कविता संग्रह
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प्रेमबहरूपिया है,संभाल के मिलिये,"घृणा" उस कासर्वश्रेष्ठस्वांग है.....प्रेम
तुम्हारा प्रेममुझ मेंतभी तक स्थायी है,जब तकमेरे श्वास- निः श्वास केमध्य की दरारों में..उगने लगे “फुनगियाँ”#वर्जनाओं की..प्रेम- कविता
हिम्मती #प्रेमिकाएंबीवियाँ बन जातीं हैं,और बाक़ी सब..#कविताएँ..प्रेम- दायरे
छुअन के भीअपने दायरे होते हैं,क़ायदे होतें हैं..डरता हूँ इनसे सो,तुमको निगाहों से हीछू लेता हूँ..प्रेम- तलाश
कुछ स्टेशनों पर,अक्सर..खुद को छोड़ आता हूँ।बहाना भर है,ख़ुद तो तलाशते हुएतुम तक पहुँचने का..प्रेम- बहाना
तुम ...वो छोटी,बेहतरीन लाइन सी होजिस पर,भूलने का बहाना कर,बार बार..नज़र फेरने कामन करता हो..प्रेम- समझ
तुम्हारा,मेरे बारे मेंहर सवाल बताता है,तुमने कितने मन सेपढ़ा है मुझे..मेरा,तुम्हारे हर सवाल काजवाब बताता है,मैंने कितनी गहराई सेसमझा हैतुम्हे....प्रेम
#प्रेम में पड़ी “स्त्री”गुलाब हो जाती है..प्रेम में पड़ा “पुरुष”भँवरा होना पसंद करता हैं..ना कि,उस गुलाब के जड़ को पोषतीमुठ्ठी भर गोबर की खाद....प्रेम- स्त्री (2)
प्रेम में पड़ी स्त्रीगोल रोटियां बनाती हैसौंधी हींग की खुशबूपल्लू से लपेट,कम नमक की सब्जी बनाती है।समय परबिना घड़ी देखे...प्रेम में पड़ापुरुष शाम से हीगोद मे लिएशिशु से,जल्दी सोने कानिवेदन करता है,बिस
प्रेम में पड़ी#स्त्रीहोना चाहती है,परुष्णी..बहना चाहती है,निर्बाध..प्रेम में पड़ा #पुरुष,बनना चाहता हैउस पर #बांध..प्रेम कहानियाँ
सबसे हसीन#प्रेम_कहानियाँअक्सरकॉपी केआखिरी पन्नों केहाशियों मेंकटी मिलतीं हैं...प्रेम- तर्पण
प्रेम,वासनाओ से परे,अंगड़ाई लेता है...सर्वत्र तर्पण..उसके यौवन कीपराकाष्ठाहोती है......प्रेम
प्रेम सुनना चाहता है“मौन”,रहना चाहता है“निर्वात” में..“शून्यता” ओढ़,प्रवाहित होनाचाहता है“एकांत” से“एकांकी” की ओर..“निःस्पृह रिक्तता” से“संतृप्तता” की ओर...प्रेम- बचपन
जब भी अपने से #थक सा जाता हूँ,थोड़ा #बचपन में टहल आता हूँ…..प्रेम- तुम्हारा चेहरा
कितने मेगापिक्सल का होता हैआँखों का कैमरा ?जितना भी ज़ूम कर लूंबिखरता ही नहींतुम्हारा चेहरा....... प्रेम- उम्र
गुज़र जाएगीतमाम उम्रसमझने में,मेरा क़िस्सातेरी कहानियों सेकहीं बड़ा है..प्रेम- भाषा
भरे घर मेंअपनों के बीचतुम्हारी पायल कीअलग सीचुहल भरीभाषा कोडिकोड करनाप्रेम है..प्रेम- कालजयी कहानियां
