गली गली में, द्वार द्वार पर
गर्मी काकी घूम रही है
खीरा ककड़ी तरबूजे लेकर
बेंच रही है झूम रही है.
छाता ले लो गमछा ले लो
जोर जोर से बोल रही है
धूप चश्मों की भारी गठरी
बांध रही है खोल रही है.
पंखे कूलर नचा रही है
घड़े सुराही बाँट रही है
शीत पेय का बोतल लेकर
हिला रही है बुला रही है .
निम्बू का रस डाल डालकर
गन्ने का रस पिला रही है
लूटा रही है आम टिकोरे
इमली का फल चाट रही है. -
----डॉ. हरेश्वर राय