@दहेज के नए परिणाम @
ससुरे तुमहारी डाटर,
पीती हैं रोज क्वाटर।
मुझको चबा रही है,
चखना समझ समझ कर ।
जब से दहेज देकर ,
तुमने मुझे ख़रीदा।
हर रोज कूटती है,
कहकर मुझे मलीदा ।
तुमने विदा की गैया,
अब सांड बन गई है।
मुझको डरा रही है,
नकुए फुला फुला कर ।
ससुरे तुमहारी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूजा है पीछे ऑगन,
मुंह लाल कर रही है।
ऑंसू का जाल बुनकर,
डंडे खिला रही है।
थाने में की रिपोटें,
धारा दहेज लिखकर ।
कहती है जेल भेजूं,
मुझको डरा डरा कर।
ससुरे तुमहारी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
महफिल की मै नचनियाॅ,
हर रोज बन रहा हूँ।
लाइफ हुई है तबला,
मुजरा में कर रहा हूँ।
विस्की की रोज बोतल,
खुद ही चढ़ा रही है ।
वो बन गई है रिस्की,
सोडा मिला मिला कर।
ससुरे तुमहारी,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ये सास की निशानी,
साली की मेहरबानी।
सालों की मुस्कराहट,
लुटती मेरी जवानी ।
मै बन गया कैलेन्डर,
डायपर बदल बदल कर ।
अब हो गया हूँ टकला,
दारू पिला पिला कर ।
ससुरे तुमहारी,,,,,,,,,,,,,,,,
वापस बुलाओ जन्नत,
तुम ही रहम दिखा कर।
माँ बाप है परेशाॅ,
थाने में रोज जाकर ।
क्या दूँ दहेज वापस,
घर द्वार बिक गया है।
ईमान हिल गया है,
रिश्वत खिला खिला कर ।
ससुरे तुमहारी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मुझको चबा रही है,
चखना समझ समझ कर।
(भूपेंद्र "भोजराज"भार्गव)