प्रेमान्त के साथ ही..अंत हो जाता हैदो हृदयों के मध्यपनपी सभ्यता का,और..उस उर्वरता से उपजतीं है,कालजयी कहानियां... प्रेम
प्रेम कीसबसे बड़ी दुविधा..नहीं मिलता,एकांत में भीएकांकी होने काक्षणिक क्षण...प्रेम- अव्वल
अपने गुनाहों कीफेरहिस्त बनायी है,तुझसे मुहब्बत कोअव्वल रखा है....प्रेम- ज़हर
कितना मीठा बोलती हो !!!कितना ज़हर भरे बैठी हो ?प्रेम- मीरा
प्रेमातुर,प्रेमाकुलगोपी- उल्लकायेंनृत्य करती हैंब्रह्मांड में..प्रेम मेंपड़ीं कुछ,थिरक करथम जातीं हैं.धरा सी.मीरा बन के....प्रेम- शातिर
प्रेम केचंगुल से डरिये,बेशक बेहद डरिये..ये शातिर, आपकोइंसान बना के हीदम लेता है..प्रेम- एक घोंघा
प्रेम...एक घोंघाडरता, रेंगता, ठिठकता,छुपता छुपाता,ताल की ओर बढ़ता..पीछे छोड़ताएक चमकीली सी लकीरअपने पदचापों की...प्रेम- चाँद सा चमकीला
प्रेम में,कुछ समतल,सपाट नहीं होता,मुश्किल होता हैधरातल ढूंढना...चाँद सी धरती पर पनपा प्रेम,सर्वदा चमकीला होता है..प्रेम- पीड़ा (1)
पीड़ा...प्रेम के गर्भ से उत्पन्न,अभीष्ट फल कीपरिणति है.. प्रेम- पीड़ा (2)
अगर..तुम्हारा प्रेममुझे तनिक भीपीड़ा ना दे..तो.....मुझे तुमसे कभीप्रेम था ही नहीं..प्रेम- दस्तक
प्रेम....दरवाज़े परदस्तक दे करखुलेआम नहीं आता,प्रेम....दरवाज़े परदस्तकों सेघबरा करखिड़की के रास्ते नहीं जाता..प्रेम- अधूरा
प्रेमतभी तक प्रेम है..,जब तक“अधूरा” हैं....प्रेम- की धार
देखो!!...संभाल के,किताबें कहीं गिर ना पड़ेंज़मीन पर...उनमे जमीप्रेम की फुनगियांमिट्टी में प्रेम की फसलना उगा बैठें...ये फुनगियांनहीं जानतीं अभीभोथे हँसुऐ कीनफरत की धार,मिट्टी से..प्रेम- पाना/खोना...
तुमको पाना,ख़ुद कातुम्हारी भीड़ मेंखो जाना..प्रेम- सड़क
मुझे छू कर जाती हैवो सड़क,जो तुम्हारे घर परख़त्म होती है,बस्सस..यूँ ही खुश हो लेता हूँबता कर “मुझसे”“तुम” तक की दूरी“मील का पत्थर” बन के.. प्रेम- गुमनाम
सिर्फ तुम मेंगुम होना चाहता हूँकुछ यूँ"गुमनाम" होना चाहता हूँ...प्रेम- जज़्बा
“प्यार”,“इश्क”,“मुहब्बत”सब लँगड़े,दिल की बैसाखी पर टिके....जज़्बा.. !!!!“मार्स” तकदौड़ लगाने का...प्रेम- का स्वाद
“प्रेम”,जीभ पर उपजेवो छालें हैं,जो दर्द का स्वादमीठा बतातें हैं..प्रेम- अल्फाज़
प्रेम पत्रों में,दो इश्किया अल्फाज़ों केबीच की जगह में...दरसअल,"झूठ"ठहाके मार रहा होता है..प्रेम- अथाह चाह
