खोज रहा हूँ बहुत दिनों से अपनी खोई हुई प्यास को ,
कहाँ ले जाऊं ,कहाँ में छोड़ू अपनी इस अनछुई आस को
प्रश्नचिन्ह और पूर्णविराम नियति नहीं है अपनी केवल
फिर भी अर्धविराम मिलेगा शायद मेरे मन उदास को
जीवन है मरुथल जैसा नज़र नहीं आता है पानी ,
वज़ह रही है खुश होने की ,देखू जब भी मैं पलाश को
जीवन की परिभाषा अक्सर पूछा करते थे तुम मुझसे
आज बता दूँ ज्यों प्यासे ने थामा हो खाली गिलास को
तुम तो ठंडक बन जाती हो लेकिन चाँद नहीं बन सकता
तुम जब ना हो तो कैसे करूँ मैं ,शीतल अपनी तप्त श्वांस को .