अना को बेच कर अब हम तेरे शहर-ए-वफ़ा में दाखिल हैं !
के जिसको चाहते थे हम तू वो सूरत दिखा और....जाने दे !!
यहाँ से लौट कर तन्हा ही रहना है मुझे अब उम्र भर !
तू मुहब्बतो की कोई कीमत फिर लगा और......जाने दे !!
जिन्हे गुमराह करती हैं तुम्हारी झील सी आँखें उन्हे !
मेरे हाल-ए-वफ़ा की दास्ताँ बेशक़ सुना पर.....जाने दे !!
लहरों का हमसफर हूँ मैं ,सो समन्दरो ही पे नाज़ है !
मुझे साहिलों से क्या राबता मौजों का ही हो......जाने दे !!
ये जो बरस रहा है तुझ पर कोई आसमानी हूनर नहीं !
मेरे आसुओं का बयान है इसे हदों से गुज़र.....जाने दे !!