लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना
डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह
सहायक प्रोफेसर (हिंदी)
राजकीय स्नाेतकोत्तर महाविद्यालय
जलेसर, एटा, उत्तर प्रदेश
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दलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्य की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो राजेंद्र यादव की ‘दो दिवंगत’ तथा रजनी गुप्त की ‘गठरी’ महत्वपूर्ण प्रारंभिक दलित संवेदना की लघुकथाएं हैं। इसके बाद ‘जूठन’ आत्मकथा संग्रह ने भी दलित चेतना को बहुत ही गंभीरता के साथ उठाया। हाल में इस कड़ी में एक ओर नाम जुड़ा और वह है ‘उखड़े पांव’ (डॉ.नंदलाल भारती) लघुकथा संग्रह का। प्रस्तुत संग्रह में 143 लघुकथाएं हैं।
लघुकथा को श्रेष्ठ एवं कलात्मक रूप देने के लिए आवश्यक तत्वों के निर्वहन, अर्थात् 1.शीर्षक,2.रूप-कौशल,3.कथा-कौशल,4.पात्र-योजना, 5. लक्ष्य-कौशल तथा 6.समाप्ति-कौशल, आदि की दृष्टि से नंदलाल भारती का यह लघुकथा संग्रह बहुत अच्छा है।
शीर्षक के तहत समाज में प्रचलित संसाधनात्मक नामों का उपयोग करते हुए उन्होंने ईमान, कमाई, सवाला, सरकारी टेंकर, एड्स, परिभाषा, ये इंडिया है, अस्पृश्यता, उपभोग, दीमक, नंगापन, परछाई, जाति, मंहगाई, बंटवारा, हवस, छुरी, दहेज की कार, अगुवाई, ब्याह की बेदी, भूखी उम्मीदें आदि के माध्यम से शीर्षक से ही स्पष्ट कर दिया है कि ये कथाएं आधुनिक समाज में दलितों की जीवन शैली को उकेरने वाली लघुकथाएं हैं।
रूप्ा कौशल तथा कथा कौशल की दृष्टि से भी इस संग्रह की रचनाएं अच्छी श्रेणी की हैं क्योंकि अधिकांश लघुकथाएं संक्षिप्त सारगर्भित एवं किसी न किसी समसामयिक विषय को छूती हैं। ‘ईमान’ कहानी के कथ्य को देखे तो ‘सुबह गदराई हुई थी लोग खुश थे क्योंकि उनके सूखते धान के खेत लहलहा उठे थे, बरसात का पानी पाकर। इसी बीच राजा बदमाश आ धमका अपने कई साथियों के साथ।’’(ईमान, पृष्ठ सं.15) अच्छी लघुकथा में विस्तार से बचाव अत्यावश्यक तत्व है और इसका निर्वाह कथाकार ने सम्पूर्ण संग्रह में किया है।
पात्र योजना की दृष्टि से कहानी ‘आराधना’, ‘कमाई’, ‘सवाल’, ‘जनून’, ‘गुमान’, ‘काली’, ‘राखी’, ‘ये इंडिया है’ एवं अन्य सभी में एक बहुत ही अच्छी बात है कि किसी भी कहानी में दो से तीन पात्रों रखे गए हैं। संवाद भी बहुत ही संक्षिप्त एवं सारगर्भित हैं- ‘जगदेव- बाबा दगाबाज लोग पूरी कायनात के लिए अपशकुन हो गए हैं। बाबा ये दगाबाज बेईमान मुखौटाधारी आदमियत के विरोधी लोग समाज और देश की तरक्कीब की राह में एड्स हो गए हैं।’’( एड्स, पृष्ठ सं.20)
नंदलाल भारती ने लघुकथाओं में तीखे व्यंग्य का भी भरपूर सहारा लिया है। ‘ मैडम रोहिनी- आज की मजदूरी तो गयी।.....बाई- मैडम जी गयी तो जाने दो। मैं तो संतोष के धन में खुश रहती हूं। अधिक रूपया से घमंड आता है, कहते हुए बाई अपनी झोपड़ी में चली गयी। मैडम रोहिनी माथे पर भारी सिकन लिए कुत्ते के साथ आगे बढ़ गई।’’(घमंड, पृष्ठ सं; 24)
