चोरी-चोरी जब नजरें मिली
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चोरी-चोरी जब नजरें मिली।
तन-बदन मे थी आग लगी।
खिला दिल का कोना-कोना,
पिया मिलन की आस जगी।
यौवन की रुत बड़ी हरी-भरी,
प्यासे मन की प्यास बढ़ी।
चाँद सा मुखड़ा क्या कहने,
अंग-अंग में खलबली मची।
मुंगेरी लाल के हसीन सपने,
धड़कनों की तीव्र गति बढ़ी।
मनसीरत ने खोई सुध बुद्ध,
नयनों से थी की गोली चली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)