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मैं दीपिका कुमारी दीप्ति करहरा पालीगंज पटना की रहनेवाली हूँ । मैं एम.एच.डी. की विधार्थी हूँ। लड़कियों का श्रृंगार का शौक बहुत होता है और ये शौक मुझे भी है ; लेकिन खूद श्रृंगार करना नहीं बल्कि शब्दों को श्रृंगार करना । ये शौक मुझे बचपन से ही है । मैं हिन्दी शब्दों को अधिक से अधिक सजाकर प्रस्तुत करने की कोशिश करती हूँ । यदि मेरी रचना में किसी प्रकार की त्रुटि रह गयी हो तो मैं आपसे क्षमा याचना चाहती हूँ ।

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मित्र वृक्ष

6 जून 2015
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ओ मेरे हरे मित्र वृक्ष क्यों तुम हो उदास लगता है फिर किसी ने तुम्हें दर्द दिया है आज खुद धूप में रहकर सबको देते हो छाँव आवास फूलों की खुशबू से रौनक करते जमीं आकाश खट्टे-मीठे फल देते हो तुम ही देते हो अनाज पक्षियों को दाना देते पशुओं को चारा-घास तेरी सूखी लकड़ी से माँ खाना भी पकाती है टे

मित्र वृक्ष

6 जून 2015
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ओ मेरे हरे मित्र वृक्ष क्यों तुम हो उदास लगता है फिर किसी ने तुम्हें दर्द दिया है आज खुद धूप में रहकर सबको देते हो छाँव आवास फूलों की खुशबू से रौनक करते जमीं आकाश खट्टे-मीठे फल देते हो तुम ही देते हो अनाज पक्षियों को दाना देते पशुओं को चारा-घास तेरी सूखी लकड़ी से माँ खाना भी पकाती है टे

बेरहम प्रकृति

30 मई 2015
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ओ बेरहम प्रकृति बोलो क्यों हो इतना नाराज किस बात का गुस्सा है जो उगल रहे हो आग सुनामी तूफान भूकंप से अभी भरा नहीं है मन बरसा रहे हो आग ऐसे साथ में ये गर्म पवन तड़प तड़प के मर रहे पशु पक्षी और मानव सभी हैं बेचैन यहाँ चारो ओर फैला तांडव दूभर हो गया है अब बाहर जाना एक कदम सहन नहीं होता ये त

बेरहम प्रकृति

30 मई 2015
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ओ बेरहम प्रकृति बोलो क्यों हो इतना नाराज किस बात का गुस्सा है जो उगल रहे हो आग सुनामी तूफान भूकंप से अभी भरा नहीं है मन बरसा रहे हो आग ऐसे साथ में ये गर्म पवन तड़प तड़प के मर रहे पशु पक्षी और मानव सभी हैं बेचैन यहाँ चारो ओर फैला तांडव दूभर हो गया है अब बाहर जाना एक कदम सहन नहीं होता ये त

हौसलों की उड़ान

29 मई 2015
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देख पंछी परिंदों को मेरे मन जागी इच्छा मैं भी इनकी तरह उडूँ उन्मुक्त आकाश में लेकिन इनके तो पंख हैं मैं पंख कहाँ से लाऊँ मैं हो गयी परेशान अब कैसे भरुँ उड़ान दिल ने मुझे समझाया धैर्य दिला के कहा घबराओ मत ऐसे मैं उपाय बताता हूँ पंख नहीं तो क्या हुआ हौंसलों की उड़ान भरेंगे सारा जहान घुमेंग

मन है अपना

28 मई 2015
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सौभाग्य से मिला है जीवन करो न इसे व्यर्थ निलाम ऊँचाईयों पर चढ़ने के लिए बना लो अपना भी मकाम मन नहीं करता जी नहीं लगता ऐसी बातें कभी न करना दुनिया की सब चीज पराई लेकिन ये हमारा मन है अपना मेरा मन है मेरा नहीं तो किसकी कहना मानेगा छोड़ दें यदि लगाम इसकी मिट्टी में तुरंत मिला देगा मन लगाकर

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