प्रेम नहीं,अपितु,उस प्रेम को पाने कीअथाह चाह....उत्तरदायी हैविश्व की समस्तअधूरी प्रेम-कथाओं की..प्रेम- हादसों
#इश्क़ तक ही होती हैकुछ हादसों की उम्र...प्रेम- और तुम
तुमने केवलमेराप्रेम चाहा....मैंने केवलतुम्हारीपीड़ा मांगी....प्रेम- अर्थ
प्रेम...लिखते हो,पढ़ते हो,सुनते औसमझते हो...अर्थ,ये नहीं किप्रेम,करना भी जानते हो....प्रेम- केदार
हमारा मिलनाप्रेम था बस्सस,औ..हमारा बिछड़ना,प्रेम कीवो पराकाष्ठा...जैसे मंदाकिनी ने कियाकेदार का स्पर्श....प्रेम- क्रिया
प्रेम में होना,"प्रेम" होने सेअधिक समर्पितक्रिया है...प्रेम- नीम का शहतूती चाँद
रात केआगोश में सिमटतासूरज सा चाँद,नीम के पेड़ पर लटकताशहतूती चाँद,आज झाँकेगातकेगा, बेसब्री से,तुम्हारी आँखों मेंमेरा चाँद.....प्रेम- नाम
नाम बदल लिया हैशायद !!!! प्यार में हूँ तुम्हारे...प्रेम- बारिश
रोमांटिसिज्म..??बारिशों की झीसीं में,#छिछोरे झींगुरों का,नयी जवां होतीझीनी सी रात को,#सीटी बजा के छेड़ना..बस..और क्या? प्रेम- ओढ़ता हूँ....
तुम साओढ़ लेता हूँ,जब भीतुमसे मिलने आता हूँ,मैं...खुद कोदरवाज़े पर हीउतार आता हूँ..प्रेम- इबादत
मैं उतना हीठहरा हुआ हूँजितना दीवारों परउभरीइबादतों की आयतें...गुजरना कुछ यूँनज़रों में सैलाब लिए..प्रेम- रु-ब-रु
रु-ब-रु जोख़ुद से हुआ,हू-ब-हू तुझ सा लगा....प्रेम- और...तुम (1)
जो तुम मेरे अंदर लिखती हो..वो ही मैं बाहर परोसता हूँ..प्रेम- और...तुम (2)
देखो...किसी और को देखूँ तोनाराज़ मत होना,मैं, दरअसल..उसमे भीतुमको ही देखता हूँ..प्रेम- और...तुम (3)
ना जाने क्यासुलगता है. ???सिगरेट,तुम यामैं..!!!प्रेम- और...तुम (4)
तुम्हारे बारे में..मेरी,खुद से बातेंकभी ख़त्मनहीं होतीं..प्रेम- और...तुम (5)
मेरी शिराओं में“कोलेस्ट्रॉल” नहींतुम जमी हो,तुमको...खुरच खुरच केतुमको हीलिखता हूँ...प्रेम- और...तुम (6)
तुम नहीं तो“सब”..कुछ नहीं,तुम हो तो“सब-कुछ”नहीं....प्रेम- और...तुम (7)
जब भीखाली होता हूँ,तुमसेलबालब भरा होता हूँ..प्रेम- और...तुम (8)
तुम.....संक्षेप मेंहरश्वास-निःश्वासके बीच काक्षणिकठहरावबस...प्रेम- कहानी
हम तो बस्स...“इश्श्श्श्श...”पर थमे थे,“क” जोड़ केकहानी तोआपने शुरू की..प्रेम- बेशकीमती
तुम्हारे होठ के किनारे केठीक नीचेठोड़ी पे...जो तिल हैं ना,मुझे बेशकीमतीसामान केनीचे लगा“शर्तें लागू” वालातारा साक्यूँ लगता है? ....प्रेम- @ फर्स्टसाइट
