - "दीदी जीजाजी नहीं आयें क्या?"
"नहीं तो उनको अपने काम से फुर्सत हीं कहाँ हैं।" - इतना बोलकर मोहनी उस कमरा में चली गयी, जहाँ शादी से पहले वह रहा करती थी।
मोहनी का कमारा अब पहले जैसा नहीं रह गया था, जो तीन महीने पहले वह छोड़कर गयी थी। कमरा में बहुत कुछ बदल दिया गया था । न वह कैलेंडर ही दीवार पर लटक रहें थें जो मोहनी को कभी बहुत पसंद हुआ करतें थें, और नहीं खिड़की पर लगे हुए वो पर्दे थें, जो मोहनी ने अपने मन की खुबसूरती के हिसाब से लगाई थी।
"मिक्की मेरा कमरा का हुलिया किसने बदल दी....?" - मोहनी उस पलंग पर बैठती हुई बोली, जिसपर कभी किसी को जल्दी बैठने या सोने का वह इजाजत नहीं देती थी।
"मैंने बदली है दीदी।"
-मिक्की ने मोहनी की बातें सुनकर मुस्कुराती हुई बोल पड़ी।
"ये सब करने के लिए तुझे किसने बोला?"
"माँ ने और कौन? ऐसे भी तो तू यहाँ की रही नहीं, और मुझे अपना कमरा में पहले से ही घुटन महसूस होती थी, इसलिए तुझको जातें ही मैंने अपना कमरा बदल लिया।"
दोनों बहनें बातें कर हीं रही थीं कि माँ हाथ में चाय का दो प्याले लिए हुए कमरा में आयी। तीन मांह में माँ भी बदल गयी थी। कभी सुबह - सुबह जिस चाय बनाने के लिए माँ मोहनी पर चिल्लाया करती थी, आज वही माँ स्वयं अपने हाथों से चाय बनाकर लायी थी मोहनी के लिए । माँ के हाथों से चाय का प्याला लेकर मोहनी स्वयं के अतीत में खोती चली गयी थी।
शादी से पहले वाला समय कुछ और ही था। कितनी आजादी थी। जो मन में आती थी सो करती थी । न कोई टोकने वाला था, और न कोई रोकने वाला।
जिन्दगी फर्राटे से चल नहीं, दौड़ रही थी। कॉलेज के दिनों से लेकर, घर की जिंदगी तक, सब कुछ मोहनी के हिसाब से था।
मोहनी को यह सब सोचते हुए एकाएक कुछ और याद आ गई। वह चाय को प्याला को बगल में रखी और कुछ अजीब नजरों से खिड़की के उस पार देखने लगी।
उस पार, उसकी नजर एक दो मंजिला मकान पर जाकर टीक गई थी। मकान का निचला तला का वह खिड़की बंद थी, जो मोहनी के कमरा की तरफ खुला करती थीं।
मोहनी कुछ पल तक खिड़की की ओर देखती रही, फिर अपनी नजरें फेर ली। लेकिन उसका मन बार - बार उस खिड़की को ही देखने को कह रहा था।
जब - जब मोहनी अपना कमरा में आती, तब - तब वह खिड़की से बाहर की ओर देखती, लेकिन दो मंजिला मकान का वह खिड़की बंद का बंद ही था।
क्रमशः जारी