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मेरा रचना संसार की डायरी

मेरा रचना संसार

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mera rachna sansar ki dir

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पुस्तक के भाग

1

बेमिशाल हास्‍यव्‍यंग्‍यकार काका हाथरसी

28 सितम्बर 2015
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बेमिशाल हास्‍यव्‍यंग्‍यकार काका हाथरसी पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के हाथरस में 18 सितंबर 1906 को वेमिशाल हास्‍यकार काका हाथरसी का जन्म हुआ। 15 वर्ष की आयु में ही पिता जी के गुजर जाने के बाद काका ने भयंकर ग़रीबी में भी अपना जीवन संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्ष

2

मौन

8 अक्टूबर 2015
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मौन प्रेम कसकपीड़ा का भंडारबबंडरअपार।

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सत्य

9 अक्टूबर 2015
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Dr. Vijendra Pratap Singh: जमीन अकालग्रस्तमरताइंसानसंस्कारअकालग्रस्तमरतीमानवता।

4

गलतफमियों की हद

10 अक्टूबर 2015
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गलतफमियों की हद तब पता चली ? ?जब मैने उससे कहारुको . . . . मत जाओ और उसने सुना रुको मत . . . . . जाओ ।।

5

हसरत

12 अक्टूबर 2015
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अक्सरहोती नहीं पूरी हसरत-ए-तारीफ़ अंतिम संस्कार तक।

6

ऐबे कविता

13 अक्टूबर 2015
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निरंतरटांगोंकीखींचातानीसब अनाड़ीसब खिलाड़ी।.-------------–------------------

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ऐबे कवुत

13 अक्टूबर 2015
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[13/10 23:53] Dr. Vijendra Pratap Singh: थोथाचनाबाजाघनाचैनबचानचबैना।[13/10 23:58] Dr. Vijendra Pratap Singh: खालीदिमागखालीजेबकीखुलखुलाहटसबपैभारी।

8

लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना

23 अक्टूबर 2015
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लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंहसहायक प्रोफेसर (हिंदी)राजकीय स्नाेतकोत्तर महाविद्यालयजलेसर, एटा, उत्तर प्रदेशमोबाइल – 7500573935Email – vickysingh4675@gmail.comदलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्य की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो

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लघुकथाकार नंदलाल भारती का लघुकथा संग्रह

23 अक्टूबर 2015
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लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंहदलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्य की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो राजेंद्र यादव की ‘दो दिवंगत’ तथा रजनी गुप्त की ‘गठरी’ महत्वपूर्ण प्रारंभिक दलित संवेदना की लघुकथाएं हैं। इसके बाद ‘जूठन’ आत्

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अनहद कृति - hindi poetry

23 अक्टूबर 2015
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http://anhadkriti.com

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संकल्प \थर्ड जेंडर पर कहानी

29 अप्रैल 2017
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माधुरी आज बहुत खुश थी क्योंकि उसने आज अपनी छोटी बहन का विवाह कर उसके जीवन को समाज द्वारा निर्धारित जीवन रेखा में शामिल करने में सफलता हासिल कर ली थी। पिता त्रिलोचन भी बहुत खुश थे क्योंकि आज माधुरी ने वो कर दिखाया था जो उसके परिवार का बेटा करता। माधुरी पिता के ठेला लेकर चले जाने के बाद दरवाजा बंद घ

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