“लव @ फर्स्टसाइट” मेंयकीं रखती होया..गुज़रु फिर सेकरीब से..प्रेम- भीगता शहर
उसे भीगता शहर पसंद था,और मुझे...भीगती सी,वो..प्रेम- चाहतें
तुम्हारी भंगिमाएँबाज़ सी,मेरी चाहतेंखरगोश सी....प्रेम-महक
पसीने से तर-बतरप्रेमिकाएं ..महकती है जूही,गुलाब सी ..रसोई से निकली पत्नी,..रगड़ती है स्वम् कोजूही, गुलाब होने तकताउम्र..प्रेम- प्रशांत
प्रेम ग्रस्त आत्मायेंसर्वाधिक “बुद्धिमान"....सम्पूर्ण विश्व,“मूर्खता” के एवरेस्ट पर बैठ,इन “बुद्धिमानों” का,इत्मीनान सेप्रशांत में डूबने काजश्न मनाता है..प्रेम- मुठ्ठी भर टुकड़ा
प्रेम के लिएज़रूरी नहींएक स्त्री औरएक पुरुष का होना,जो ज़रूरी है वोमुठ्ठी भर पानी और...टुकड़ा भरहवा का होना..प्रेम- फितरती
फितरती नादां हूँ,उसूलों पर नहीं टिकता हूँ,बेगैरत सा इंसा हूँ,गाहे-बगाहेइश्क़ कर ही बैठता हूँ...प्रेम- जरूरतें
हैरत होती है ख़ुद परतुम्हारी "विश-लिस्ट"कैसे जेब में हीभूल जाता हूँ?पर ऑफिसरोज़ टाइम सेपहुँच जाता हूँ..कुछ इस तरह"विलेन" बन जातीं हैं "जरूरतें",हमारी "चाहतों" के बीच..प्रेम- शायराना
बड़े शायराना हैख़्वाब तुम्हारे..क़ाफ़ियों पर ठहरतें हैं,मिसरों पर मचलतें हैं..हर मक़तें पर बस"वाह" ही निकलती है..प्रेम- गिलहरी
प्रेम में पड़ीगिलहरीअक्सर भूल जातीं हैंअपना प्रेममिट्टी में दबा के#गुठलियों सी.......वर्षों बाद...उस जंगल केपेड़ों परदौड़ती, फुदकतीमिलतीं हैंगिलहरियाँ..#ताज के अहाते में भीएक पेड़ों की बस्ती हैवहाँ भी
क्यूँ भर लेतीं होमुझे इतनाजब सम्भलता नहीं..?अच्छा नहीं लगतामुझे तुम्हारी आँखों सेयूँ लुढ़कना..सवाल
सवाल मेरे लिखने का नहीं,असल इम्तिहान तोशब्दों का होता है,वो तुमकोकैसे समझाते हैंमेरे होने काअर्थ ??...ईश्वर (1)
ईश्वर..नहीं सुन पातेघंटों –नादों,अज़ान नमाज़ का शोर..केवल..मौन प्रार्थनाएँविचलित करती हैंईश्वर को भी..ईश्वर (2)
ईश्वर..चाहता हूँतुमसे मिलना,आलिंगन करना,अथक, अनंत, अनवरतवार्तालाप करना..“क्षण भर भी क्यास्वम् से मिले?आत्म-आलिंगन किया?स्व-साक्षात्कार हुआ कभी?”उत्तर आया..ईश्वर (3)
शश्श्श्..शांतिईश्वर ध्यानस्थ है...,आने दो प्रलयहोने दो संहारजो थावो ना होने के लिए ही थाजो हैवो भी नहीं रहेगाबचेगा तो बस,गूँजतेचीत्कार-सीत्कारके बीचमानव सभ्यताओं केखंडहरों मेंदबी एकमौन संवेदना का गीत.
