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अना को बेच कर अब हम तेरे

28 जनवरी 2015

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अना को बेच कर अब हम तेरे शहर-ए-वफ़ा में दाखिल हैं ! के जिसको चाहते थे हम तू वो सूरत दिखा और....जाने दे !! यहाँ से लौट कर तन्हा ही रहना है मुझे अब उम्र भर ! तू मुहब्बतो की कोई कीमत फिर लगा और......जाने दे !! जिन्हे गुमराह करती हैं तुम्हारी झील सी आँखें उन्हे ! मेरे हाल-ए-वफ़ा की दास्ताँ बेशक़ सुना पर.....जाने दे !! लहरों का हमसफर हूँ मैं ,सो समन्दरो ही पे नाज़ है ! मुझे साहिलों से क्या राबता मौजों का ही हो......जाने दे !! ये जो बरस रहा है तुझ पर कोई आसमानी हूनर नहीं ! मेरे आसुओं का बयान है इसे हदों से गुज़र.....जाने दे !!
Pankaj Mishra

Pankaj Mishra

Rajeev ji ye rachnaaye hamaari hain......kisi aur ki rachnaaye hoti to naam mention kiya hota.....

28 जनवरी 2015

राजीव गुप्ता

राजीव गुप्ता

मिश्रा जी, किसके द्वारा रचित है यह रचना?

28 जनवरी 2015

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अना को बेच कर अब हम तेरे

28 जनवरी 2015
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अना को बेच कर अब हम तेरे शहर-ए-वफ़ा में दाखिल हैं ! के जिसको चाहते थे हम तू वो सूरत दिखा और....जाने दे !! यहाँ से लौट कर तन्हा ही रहना है मुझे अब उम्र भर ! तू मुहब्बतो की कोई कीमत फिर लगा और......जाने दे !! जिन्हे गुमराह करती हैं तुम्हारी झील सी आँखें उन्हे ! मेरे हाल-ए-वफ़ा की दास्ताँ बेशक़ सुना

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आँखें बंद होती हैं और दरिया भी सुख जाते हैं !

28 जनवरी 2015
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आँखें बंद होती हैं और दरिया भी सुख जाते हैं ! टूटे ख्वाबों का ज़ख़्म हम आँखों मे यूं छुपाते हैं !! आपकी बंदगी मे कुछ भी नही हासिल हुआ है लेकिन ! हमारी राहों से अक्सर आपके दीवाने रूठ जाते हैं !! टूटा था जहाँ दिल, यकीन-ए-आशिक़ी दफ़न है जहाँ ! वहाँ के लोग सुना है के अब शीशों से घर बनाते हैं !! उन्ह

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