मन ठूँठ पर
आस के
पात आये.
जेठ की गई तपन
सावन की पुरवाई आई
तन अगस्त्य का फूल हुआ
सूखे पैरों की गई बिवाई
बाग़ के
उड़े तोते
हाथ आये.
मन पुरइन का
पात बना
जुगनू हुई तनहाई
होंठ फाग के
गीत हुए
आँखें हुईं
अमराई
हास
परिहास के
परात आये.
---- डॉ. हरेश्वर राय
21 मई 2017
मन ठूँठ पर
आस के
पात आये.
जेठ की गई तपन
सावन की पुरवाई आई
तन अगस्त्य का फूल हुआ
सूखे पैरों की गई बिवाई
बाग़ के
उड़े तोते
हाथ आये.
मन पुरइन का
पात बना
जुगनू हुई तनहाई
होंठ फाग के
गीत हुए
आँखें हुईं
अमराई
हास
परिहास के
परात आये.
---- डॉ. हरेश्वर राय
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डॉ. हरेश्वर रॉय, प्रोफेसर ऑफ़ इंग्लिश, शासकीय पी. जी. महाविद्यालय सतना, मध्य प्रदेश.
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