अभी कुछ देर रुको ।......रुको
रोकते ही रहे हैं वे कि आएगा सुनहरा कल
हो जायेंगे सब खुशहाल
हम सब भरोसा करते रहे
करते ही रहेंगे अंत तक
और
भरोसे में वे हमारे चेहरे नोचकर
खींच लेंगे आब
नहीं रहने देंगें -- मिटटी पर भरोसा करने लायक
स्वयं को ही संवारते रहेंगे
हमारी भलाई के नाम पर
लेकिन मैं जानता हूँ
रोके रखने की भी एक सीमा होती है
जब टूटेगा यह बाँध
तब नहीं बाँध सकेगा खुशहाली का सम्मोहन
तब हम भी नहीं चाहेंगे मायाजाल
बल्कि बेहतरी यही होगी
की हम जैसे हैं वैसे ही रहें
बगैर किसी प्रलोभन के
ऐसा होगा -- मैं जानता हूँ
एक दिन