आज हुई है भोर प्रखर,
हे पथिक, छोड़ ये बातें अपर,
भीषण होगा अब न्याय समर,
चल पड़ तू इस डगर-डगर ॥
जो बीत गया वह था ऊसर,
जो आएगा वह होगा उर्वर,
तोड़ दे तृष्णाओं के नखर,
चल पड़ तू इस डगर-डगर ॥
नाम तेरा कर दे तू अमर,
मन में रख मंतव्य प्रवर,
सामने तेरे उन्नति का शिखर,
चल पड़ तू इस डगर-डगर ॥
देह तेरी ये है नश्वर,
बीत गये अनेकों वत्सर,
कार्य कर ज्यों करते हैं अजर,
चल पड़ तू इस डगर-डगर ॥
उमंग से भर दे ये अम्बर,
बसा तू उत्साहों का नगर,
लगा तू उसमें पुलक निर्झर,
चल पड़ तू इस डगर-डगर ॥