समाज में अस्पृश्यता दलित वर्ग के जीवन के साथ प्रारंभ होती है और अंतिम सांस तक चलती रहती है। यहां तक सरकारी जलसों, सार्वजनिक कार्यक्रमों तक में दलितों का प्रवेश वर्जित होता है। इसी भावना को प्रस्तुत करती है लघुकथा ‘अस्पृृश्यता’। ‘नंगापन’ कहानी सवर्णों के आंतरिक नंगेपन को उघाड़ती है-‘दीनानाथ- रामू काका मध्यम कद काठी, ऊंची योग्यता नन्हा ओहदा, उत्पीड़न शोषण का शिकार, इल्जामों का बोझ, पग पग पर परीक्षा देते विजय का कर्मपथ पर आगे बढ़ना। दंभी मानसिक नंगे, लोगों की आंखों का सकून छिन रहा था। विजय की कराह पर ताली बज उठतीं। मुड़कर देखने पर आचरणहीनता, दुर्व्यव्यवहार तैयार हो जाता।’’ (नंगापन, पृष्ठ सं. 46)
‘जाति’ लघुकथा सवर्णों का दलितों को देख भी न पाने की मानसिकता को उजागर करती है-‘शहर में शिफ्ट हो चुके जमींदार साहब के बेटे के ब्याह की रिशेप्सन पार्टी का न्यौरता पाकर व्योम भी हाजिर हुआ। व्योम को देखकर जमींदार यादवेंद्र के चचेरे भाई दरिदेंद्र का खून खौल गया। वह व्योम को एक ओर ले जाकर गाली देते हुए बोला –अरे तू छोटी जाति का है। हमारी बिरादरी के लोगों के साथ खाना खा रहा है। कुछ तो शरम करता।’’ (जाति, पृष्ठ सं.51) इस लघुकथा में नंदलाल भारती ने ‘तू मेरा हुक्का पानी बंद करवाएगा क्या ? तुम्हारा छुआ खाना कौन खाएगा ? तुम्हारा छुआ पानी कौन पीएगा? अरे जितनी भी बड़ी डिग्री ले ले तू , रहेगा छोटी जाति का ही ना? आदि सवालों को एक सवर्ण के मुंह से कहलवा कर प्राचीन काल से चली आ रही दकियानूसी सोच का प्रस्तुत करते हुए एक दलित द्वारा उसके प्रत्युत्तर से स्पष्ट किया है कि अब दलित पहले जैसे गाली सुनकर चुपचाप चले जाने वाले नहीं रहे उनमें भी स्वाभिमान आ चुका है। ‘व्योम’ बोला दरिदेंद्र वक्तै बदल चुका है। छोटी जाति के लोग बड़े बड़े मान सम्मान पा रहे हैं, पूजे तक जा रहे हैं। तुम अमानुषता की लकीर पीट रहे हो। जातिवाद की दीवारें ढह चुकी हैं।’’ (जाति, पृष्ठ सं.51)
शैली, संवेदनीयता और उसका कला-पक्ष के हिसाब से भी रचनाएं अच्छी बन पड़ी हैं। साथ ही प्रस्तु़तीकरण जो कि लघुकथा में प्राणों की भूमिका का निवर्हन करता है, के विचार से भी प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाएं बहुत ही श्रेष्ठ हैं और प्रत्येक कथा अपने समापन पर कोई न कोई तीखा संदेश देते हुए ही समाप्त की गई ताकि उसकी चुभन पाठक के दिलोदिमाग को झंकझोरती रहे। प्रस्तुतीकरण की शैली भावात्मक अधिक है । वर्णनात्मककता से बचते हुए भावों की चित्रात्मकता पर अधिक बल दिया गया है।
लधुकथा की प्रस्तुति में उत्तम पुरुष,मध्यम पुरुष और प्रथम पुरुष की शैली का उपयोग किया जाता है। नंदलाल भारती ने भी इन सभी माध्यमों का प्रयोग करते हुए लघुकथा लेखन पर अच्छी पकड़ होने का परिचय दिया।
वैसे तो यह लघुकथा संग्रह दलित विमर्श की रचनाओं को अपने आप में समेटे हुए है परंतु इसमें एक विशिष्टता यह भी है कि इसमें सामाजिक बुराईयों, जातीय भेदभाव, राजनीतिक पैतरेबाजी, सरकारी भ्रष्टाचार आदि के साथ-साथ दलितों के प्रति सवर्णों मानसिकता को प्रस्तुत करते हुए दलितों के मनोविज्ञान को भी बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है।
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समीक्षित कृति – उखड़े पांव
लेखक - डॉ. नंदलाल भारती
आईएसबीएन- 978-93-83237-40-1
मूल्यी – 295/-
प्रकाशक – यश पब्लिकेशंस, नवीन शाहदरा, दिल्ली.-110032