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संकल्प \थर्ड जेंडर पर कहानी

29 अप्रैल 2017

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माधुरी आज बहुत खुश थी क्योंकि उसने आज अपनी छोटी बहन का विवाह कर उसके जीवन को समाज द्वारा निर्धारित जीवन रेखा में शामिल करने में सफलता हासिल कर ली थी। पिता त्रिलोचन भी बहुत खुश थे क्योंकि आज माधुरी ने वो कर दिखाया था जो उसके परिवार का बेटा करता। माधुरी पिता के ठेला लेकर चले जाने के बाद दरवाजा बंद घर के अंदर आ गई। टेलीविजन पर बार-बार समाचार प्रसारित हो रहा था कि ‘‘थर्ड जेंडर को भी अब समाज में सम्मान प्राप्त होगा, वे भी सम्मानजनक जीवन जी सकेंगे।‘‘ माधुरी सोच में पड़ गई आखिरी क्या होगा, हिजड़ा समुदाय का? सोचते सोचते वह पहुंच गई अपने बचपन से अब तक के जीवन में, जब उसकी छोटी बहन को जन्म देते ही उसकी मां दुनियां को अलविदा कह कर चली गई। उस समय उसे थोड़ा-थोड़ा ध्यान है जचकी घर में हो रही थी उसके पिता के सिवाय कोई नहीं था घर में। उसने पास पड़ोस में भी बच्चों का जन्म होते देखा था किंतु वहां पास-पड़ोस की महिलाएं आ जाती थी परंतु उसके घर कोई नहीं आया था। उसकी समझ में यह बात जब वह बड़ी हुई तब आई। उसके घर पास-पड़ोस की महिलाओं के न जाने की वजह वह खुद थी, क्यों कि वह हिजड़ा पैदा हुई थी। उसके पुरूष के समान लिंग नहीं था और न ही स्त्री के समान योनि। योनि के स्थान पर थे तो सिर्फ दो छिद्र। एक लड़के की आस थी उसके मां-बाप को परंतु जब हिजड़े के रूप में वह पैदा हुई तो मुहल्ले वाले लोगों ने उसके परिवार से मुंह मोड़ लिया। उसके पिता ने सुंदर एवं मनोहर होने के कारण उसका नाम खुद ही मधुर रख दिया था। बमुश्किल वह मधुर के रूप में सात वर्ष की रही होगी फिर से उसकी मां के बच्चा पैदा होने वाला था और बच्चा पैदा होते ही मां आंखें इस संसार को अलविदा कह बंद हो गयी। पिता त्रिलोचन सिंह गरीब व्यक्ति था, जो पहले कपड़े सिलने का कार्य करता था, परंतु अचानक उसका मानसिक संतुलन खराब हो जाता है और मुहल्ले वालों ने पागल करार दे दिया। नन्हें मधुर के कंधों पर मानसिक रूप से असंतुलित पिता और भाई को संभालने का दायित्व आ गया। सुखी के सब साथी दुखी ना कोय, बाली बात उसके जीवन में चरितार्थ हुई, कोई भी उसे और छोटी बहन को एक गिलास पानी देने वाला भी न था। नन्हीं सी जान मधुर करता भी क्या? भीख मांगने के अतिरिक्त उसके पास कोई विकल्प नहीं रहा। परंतु जाको राखे साईंया मार सके न कोई या आवश्यकता आविष्कार की जननी है कहा जाए तो भी ठीक होगा। ईश्वर ने उसे ऐसी समझ दी, जिससे उसने भीख मांगने के लिए किसी के साथ हाथ नहीं फैलाये। नन्हें मधुर ने बहन को पीठ पर बांधकर कचरा, रद्दी बीन-बीन कर कबाड़ियों को बेचकर पिता, बहन और अपना पेट पालना शुरू किया। दूध के बजाय बहन को चाय पिला-पिलाकर पालना शुरू किया। मां का स्नेह व भाई का प्यार देते देते वह 14 वर्ष का हो गया। छोटी बहन सात वर्ष की। हालात इंसान को संभलना सिखा ही देते है बहन ने भी अब मधुर को देखते-देखते काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। जैसे-तैसे जीवन गुजरने लगा। पिता भी थोड़ा ठीक होने लगे और मुंगफली का ठेला लगा कुछ कमाने लगे। मधुर बचपन से हिजड़ा था या नहीं इस संबंध में तो वह स्वयं नहीं जानता था परंतु प्रकृति अपना रंग हर रूप में दिखाती है। उसकी चाल ढाल में लड़कियों जैसा लोच, लहराव आ रहा था और सुंदरता देने के मामले में ईश्वर कुछ ज्यादा ही मेहरवान हुआ था। धीरे-धीरे उसे अपने शरीर में अजीब से एहसास होने लगे। दुनियां की नजर में वह लड़का था, परंतु मुझे लड़को के साथ उठने बैठने की इच्छा कम होती और लड़कियों के साथ रहने में अच्छा लगता। लड़कियां उससे दूर भागती और लड़के उसे छेड़ते इसलिए वह उनसे दूर भागता। उसकी छाती में अजीब सा खिंचाव महसूस होता। धीरे-धीरे उसकी छातियों में लड़कियों जैसा उभार आने लगा है। सब उसे जनका...