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भर्तृहरि वैराग्य शतक

27 जनवरी 2015

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!!ॐ!! धनानि भूमौ पशवः हि गोष्ठे, नारि गृहद्वारि जनाः श्मशाने ! देहश्चितायाम् परलोक मार्गे, धर्मानुगो गच्छति जीवः एकः !! शरीर शांत होने पर धन सम्पदा भूमि पर ही पड़ी रह जाती है, पशु अस्तबल में रह जाते हैं [वर्तमान संदर्भ में मोटर गाडियाँ], पत्नि घर के द्वार तक साथ देती है, बंधुजन श्मशान तक साथ चलते हैं और अपनी स्वयं की देह चित्ता तक ही साथ देती है । तत्पश्चात परलोक मार्ग पर जीव को अकेला ही जाना होता है । केवल धर्म ही उसका अनुगमन करता हुआ चलता है ।

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