🙏✍ फिर फेल हो गया ✍🙏
प्रेम साहित्य छोरा,
सोलह मे पढने लगा था।
रसायन के प्रयोग मे,
लव फार्मूले खोजने लगा था।
विज्ञान की तितलियाॅ,
रात मे सताती थी,
गणितीय गणना मे,
गोलाई मापने लगा था।
रात भर की पढ़ाई,
रंग लाने वाली थी।
मस्तिष्क की किताब,
इतिहास से खाली थी।
भूगोल का खेल,
संस्कृत ने विगाडा था।
अप्रैल की परीक्षा,
मार्च मे होने वाली थी।
रस की तरंगो से,
बेखबर हिन्दी थी।
काल्पनिक रचनाओ मे,
प्रेम की बिन्दी थी।
अक्षरो मे इंग्लिश,
समझ से बाहर।
दिमाग के संसार की,
फटी पडी चिंदी थी।
उत्तर पुस्तिका मे,
दिल के अरमान भरे।
बाप की जेब से,
चोरी के अहसान भरे।
फूट फूट रोई ऑखे,
और क्या लिख दूं।
एक और एक्स्ट्रा कापी,
अब कैसे भरे।
प्रथम प्रश्न पत्र मे ही,
शून्य भाव उतराने लगे।
परिणाम की प्रतीक्षा मे,
बाप सिर खुजाने लगे।
मिठाईयो की मिठास,
कडवी हो चली।
समाचार पत्र मे बाप,
रोल नंबर मिलाने लगे।
गालियों की सुनामी,
चलने ही वाली थी ।
बाप संग बहन भी,
कूटने वाली थी।
सुनो तुम्हारा लाल,
फिर फेल हुआ है।
बस माॅ ही बची थी,
जो बचाने वाली थी।
प्रेम साहित्य कारीगर,
अब कविता लिख रहा है।
यादों की जीवनी को,
तुमसे साझा कर रहा है।
माॅ ही पूछती है,
क्या कमा खाएगा।
विचारो की वीणा,
शब्दों से बजा रहा है।
भूपेंद्र भोजराज भार्गव