भाग 3
अगले दिन सुबह उसे अखबार पढ़ते देखा जाता है। वह बड़े ध्यान से अखबार को बार-बार अपने आंखों के पास ले जाता है फिर दूर ले जाता है। शायद वह आज अपने मन की खबर पा गया हो, बाहर खड़े सुरक्षाकर्मी उसे देखकर यही बातें कर रहे हैं और हंसते हैं उसके मूर्खता पर।
इसी बीच गार्डों की ड्यूटी खत्म होती है। दूसरी टीम का समय होता है तो ऑफिस की ओर वह चले जाते हैं, जहां रजिस्टर पर साइन करके वो घर चले जाते हैं।
उसी समय डेविड एक चिट पर "मैं हूं डी-साइलेंट" लिखकर अपना साइन करता है और जेलर के चेयर पर झरोखे से फेंक देता है। इधर जेलर साहब के ऑफिस आने का समय होता है। उधर सभी गार्ड अपनी-अपनी ड्यूटी संभालते हैं और सुधाकर भी ऑफिस पहुंचता है। सब चर्चा कर रहे हैं चाय पर जो जहां वो वहां की यह 'डी-साइलेंट' कौन है?
ऑफिस में सुधाकर और उनके साथी सब चाय पी रहे हैं और बातचीत कर रहे हैं कि यह आखिर है कौन?
उधर जेलर अपने ऑफिस में पहुंचता है तो देखता है कि फिर एक चिट उसके चियर पर पड़ी हुई है। चिट देखकर वह कुछ संशय में पड़ जाता है। फिर सोचता है आखिर अब क्या हुआ, अजीब भय के साथ चिट उठाता है। जिसे खोलता है तो देखता है लिखा है "मैं हूं डी-साइलेंट"।
और नीचे फिर वही साइन।
अब उसको बात समझ आती है कि जो कल अनाउंस किया गया था कि "डिपार्टमेंट के द्वारा डी-साइलेंट को सम्मानित किया जाएगा, उसी के लिए उसके तरफ से घोषणा है। लेकिन यह मुझे क्यों बता रहा है... और मेरे कमरे में ही क्यों?" चौबे जरा कमरे की अच्छे से तलाशी लो, देखो कोई शख्स इसमें छुपा तो नहीं।
चौबे- अरे कैसी बात कर रहे हैं हम तो इस कमरे को बंद करके गए थे।
जेलर- चौबे फिर भी यह देखो डी-साइलेंट ने फिर एक चिट भेजी जिसमें लिखा है "मैं हूं डी-साइलेंट"।
चौबे- और कुछ नहीं लिखा हुजूर, कोई एड्रेस तो दिया होगा ना।
जेलर- तुम एक बार चेक करो मेरी आंखो के सामने।
चौबे- जी हुजूर।
चौबे एक-एक सामान चेक करता है। अलमारी, फाइलों के बंडलों के पीछे, टेबल के नीचे पर कहीं कोई नहीं।
परेशान होकर जेलर इस्पेक्टर सुधाकर को फोन करके बोलता है फौरन वह उनके ऑफिस में आकर मिले।
इधर सुपरिंटेंडेंट का फोन आता है कि ,"क्यों जेलर साहब अब आप का क्या होगा, हत्या तो नंगा ने हीं किया है।"
जेलर- सर आई विल अपोलाइज इन ब्लैक।
सुप्रीमटेंडेंट- ओके ओके..तुम यह बताओ डी-साइलेंट की कोई खबर मिली?
जेलर- जी सर उसने आज फिर एक चिट छोड़ी है।
सुप्रीमटेंडेंट- क्या लिखा है उसमें?
जेलर- "सर उसमें लिखा है कि 'मैं हूं डी-साइलेंट' और नीचे उसकी साइन है।"
सुप्रीमटेंडेंट- कोई एड्रेस?
जेलर- नो सर। मैंने इंस्पेक्टर सुधाकर को कॉल किया है देखता हूं, पता लगाता हूं।
सुप्रीमटेंडेंट- ओके, जल्द से जल्द हमें बताइए कौन है यह "डी-साइलेंट" मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है।
जेलर- स्योर सर। फोन कट।
इधर सुधाकर समझ नहीं पा रहा है कि अचानक जेलर साहब ने उसे क्यों बुलाया है...'कहीं नंगा को लेकर कोई नई समस्या तो नहीं खड़ी हो गई'.
इतना सब सोचता हुआ जेलर साहब के रूम में पहुंचता है।
सुधाकर- मे आई कम इन सर?
