सूखी नदी सा
मन उदास है .
सदी - सा
आकाश
बादल बिन
नंगा है
यमुना
पियराई - सी
मैली - सी
गंगा है
आँखों में
पतझड़ है
राहों में
धूल है
बागों में
बच गए
बेर और
बबूल हैं.
हर घाट
बदहवास है .
--- डॉ. हरेश्वर राय
22 मई 2017
सूखी नदी सा
मन उदास है .
सदी - सा
आकाश
बादल बिन
नंगा है
यमुना
पियराई - सी
मैली - सी
गंगा है
आँखों में
पतझड़ है
राहों में
धूल है
बागों में
बच गए
बेर और
बबूल हैं.
हर घाट
बदहवास है .
--- डॉ. हरेश्वर राय
13 फ़ॉलोअर्स
डॉ. हरेश्वर रॉय, प्रोफेसर ऑफ़ इंग्लिश, शासकीय पी. जी. महाविद्यालय सतना, मध्य प्रदेश.
Dपतझड़ है राहों में धूल है बागों में बच गए बेर और बबूल हैं. आदरणीय ,लघु शब्द ,दीर्घ भावनायें समेटें हुए आपकी ये रचना क़ाबिले तारीफ है आभार एकलव्य
3 जुलाई 2017
बहुत खूबसूरत ................
24 मई 2017
आदरणीया, धन्यवाद
24 मई 2017
ह्रदय को ़छू गयी
22 मई 2017