जनका कहकर चिढ़ाने लगे। कुछ लोग डांटते और कहते लड़का है लड़कों के साथ रहा कर... पर उसका मन लड़कों की तरफ आकर्षित तो होता और एक लड़की की तरह उसे भी लगता कि मेरा भी कोई बॉॅयफ्रेंड हो, जैसा और लड़कियों के थे, कोई मुझसे भी प्यार करे। मेरी भी शादी हो.....बच्चे पैदा करूं। इसी लालसा में वह लड़कों के नजदीक जाता, परंतु वे उसे छेड़ते और गाली देकर भगा देते। वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी होता। दुत्कार अंदर तक छलनी कर जाती। वह सोचता मैं तो पूरी तरह लड़की हूं, सुंदर हूं, सलवार शूट में देखने पर माधुरी दीक्षित जैसी हूं। नाम तो उसका मधुर था ही और उसके अंदर की स्त्री माधुरी की फैन थी, माधुरी दीक्षित के हर गाने पर जब मैं थिरकती तो देखने वाले दांतों तले अंगुली दबा लेते। लोग अच्छे डांस के लिए शाबासी देते। पर कोई प्यार नहीं करता। डांस ने ही उसे जिंदा रखा! उसने खुद को माधुरी कहना शुरू कर दिया। वह मधुर से माधुरी बन गयी। वह खुद को माधुरी कहलवा कर बहुत खुश होती। इसी से रोजी रोटी चलने लगी। शादी विवाह एवं अन्य अवसरों पर डांस पार्टियों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनमें उसे काम मिलने लगा। इससे आमदनी बढ़ी और उसकी बहन तथा पिता को ढंग से कपड़े एवं दो वक्त की रोटी मिलने लगी। पिता और उसकी आय से जिंदगी ठीक ठाक चलने लगी। बहन की शादी में उसे शरीफ और रसूखदार लोंगों की तरह कोई दिक्कत नहीं आई। वजह स्पष्ट थी उसे अपनी बहन के लिए कोई धन्ना सेठ तो चाहिए नहीं था और न ही कोई गरीब की बेटी से विवाह करने राजकुमार आता,सो उसने डांस पार्टी में म्युजिक सिस्टम चलाने वाले लड़के से विवाह तय कर दिया। लड़के का भी कोई था नहीं दुनियां में, जो ना नकूर होती। एक दुखी ने दूसरे दुखी को सहारा दिया। और आज माधुरी 21 वर्ष की हो गई । सिवाय पिता और उसके कोई न बचा था। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक से उसकी तंद्रा भंग हुई और वह यथार्थ में आ गई। दरवाजा खोलते ही, देखा, पारूल हिजड़ा खड़ी थी। पारूल उसकी सहेली थी। वह हिजड़ों की टोली में उनकी बस्ती में ही रहती थी। पारूल ने उससे कहा कि गुरूमाई ने उसे बुलाया है। गुरूमाई ‘‘शांति‘‘, एक बुचरा हिजड़ा थी और दिल से नेक थी। उसने माधुरी को कभी अपनी साथ घर-घर जाकर नेग मांगने के लिए मजबूर नहीं किया। माधुरी वस्तुतः बुचरा हिजड़ा थी। वह पारूल के साथ गुरूमाई से मिलने गई। उसने सूचना दी कि पूरी टोली मद्रास के जा रही है वहां अरावन की पूजा होती है और अभी तक माधुरी का संस्कार नहीं हुआ है। उसे भी चलना है पर माधुरी ने पिता की तकलीफ का हवाला देते हुए जाने से इनकार कर दिया। गुरूमाई जानती थी कि माधुरी पिता से बहुत स्नेह करती है और पिता भी उसे बहुत चाहता है। अतः उसने भी जिद नहीं की। गुरूमाई के घर से लौटते समय अंधेरा हो गया था। सर्दियों के दिन थे। कोहरा छाया हुआ था। माधुरी शहर के सभ्य, नौकरी पेशा लोगों से मुहल्ले से होकर अपने घर की ओर बढ़ रही थी। बिना किसी डर या छिछक के तभी अचानक पीछे से किसी ने उसका मुंह बंद कर उठाकर कर एक घर के गेट के अंदर कर लिया। उसे कुछ समझ में आ पाता,घर के अंदर उसके सामने एक तगड़ा पुलिसिया जवान खड़ा था। माधुरी अंदर ही अंदर डर गई, आखिर पुलिस वाले ने उसे इस तरह क्यों खींच लिया। पुलिस वाले व्यक्ति ने उससे प्यार से बातें की और उसके साथ संभोग की इच्छा जाहिर की। माधुरी ने मना किया तो पुलिसिया रौब दिखाते हुए उसने माधुरी के बलात्कार कर डाला। माधुरी के जीवन में ये पहला अनुभव था और उसे आज ही पता चला कि हिजडों से भी सेक्स कर किया जा सकता है। रात भर पुलिस वाला माधुरी के शरीर को बेरहमी से रौंदता रहा। सुबह तड़के ही उसने माधुरी के मुंह पर दो हजार फेंके और किसी का इसकी खबर तक न होने देने की धमकी देते हुए घर से भगा दिया। माधुरी से चला भी न जा रहा था। वह जैसे तैसे गुरूमाई के घर पहुंची और रात का सारी घटना सुना दी। गुरूमाई से ही पता चला कि बुचरा हिजड़े, जो औरत ज्यादा होते हैं। उनके योनि जैसी आकृति कम उन्नत होती है और उनके साथ औरत की तरह सेक्स किया जा सकता। गुरूमाई के साथ वह एक डाक्टर के पास गई। