सुबह-सुबह बहुत ही दुखदाई होती है सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर फिर चल कर विद्यालय जाओ , कहने को विद्यालय स्वर्ग होता है पढ़ने का मन नहीं करता है ज्यादा बच्चों का पर फिर वो स्कूल जाते हैं क्यों ? मजे करने के लिए । दोस्त से मिलने के लिए , उनके साथ समय बिताने के लिए और मन करा तो पढ़ने के लिए और अगर स्कूल में कोई दुश्मन हो तो क्या बात जिंदगी उसे पंगे लेने में ही निकल जाए पता ही ना चले मेरा दुश्मन मेरी हि क्लास का मोनिटर है जो कि पढ़ने बहुत सही है हर चीज में मुझे नीचा दिखाना उस कि आदत है में टहरी आलसी ,सच्ची बात कहु तो मैं सच्च में आलसी हु मैंने उस से आगे निकलने के लिए क्या कुछ नहीं किया क्या बताऊं । जैसे मुझे जिंदगी जीना पसंद था वो तो मैं बुल गए थी किताबें मेरी दोस्त बन चुकी थी किताबों से बातें करने लगी थी मानो जैसे मैंने जीना सीख लिया है उन से मिलने के बाद खुद को समझने लगी हूं मुझे ख़ुद के होने का अहसास हुआ। उनसे दोस्ती तो किसी को नीचा दिखाने के लिए किया था। पर उस से ज्यादा तो नहीं पर अब कम नम्बर भी नहीं कुछ साल तक हम अच्छे दोस्त हुआं करते थे पर अब बात नहीं होती है ।