जेलर- यस सुधाकर कम इन।
सुधाकर- गुड मॉर्निंग सर! अचानक आपने कॉल किया!
क्या बात है सर आप परेशान हैं?
जेलर- देखो सुधाकर एक समस्या यह नंगा का जेल से भाग कर हत्या करना टली नहीं थी, कि दूसरी समस्या आ गई "डी-साइलेंट"।
सुधाकर- 'डी-साइलेंट' प्रॉब्लम नहीं है, सलूशन है। उसी ने तो डिपार्टमेंट की नाक बचाई और नंगा को गिरफ्तार करने में पुलिस की मदद की है।
जेलर- वह तो सब ठीक है सुधाकर पर यह 'डी-साइलेंट' है कौन ? और यह मेरे पीछे क्यों पड़ा है?
सुधाकर- क्या हुआ सर, मैं कुछ समझा नहीं?
जेलर- सुधाकर यह देखो.(चिट देता है जिसे डी-साइलेंट ने लिखा है।)
सुधाकर- सर यह आपको कहां मिली, कल की तरह यही चेयर पर! मतलब सर आपके आस-पास ही है वो, क्यों सर ?
जेलर- सुधाकर मैंने पूरा रूम चेक करवाया चौबे से फिर तुम्हें बुलाया है। आखिर कौन हो सकता है?
सुधाकर- सर ये भी तो हो सकता है कि किसी ने यह चिट कहीं से फेंक दी हो कमरे में।
जेलर- पर सुधाकर झांकी तो है नहीं।
सुधाकर चारों तरफ देखता है, उसकी नजर जेलर साहब के ठीक पीछे वाली दीवाल पर जाती है जिसमें ऊपर एक छोटा सा झरोखा है जो धुंधला दिखता है क्योंकि उधर से सूरज की रोशनी नहीं आती।
सुधाकर- 1 मिनट सर। चौबे ! बड़ा वाला स्टूल लाओ जिससे इस झरोखे तक पहुंचा जा सके।
चौबे- जी सर अभी लाया।
बाहर से स्टूल लेकर आता है, सुधाकर चढ़कर झरोखे से देखता है तो उसे डेविड का कमरा दिखता है। जहां डेविड अपने डायरी को पलट रहा होता है और दीवार पर डिजाइन लिखा हुआ जैसे पेपर में साइन है सेम वैसे ही। तब उसे याद आता है कि जब डेविड चश्मा पहन रहा था तो -"कह रहा था कि मुझे सब कुछ दिख रहा है"
सुधाकर एकदम शाॅक हो जाता है। कहता है "सर यह तो डेविड साइलेंट है।"
जेलर- क्या यह शरीफ और भोला डेविड है ?
सुधाकर- वह बोलता बहुत कम है और शायद इसीलिए उसने अपना नाम डी-साइलेंट रखा हो।
जेलर- तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो ?
सुधाकर- क्योंकि सर जो सिग्नेचर इस पेपर में हैं, वही सिग्नेचर उसकी दीवाल में भी देखा है मैंने अभी-अभी। और तो और परसो शाम को मैंने उस दीवार पर उसे "डी-साइलेंट" लिखते हुए भी देखा था। और पता है सर उस दिन मीटिंग में लेट क्यों पहुंचा था क्योंकि अचानक उसकी पुतली बहुत तेज चल रही थी और चश्मा चश्मा... चिल्ला रहा था। जब मैं ने चश्मा पहनाया तो वह बड़ बड़ा रहा था। "मुझे सब दिख रहा है..मुझे सब दिख रहा है।" और उसी रात आपके कमरे मैं लेटर आता है, फिर अगली सुबह पेपर में छपता है कि "डी-साइलेंट यदि 24 घंटे में पुलिस से बातचीत करता हैं या मिलने के संकेत देता है तो उसे सम्मानित किया जाएगा।"और फिर आज सुबह एक चिट फिर आपके रूम में गिरता है जिससे वह अपने होने का सुबूत देता है। सर आप चाहें चलकर डेबिट का बैरक देख लीजिए ये साइन और कमरे में दीवार पर साइन बिलकुल एक जैसा है।
जेलर- चलो सुधाकर हमें यकीन नहीं हो रहा है। वह भोलाभाला मासूम गुमसुम बच्चा भी ऐसा। चलो चल कर देखते हैं।
चौबे इंस्पेक्टर सुधारकर और जेलर साहब उसके बैरक में पहुंचते हैं वहां डेविड अपनी डायरी में कुछ लिख रहा होता है बैरक खुलने की आवाज सुनकर यकायक वो रूक जाता है और डायरी बंद कर देता है। चिट्ठी लेकर सुधाकर खुद एक-एक अक्षर मिलाता है दीवाल पर लिखे डेविड और चिट पर लिखा दोनों डी-साइलेंट एक जैसे ही हैं।
सुधाकर- लीजिए सर आप खुद देखिए।
जेलर भी देखता है तो हैरान रह जाता है।
जेलर- इसने किया क्या।
सुधाकर डेविड से पूछता है कि "डेविड यह कौन है"
दीवाल पर बने साइन की तरफ इशारा करके तो वह दौड़ कर जाता है, मुस्कुराते हुए सिग्नेचर के साथ खड़ा होकर हाथों से डिफरेंट डिफरेंट तरीके के पिक्चर क्लिक करने लगता है।
सुधाकर और जेलर साहब का एक दूसरे को देखते रहते हैं। फिर सुधाकर डेविड को चिट देता है जिसको उसने जेलर साहब के कमरे में फेंका था। जिसे देखकर वह उसे चूमता है और सीने से लगा लेता है फिर ले जाकर अपनी डायरी के पन्नों में रख देता है। तभी सुपरिंटेंडेंट का फोन आता है.
