अक्सर जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही नौजवान पीढ़ी अपने लक्ष्य से भटक जाती है। जवानी के अल्हड़पन में उनसे अनजाने में ही सही कुछ ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिसका पछतावा उन्हें उम्र भर करना पड़ता है। नौजवान पीढ़ी पर सबसे ज़्यादा दबाव होता है अपने साथी दोस्तों का। और उनकी बात मानना कभी - कभी इतनी ज़रुरी हो जाती है कि सही और ग़लत में फैसला करना उनके लिए कठिन हो जाता है। यह कहानी भी इसी मुद्दे को नज़र में रखकर बुनी गई है। नौजवान कॉलेज के छात्रों की आपस में की गई मस्ती उन पर कितनी भारी पड़ सकती है, यह कहानी उसी पहलू को दर्शाती है।
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