ईश्वर मिलेंगे??....नहीं, यहाँ नहीं..उनका पता तोदो घरों के बीचतसल्ली वालीदीवार कीवो मुंडेर हैं......जिसके एक तरफकाबा हैं तोदूसरी तरफमहादेव थामे हैं,जहाँ छत पर गिरीपतंगों के लिएउस मुंडेर को#कूदना बसक्रि
ईश्वर नेसमझाया, बतायाचेताया है..सबसे #प्रेम करना..स्वार्थी प्रेमीकहाँ मानते, समझतेचेता करते?सदैव तत्परतलाशने, तराशनेचट्टान, पर्वतजंगल, नदीअपने मन सा एक#ईश्वर बनाने,सर्वस्र #प्रेम लुटाने....ईश्वर (6)
ईश्वर......क्यूँ इतना आसानतुम सा होना..??क्यूँ इतना दुश्करतुम्हारी कृति सामनुष्य होना??...ईश्वर (7)
धीर धरो,सुनो,सुनने का अभ्यास करो,वैतरणी पार..आत्माओं केमुँह नहीं होतेसिर्फ कान होते है,अपने हिस्से कापाप – दंड सुनने के लिए,कोई सफाई दिए बिना...ईश्वर (8)
प्रार्थनाएं..बंद आँखों वालेभ्रूणस्थ शिशु सीकोमल व पवित्र,भावनायें ही होतीं हैं..ईश्वर (9)
ईश्वर..हर दीवार केउस पार होता है,हमारी आँखे ढूँढ लेती हैंवो एक खिड़की..जो खुलती है उस तरफ,पर..कुछ ही तलाश पातें हैंवो #दरवाज़ा,जो खुलता है उनकी ओर,उस तरफ जाने को...ईश्वर (10)
दान..अपने हिस्से का मुठ्ठी भर"ईश्वर" दूसरे को सौंपना..पुण्य..हर बारमुठ्ठी कास्वतः बड़ा हो जाना..ईश्वर (11)
जब जब आपखुद के साथ होते हैं...दरअसल,तब तब #ईश्वरआपके साथ होता है..मोक्ष-1
हर नर्क मेंएक द्वार होता हैजो स्वर्ग में खुलता है..हर स्वर्ग मेंएक खिड़की होती हैजो नर्क मेंखुलती है..मोक्ष-2
आत्मायेंसफर करतीं हैंकिसी भी आकर्षण,गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध..बिना घर्षण यापलायन वेग के,अनंत ब्रह्मांड में....पाप और पुण्य का ईंधनपर्याप्त होता हैउसे वैतरणी तरने को....मोक्ष-3
सोचा है कभी?मानव जीवन कीसबसे महान घटना#मृत्यु,कितने शांति के साथघटित हो जाती है...मोक्ष-4
प्रारब्धपरिमाण हैहमारी दानितप्रतिभूतियों काअंकुश हैचयनित निरंकुशता पे,परिणाम हैअनादृतप्रेत-योनि केविद्रूप पश्चताप कापरिमार्जित पारितोषिक हैपुण्य पुमंगो मेंलिपटेभद्र, आदर्य्य,पुंसक विचारों का....ईश्वर
मेरे मौला..चंद लम्हों की नेमतनज़रों कोकभी ऐसी भी दे..हर जिस्म-पाररूह में,तुझे देख सकूँमुझे देखते हुए..साधना
साधना है,मौनसाधना भी...स्त्री-1स्त्री को,पुरातात्विक ब्रुश यासूक्ष्मदर्शी लियेअन्वेषक नहीं,पर्यावरणविद केचश्मे सेखोजिए..प्रकृति केरहस्यवाद कोजानने समझने के लिए...स्त्री-2दरअसल वो,साड़ी में बंधीएक ही स