सुप्रिमटेंडेंट- डी-साइलेंट का पता चला क्या कुछ?
जेलर- यस मिल गया है डी साइलेंट।
सुप्रिमटेंडेंट- क्या? फौरन उसे मेरी ऑफिस लाया जाए।
जेलर- सर यह जेल के नियमों के खिलाफ होगा।
सुप्रिमटेंडेंट- क्यों? जेलर- सर क्योंकि वह कैदी डेबिड है।
सुप्रिमटेंडेंट- क्या? ओके मैं अभी आया।
जेलर- जी सर। सुप्रिमटेंडेंट- यह जेलर सठिया गया है क्या, किसी को भी कुछ भी बोलता है। देखता हूं।
इधर सुधाकर डेबिड को लेकर ऑफिस चलने की बात करता है तो जेलर कहता है सुबूत तो यहां कैसे यकीन होगा सुपरिंटेंडेंट साहब को की डेविड "डी-साइलेंट है।" आने दो आ ही रहे होंगे वह तुम यहीं रूको मैं उन्हें बाहर से लेकर आता हूं। सर।
जेलर साहब गेट पर पहुंचते हैं तो देखते हैं सुपरिंटेंडेंट साहब अपनी कार से उतर रहे होते हैं। दोनों डेबिड के बैरक में पहुंचते हैं। जहां वह सुधाकर के द्वारा बनाई गई प्रेजेंटेशन से खुश हो जाते हैं। सुधाकर दीवाल पर सिग्नेचर के बगल में ही वह चिट्ठी चिपका देता है जिस पर मैं हूं डी-साइलेंट लिखा होता है। सुपरिंटेंडेंट सब देखकर बोलते हैं कि
"बेटा डेविड मेरे हाथ पर ऐसे ही साइन करो जरा 'डी-साइलेंट'।डेविड वैसे ही करता है। जिसे देखकर उन्हें भी यकीन हो जाता है।
सुप्रिमटेंडेंट- डिपार्टमेंट "डी-साइलेंट" को सम्मानित करेगा और हम चाहते हैं कि तुम पुलिस के लिए काम करो ।डिटेक्टिव डेविड हम सरकार से तुम्हारे अच्छे व्यवहार और कानून की मदद करने के लिए आजीवन कारावास से मुक्ति दिलाने की अपील करेंगे और हमें पूर्ण विश्वास है कि सरकार और न्यायालय इस पर सहमत होगी। जेलर साहब आज से डेबिट को यहां से निकाल कर दूसरे बैरक में कर दीजिए।
डेविड- नहीं सर यहां से मेरी यादें जुड़ी हैं, मैं यह जगह छोड़कर नहीं जाना चाहता। मेरी आपसे रिक्वेस्ट है कि आप सरकार से कोई अपील नहीं करेंगे, यह जेल अब मेरा घर बन गया, जिसे छोड़कर मैं जाना नहीं चाहता। आपके यहां आने के लिए और सम्मान के लिए मैं आपका धन्यवाद देता हूं। आभार प्रकट करता हूं।
सुप्रिमटेंडेंट- ठीक है जेलर साहब डेविड को सारी मूलभूत जरूरतों की चीजें मुहैया कराई जाए और ये ऑर्डर अभी मैं जेल को रिटर्न भिजवाता हूं।
जेलर- यस सर।
सब उसके बैरक से चले जाते हैं। और फिर आगे डेविड पुलिस के लिए डिटेक्टीव का काम करने लगता है।