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3 किताबें
गली गली में, द्वार द्वार पर गर्मी काकी घूम रही है खीरा ककड़ी तरबूजे लेकर बेंच रही है झूम रही है.छाता ले लो गमछा ले लो जोर जोर से बोल रही है धूप चश्मों की भारी गठरी बांध रही है खोल रही है.पंखे कूलर नचा रही है घ
चलो गांवजरा सा घूम आएं .पत्थरों के शहर मेंबेजान बन गया हूँउबली हुई चाय कीसिट्ठी सा छन गया हूँबरसों गुजर गएफफूंद आये.आगबबूली दोपहरी मेंतन तवा सा जल रहानोनी लगी दीवारों मेंमन कंदील सा गल रहाचलो नीम की छांवजरा स
मन ठूँठ परआस केपात आये.जेठ की गई तपनसावन की पुरवाई आईतन अगस्त्य का फूल हुआसूखे पैरों की गई बिवाईबाग़ केउड़े तोतेहाथ आये.मन पुरइन का पात बनाजुगनू हुई तनहाईहोंठ फाग केगीत हुएआँखें हुईंअमराईहासपरिहास केपरात आये.-
सूनी डगरेंप्यासे खेतपियराये से गीतफ़ुर्र हुईगौरैया चिरईंभूख न जाने रीत.बेटा बाम्बेदिल्ली बिटियाअपने संगचितकबरी बछिया चलनी छानीदरकी भीत. बिरहा
नेह भरीपाती अब नहीं आती. गुप्तवास में माँ की लोरीगूंगी बहरी चैती होरी सुखिया दादी परातीअब नहीं गाती अंगनाई की फट गई छातीचूल्हे चौकों कीबँट गई माटीपूर्वजों कीथाती अब
सूखी नदी सा मन उदास है .सदी - साआकाशबादल बिन नंगा है यमुनापियराई - सी मैली - सी गंगा है आँखों मेंपतझड़ हैराहों मेंधूल हैबागों में बच गएबेर और बबूल हैं. हर घाट बदहवास है .--- डॉ. हरेश्वर राय