मेरे जिस्म सेउड़ती ख़ुश्बू...दरअसलमेरे वालिद केपसीने की महक है......पिता-2माँपर कविताएं,पिता केकंधों परचढ़े बिनानहीं लिखी जाती...जीवन-1
मनुष्य.... तुम तो अकेले ही थे हमेशा से ..बसस्स..खालीहोते होधीरे धीरेज़िंदगी भर ...जीवन-2
ओ ज़िंदगी..इतना उलझाती क्यूँ हो?तेरा तरीका भी अल्हैदा है,इश्क़ जताने का ..सुलझने परगिरहें खुल जातीं हैं,सिरे छूट जातें हैं..ज़िंदगी,यूँ ही उलझाये रखचंद गांठे और डाल इनमें,नाखूनों के बढ़ने तक..जीवन-3
डिअर जिंदगी !!!“अंडर कंस्ट्रक्शन” हूँ,हौले से,झटका दिया करो..जीवन-4
सामान .....बाधँ लिया है,अब तो बता दोपता,कहाँ रहते है “वो”?,जो कहीं के नही रहते...जीवन-5
डिअर ज़िंदगी!!!देर से समझातेरे तल्ख़ तरीक़ोंके सबब,“सॉरी”..तमीज़ नहीं थी,तजुर्बा भी नहीं था,तुझे जीने का, चाहने का, तुझसे “इश्कियां” होने का बस्सस..जीवन-6
एकांत सेएकांकी तक कासफर हीजीवन है..जीवन-7
बहुत महीन हूँ....ज़िन्दगी नेबड़ी शिद्दत सेपीसा है मुझे..जीवन-8
संभाल केखेलिए,ज़िंदगी नहींसाँप सीढ़ी हैं...सतानवें, अठानवे यानिन्यानवें परकुछ अपनेगहरे रिश्तेंबडी शिद्दत सेइंतज़ार में हैं..जीवन-9
ज़िंदगी तमामयूँ हीखाकसार हुई,जो "ना" था,वो दिखाने में,"जो था",उसे छिपाने में..जीवन-10
कब रुका हैब्रह्मांड ?कब रुकी हैधरा?कब थमा हैक्षितिज ?कब थमी हैवायु?कब थमा है प्रवाह,नदी का?कब थमा है उद्वेगसागर का?कब रुका है समय?कब थमा है वेग विचारों का? किसी के रोके याकिसी के
जो मैं “हूँ” औजो मैं “नहीं हूँ”के मध्य,तारतम्य साधने हीकला हीजीवन है ....जीवन-12
डिअर ज़िंदगी!!!देखना..जब नहीं रहूँगा,तब ढूँढोगी मुझे..जीवन-13
जीवन,मृत्यु व#प्रेम...ना जाने कबआ जाये...जीवन-14
रोज़ज़िंदगीफंदे बना केउधेड़ती है,रोज़मेरी बेटियांघर बना करबुनती हैं फिर से...मुझेकरीने से..जीवन-15
डिअर ज़िंदगी!!!!मैं ऊगूंगा,एक बार नहींबार बार ऊगूंगा...मेरे यूँबार बार उगने में.....तुम्हारी हार नहीं,मेरे जीने कीजिजीविषा हैं......किताब-1
किताब..जब पढ़तीं हैं आँखें..दरअसल,आँखों से, हमको पढ़ रही होती हैवो किताब..किताब-2
किताबें...ईमानदारी से की गयीं“गलतियों” की,सार्वजनिकस्वीकरोक्ति हैं...कविता-1
सबसे नुकीली होतीं है,खाली पेट से निकलीकविताएँ..कविता-2
कवि,जब एक कवि कीगुमनाम मौत मरता है..तब सोलह श्रृंगार सेसजी कविताएँ,चौसठ कलाओं मेंउत्सव मनातीं हैं,उसकी देह परमहावर सने पैरों सेनृत्य करते हुएअपने वैधव्य मुक्ति पर..कविता-3
