*लगी नैनों में सावन झड़ी*
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लगी नैनों में सावन झड़ी,
गौरी जिद्द पर अपनी अड़ी।
खिलौना जान कर है तोड़ा,
किया नहीं तरस भी थोड़ा,
टूटे दिल की कीमत है बड़ी।
लगी नैनों में सावन झड़ी।
प्रेम का खेल बहुत निराला,
पीना पड़ता विष का प्याला,
जान सूली पर सदैव पड़ी।
लगी नैनो में सावन झड़ी।
हर कोई है जां का दुश्मन,
सदा आती हजारो अड़चन,
टूटती नही दुखों की लड़ी।
लगी नैनो में सावन झड़ी।
मनसीरत मजनू मन मेरा,
कब होगा प्रेम का सवेरा,
आकर आंगन गोरिया खड़ी।
लगी नैनो में सावन झड़ी।
लगी नैनो में सावन झड़ी।
गौरी जिद्द अपनी खड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)