एक समय था विश्व में,
जब भारत का गुणगान था,
श्रेष्ठतम सभ्यताओं में,
जब भारत सबसे महान था ॥
दुनिया है हमारा परिवार,
हमें सिखाया जाता था,
अहिंसा और धर्म का,
पाठ पढ़ाया जाता था ॥
अहिंसा की यह अवधि,
ज्यादा समय न टिक सकी,
शांति और समृद्धि की निधि,
आगे कभी न दिख सकी ॥
शांति के उस दौर में मानव,
प्रथम बार शर्मसार हुआ,
सभ्य जगत के उस युग में,
पशुत्व का विस्तार हुआ ॥
अहं के मद में चूर होकर,
भू पर विलीनता आ गयी,
ईर्ष्या की यह श्रृंग दावानल,
सब कुछ जला कर खा गयी ॥
दुनिया को राह दिखाने वाले,
खुद भटकते फिर रहे,
हिंसा की आग बुझाने वाले,
खुद ही उसमें गिर रहे ॥
भारती के बेटों की यह दशा,
आखिर कैसे हो गयी,
छोटे-छोटे बच्चों की हँसी,
जाने कहाँ खो गयी ॥
अगर चाहिए उन्नति तो,
मनुज में भेद मिटाना होगा,
हीनता को नष्ट करके,
राष्ट्र समृद्ध बनाना होगा ॥
तुम्हारी प्रगति का ध्वज,
युग-युग तक लहरायेगा,
कर संस्कृति पुनर्जीवित,
तेरा भारत फिरसे महान कहलायेगा ॥