#कविताएंसिद्धहस्त नगर वधुऐं होतीं हैंनियोग से जन्मी,चौसठ कलाओं से पूर्ण..मेरी कविता भी बांझ नही,वरन,प्रतीक्षारत हैंतुम्हारीव्यास-दृष्टि के लिए..कविता-4
छोटी मुलाकातेंज़्यादाउम्रदराज़ होतीं हैं...जैसे,छोटी कविताएंज़्यादा अनुभवीहोतीं हैं..कविता-5
कविताएं..आंखों से गढ़ीआंखों से पढ़ीआंखों से सुनी औ,समझी जातीं हैं..कविता-6
अंततः..मैंने पूरी कर ही लीइतिहास की सबसेसशक्त व साहसीकविता..जो तुम पर है,जिसमे केवल तुम हो..जिसमें पानी पार सीसाफगोई सेरचा है मैंने,तुमको,हूबहू,जैसी तुम हो..पीड़ा-1
पीड़ा..सर्वश्रेष्ठ”प्रेरणा" है..पीड़ा-2
पीड़ा का स्वम्एक इतर शास्त्र है,जिसे समझने के लिए,प्रेम भरी भाषा नहींअपितु, उसकाआत्मकथ्य होनामहत्वपूर्ण होता है...पीड़ा-3
कोई भी दुःख कभी,कहीं नहीं जातारहता है हमारेआस ही पास..बसस्स..समय की वैक्सीनहमको उसके दर्द से"इम्यून" बना देती है..पीड़ा-4
दुःख..शातिर होता है,वो तोड़ता हैहमकोअलग अलगतरीके से..किसी कोहंसाते-हंसातेहुए तोड़ना,उसकी सबसेप्रिय औ निर्ममचाल है..पीड़ा-5
दुःख स्थिर हैवो उतना ही आज हैजितना कल थाऔ उतना ही कल भी रहेगा..बढ़ता-घटता हैतो सिर्फ हमारा #समर्पणउसे स्वीकारने का....पीड़ा-6
हर “दर्द” की भीअपनी “बेपनाह”ख़ूबसूरती होती है..“फ़र्क”सिर्फ इतना,महसूस कहाँ करतें है“दिल में” या,“दिमाग़ से”?..पीड़ा-7
“विदा” का मर्मद्रौपदी से पूँछोसुयोधन से पूँछोगुडाकेश से पूँछोकुंती से पूँछोकृष्ण से पूँछों...जिन्होंने..भोगा है...अद्भुत पीड़ा केसंताप-सुखका चरम,कर्ण से बिछोह की..स्मृति-1
स्मृतियां,बिना भूले..मन केकिसी कोने मेंसमाधिस्थ,प्रेम परमौन कातर्पण करतीं है..स्मृति-2
स्मृतियाँ..अधूरे प्रेम काक्रूर प्रतिशोध हैं..विंडचाइम-1
मैंअंदर आते हुएअपनी बातों को"विंड चाइम" पेटांग देता हूँ,वो बोलतीं हैएक दूसरे सेलिपट के,मेरी बात,मैं सिर्फदेखता हूँतुमकोउनकी तकरारोंके बीच..विंडचाइम-2
दरवाज़े खुले हैंबेधड़क चली आना…तुम्हे छू करजब हवा,#विंडचाइम कोछेड़ती है ना..वो #दस्तक काफी हैमेरे लिये.......और परुषणी बहने लगी
वो नदी, जो बहती थीमेरे खेतों को छूती, सहलाती.. कहाँ गयी? किस गति गयी?वर्षों पहले,खेतों में मेरे,जी उठा था नन्हा जामुन का पेड़उससे मिलने आतीपानी दे जातीऔर,वो नन्
१द्रौपदी....नहीं करना था तुमको अट्टहास,निषिद्घथा,अनाधिकृत थातुम्हारा हंसना हिमालयी सत्य परअपेक्षित था तुमसे संयम,पांडु कुल की मर्यादा के बोझ सेअपने उच्श्रृंखलता का मर्दन..२द्रौपदी.....नहीं बोलना था तु