नरम नहीं रहे सपने
सपने
अब नरम नहीं रहे
उनसे एक तीखी आंच
लपलपाती हुई आती है और
झुलसा देती है दिमाग की साड़ी नसें ,
गलियों में शोर है -
तमाशबीन
बेच रहे हैं
रंगीन स्वप्न
खरीदने वाले नहीं हैं ,
सिर्फ ,देखने वाले
अपनी आँखों से देखते हैं
चौंधियायापन ,
थूक देते हैं पान की पीक ,
जला लेते हैं -एक अदद सिगरेट
बहसो