भाग - 4
इधर...
मोहनी को इसी शहर में शिक्षिका की नौकरी लग गई थी, जिसके कारण वह कुछ दिनों तक मायके में हीं रहने का मन बनाकर ससुराल से मायके आयी थी।
और....
रोहन ने भी लगभग एक महीने की छुट्टी कार्यालय से लेकर ही आया था, अतः वह भी एक मांह तक घरजवाई बननेवाला था।
मोहनी सुबह आठ बजने के बाद मायके से विद्यालय के लिए निकल जाती, और देर शामतक घर वापस लौटती थी, जिसके कारण उसे कुछ भी पता नहीं होता था कि उसके पीठ पीछे उसकी बहन और उसका पति कौन सा गूल खिला रहें हैं।
मोहनी को स्कूल जातें ही रोहन और मिक्की दोनों शुरू हो जातें। दोनों हँस - हँसकर बातें करतें और बहुत खुश दिखाई देतें।
रोहन और मिक्की के ये हरकत न जगदीश बाबू को अच्छा लग रहा था, और नहीं उनकी पत्नी को। इसलिए कभी- कभी एकांत में जगदीश बाबू की पत्नी, मिक्की को समझाने लगती, - "देखो दिन पे दिन तू कोई बच्ची नहीं होती जा रही हो। अब सयानी हो गई हो। दिन भर जमाई बाबू के साथ घर में ही - ही करती रहती हो न, सो अच्छी बात नहीं है।"
लेकिन भला मिक्की किसको बात को मानने वालों में से थी, जो अपनी माँ की बात मान लेती।
और तो और...
वह उल्टे सीधे अपनी माँ को ही जवाब दे देती, - " अपना जीजा से न मज़ाक करें तो किससे करें..... तू हर बात में शक ही करने लगती हो.... ।"
जगदीश बाबू की पत्नी, मिक्की की इस बात पर यह सोचकर चुपचाप रह जाती कि घर में जमाई बाबू आयें हुए हैं, तो वो अपनी जवान बेटी के साथ ज्यादा तू - तू - मैं - मैं करेगी तो वों अनादर समझ लेगें। उन्हें लगेगा कि हमें यहाँ रहना सास-ससुर को अच्छा नहीं लग रहा है ।
इतना ही नहीं, और जगदीश बाबू की पत्नी यह बात बखूबी जानती थी कि अगर जमाई बाबू नराज हो गयें तो हो सकता है कि वो मेरी बेटी मोहनी से बदला लें। कोई भी माँ यह कैसे पसंद करेगी की मेरे कारण, मेरी बेटी का पति, मेरी बेटी को दुःख दे।
लेकिन जो होना है सो तो होकर ही रहेगा न। माता-पिता को चाहे जो सोचना है सोच ले, भाग्य में मोहनी को विधाता ने कुछ और ही लिख दिया था।
रोहन और मिक्की का हँसी - मजाक वाला जीजा - साली का रिश्ता कब परवान चढ़ा, यह तो मोहनी को भनक तक नहीं लग पायी। मोहनी तो अपने काम में व्यस्त रहती, और इधर रोहन, मिक्की में व्यस्त रहता।
समय के साथ....
यह रोहन का लगाव, मिक्की से हर सीमा पार करते हुए, वो सीमा भी पार कर गया जिसे उसे पार नहीं करना चाहिए था।.
एक दिन जब मोहनी घर पर नहीं थी, तब रोहन ने अपनी सारी हदें पार करते हुए मिक्की के सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया।
जिसे मिक्की ने बड़ी खुशी से स्वीकार कर ली, लेकिन इन दोनों के बीच सबसे बड़ा कोई काँटा था तो वह थी मोहनी।
इसलिए मिक्की ने- रोहन को मोहनी से तलाक लेने के लिए सलाह देते हुए बोली, - "अगर आप दीदी को तलाक दें दे... तो मैं जीवन भर क्या, जन्मों - जन्मों तक, आपको साथ देने का प्रोमिस करती हूँ ... ऐसे भी दीदी कि शादी कोई दीदी के मन से ठोड़िए आपको साथ हुई थी....!"
मिक्की के द्वारा बोली गई अंतिम वाक्य पर रोहन चौकते हुए बोला था, - "क्या...!?"
"शायद दीदी को एक लड़का से अफेयर था।"
मिक्की को इतना बोलते ही....