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया। कई बात बेरहमी से इस्तेमाल के कारण माधुरी का पेशाव मार्ग चोटिल हो गया है। कुछ दिन आराम के बाद ठीक हो जाएगा। माधुरी के दिमाग में गुरूमाई की बुचरा हिजड़ों के योनि होने की बात दिन रात घूमने लगी और एक दिन वह डॉक्टर के पास अकेली पहुंच गई । डॉक्टर से स्पष्ट पूंछा क्या वह औरत बन सकती है। डॉक्टर ने सोनोग्राफी की और पाया कि माधुरी के अंदर भ्रूण उपस्थित है। उसने कहा-‘‘माधुरी तुम औरत बन सकती है।......पर इसका ऑपरेशन करना होगा और ऑपरेशन में बहुत खर्च आएगा।...तुम पैसों का इंतजाम कर सकती हो तो मैं तुम्हें एक डॉक्टर साहिबा में गाजियाबाद में उनके पास भेजूंगा। और ईश्वर ने चाहा तो तुम पूरी तरह औरत बन जाओगी।‘‘ माधुरी ने ये बात किसी को नहीं बताई। उस दिन से उसने ठान लिया कि वह पूरी तरह औरत बनेगी और इस दुनिया को दिखा कर रहेगी कि हिजड़ा भी बहुत कर सकते हैं । अपनी अभिशप्त जिंदगी को सुधार सकते हैं। भले ही कानून हो या न हो। वैसे भी उसे कानून और कानून वालों पर कतई भरोसा नहीं था क्योंकि वह आए दिन पुलिस वालों की जनता एवं हिजड़ों के प्रति रूद्र व्यवहार देखती। पुलिस वालों को वह गुंडों से भी ज्यादा खराब समझती थी। अपनी मदद करने वाले की ही ईश्वर भी मदद करता है। उस दिन के बाद से उसने मेहनत करने में दिन रात एक कर दिया। साल भर अनगिनत, शरीर को थका देने वाले डांस प्रोग्राम दिए। मंडलियों, शादी ब्याह, जहां भी मिला वहां प्रोग्राम किए और वो दिन भी आ गया जब उसके पास अच्छी रकम जमा जमा हो गई। वह फिर डॉक्टर के पास जा पहुंची, वहां से गाजियाबाद गई और छः महीने बाद वापस आई तो उसकी दुनियां बदली चुकी थी। वहां लेडी गायनों ने उसे बताया कि-उसके जैसे मामले बहुत कम होते हैं। उनके जीवन में 40 वर्ष से अधिक की चिकित्सीय सेवा में कुल चार ही मामले आए हैं। उसके शरीर में योनि के स्थान पर दो छेद हैं और अंदर गर्भाशय है ही। हिजडे, जिनमें स्त्री प्रवृत्ति अधिक होती है उनमें मासिक धर्म भी होता है परंतु मार्ग न होने के कारण मानसून शरीर में ही जमा होता रहता है। कुछ लोगों के गर्भाशय नहीं होता है उन्हें भी औरत बनाया जा सकता है परंतु वे पत्नी धर्म तो निभा सकती है पंरतु मां नहीं बन सकती हैं। तुम्हारे मामले में ये अच्छी बात है कि गर्भाशय है। प्लास्टि सर्जरी के माध्यम से उसे यानि के आकार में परिवर्तित किया जा सकता है और वह पूरी तरह से औरत बन जाएगी। अधिकांश लोग जानकारी के अभाव में या चिकित्सक से बिना परामर्श लिए ही यह मान लेते हैं कि ये तो हिजड़ा है और कभी ठीक नहीं होगा परंतु ऐसा नहीं है। हां इतना अवश्य है कि ज्यादातर मामले ठीक न होने वाले होते हैं परंतु बहुत से मामलों में ऑपरेशन या प्लास्टिक सर्जरी के माध्यम से हिजड़ों को ठीक किया जा सकता है।‘‘ लगभग तीन चार महीनों के इलाज के बाद माधुरी वापसी आई और वह भी पूर्ण स्त्री के रूप में। हिजड़ा शब्द उसकी जिंदगी को अभिशप्त बनाने के लिए अब उसके साथ नहीं था। वह एक पूर्ण स्त्री थी। उसने जहां चाह वहां राह वाली कहावत को चरितार्थ कर दिखाया था।
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बेमिशाल हास्‍यव्‍यंग्‍यकार काका हाथरसी