रोहन आश्चर्य भरे दुःख के साथ, बिफरते हुए मिक्की से बोल पड़ा , - "नहीं मिक्की नहीं, मोहनी ऐसी नहीं है! "
तब मिक्की ने रोहन के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए, फुसफुसाहट भरे आवाज में बताना शुरू की, -" बात एक डेढ साल पहले का है। बगल में एक लड़का रहता था जीजू ... जो अब यहाँ नहीं रहता है.. ... वो दीदी के शादी के बाद पागल सा हो गया था.... ऐसे वो लड़का तो दीदी के बारे में कुछ भी... कभी भी नहीं बोला था.... और नहीं दीदी ने ही कभी किसी से कुछ उसके बारे में बोली थी, लेकिन मोहल्ले वाले को भला कौन मुँह रोक सकता है ? वो दबी जुबान में अक्सर बोला करते थें, उस लड़का को बारे में जिसका नाम ऋतु राज था कि ऋतु राज मोहनी के चक्कर में पागल हो गया। मोहनी को जब ऐसा ही करना था तो वो किसी और से शादी क्यों की... दीदी के प्यार में पागल हो चुका ऋतु राज को, मोहल्ले वाले अक्सर दीदी से जोड़कर बातें खुब करतें रहें हैं। "
" क्या... ???"
-मिक्की के द्वारा बोली गई पुरी बात को सुनकर, रोहन के मुँह से एकाएक यह शब्द फूट पड़ा था, और साथ में चेहरा पर कुछ पल के लिए दुःख के साथ - साथ गुस्सा का भी भाव दिखाई देने लगे थें।
और उसको बाद रोहन अपने होठों पर एक जहरीली मुस्कुराहट के साथ, मन में एक भयंकर संकल्प लेते हुए धीमी आवाज में मिक्की से बोलना शुरू किया, -" नहीं.नहीं. ..ठीक है माई स्विट हार्ट, तब तो मोहनी को मेरी जिन्दगी में रहने का कोई अधिकार ही नहीं बनता.... ऐसे भी मुझे कुछ - कुछ लगता था कि मोहनी ने मुझे इतनी आजादी क्यों दे रखी है.... वो औरों की तरह मुझसे विहैब क्यों नहीं करती... .. मैं कहीं भी जाऊँ.... किसी से भी बात करूं... लेकिन उसको कोई फर्क ही नहीं पड़ता था.... बस जब देखो तब वो किताबों में ही खोई रहती थी... मुझे क्या पता था कि मोहनी के ह्रदय में कोई और रहता है...।
अब समझ में आया, वो तो बस मेरे साथ माँ-बाबू जी के द्वारा थोपी गई रिश्तें को निभाने में लगी हुई थी. ..।
कोई बात नहीं, जल्दी वो मेरी जिन्दगी से हट जायेगी। "
रोहन एक - एक शब्द गुस्से में चबाते हुए बोले जा रहा था, और इधर मिक्की रोहन की बातें सुनकर मन ही मन बहुत खुश होती जा रही थी, लेकिन वो अपने चेहरे पर खुशी का भाव नहीं ला रही थी।
इसके बाद...
- मिक्की ने अपना सिर रोहन के कंधों पर रखते हुए बोली,-" मैं तो आपको उसी दिन से चाहने लगी थी जिस दिन आपको पहली बार मैंने देखी थी, लेकिन मैं क्या करती,... आप तो मोहनी दीदी के भाग्य में थें न, इसलिए अपनी चाहत को अपने हीं अंदर दबाये रखने में हीं भलाई समझी और स्वयं से समझौता कर ली.. ।"
मिक्की को इस बात पर रोहन ने मिक्की को स्वयं से अलग करते हुए बोल पड़ा, -" कोई बात नहीं.. मैं हूँ न... बस तू देखते जाना... मैं मोहनी के साथ क्या करता हूँ । "
इतना बोलकर रोहन मिक्की के कमरा से बाहर निकल पड़ा।
और रोहन को गुस्से में बाहर जाते देख, मिक्की एक जहरीली मुस्कान होठों पर लाती हुई बुदबुदा उठी थी, -" दी दी... इसको बोलते हैं जहर...। ये हो ही नहीं सकता न... जिस चीज़ पर मिक्की हाथ रख दे, वो चीज़ चाहे कितनी भी किमती क्यों न हो.... मिक्की के कदमों में आ ही गिरेगी ... ।
और ये रोहन कौन सी गली का हैं..। मैं तो वो नागिन हूँ रोहन बाबू जिसका जहर दाँत में नहीं, जिस्म के सौंदर्य में रहती है... और तुने तो मेरे सौंदर्य को जी भरकर पीया है.... तो समझ लो तेरा हाल क्या होने वाला है ! "
समाप्तगि