28 सितम्बर 2015
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बेमिशाल हास्‍यव्‍यंग्‍यकार काका हाथरसी पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के हाथरस में 18 सितंबर 1906 को वेमिशाल हास्‍यकार काका हाथरसी का जन्म हुआ। 15 वर्ष की आयु में ही पिता जी के गुजर जाने के बाद काका ने भयंकर ग़रीबी में भी अपना जीवन संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्ष

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मौन

8 अक्टूबर 2015
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मौन प्रेम कसकपीड़ा का भंडारबबंडरअपार।

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सत्य

9 अक्टूबर 2015
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Dr. Vijendra Pratap Singh: जमीन अकालग्रस्तमरताइंसानसंस्कारअकालग्रस्तमरतीमानवता।

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गलतफमियों की हद

10 अक्टूबर 2015
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गलतफमियों की हद तब पता चली ? ?जब मैने उससे कहारुको . . . . मत जाओ और उसने सुना रुको मत . . . . . जाओ ।।

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हसरत

12 अक्टूबर 2015
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अक्सरहोती नहीं पूरी हसरत-ए-तारीफ़ अंतिम संस्कार तक।

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ऐबे कविता

13 अक्टूबर 2015
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निरंतरटांगोंकीखींचातानीसब अनाड़ीसब खिलाड़ी।.-------------–------------------

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ऐबे कवुत

13 अक्टूबर 2015
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[13/10 23:53] Dr. Vijendra Pratap Singh: थोथाचनाबाजाघनाचैनबचानचबैना।[13/10 23:58] Dr. Vijendra Pratap Singh: खालीदिमागखालीजेबकीखुलखुलाहटसबपैभारी।

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लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना

23 अक्टूबर 2015
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लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंहसहायक प्रोफेसर (हिंदी)राजकीय स्नाेतकोत्तर महाविद्यालयजलेसर, एटा, उत्तर प्रदेशमोबाइल – 7500573935Email – vickysingh4675@gmail.comदलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्य की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो

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लघुकथाकार नंदलाल भारती का लघुकथा संग्रह

23 अक्टूबर 2015
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लघुकथाकार नंदलाल भारती और दलित चेतना डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंहदलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्य की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो राजेंद्र यादव की ‘दो दिवंगत’ तथा रजनी गुप्त की ‘गठरी’ महत्वपूर्ण प्रारंभिक दलित संवेदना की लघुकथाएं हैं। इसके बाद ‘जूठन’ आत्

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अनहद कृति - hindi poetry

23 अक्टूबर 2015
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