“आहिल” राहगीर द्वारा लिखा जाने वाला यह उनका पहला उपन्यास है। इसके पहले उन्होंने कैसा कुत्ता है! नाम की एक कविता हिन्दी युग्म पब्लिशर के माध्यम से पब्लिश कराई थी, उसके बाद यह उनकी दूसरी किताब और पहली उपन्यास है।
राहगीर ने जिस तरह अपने कविता से लोगों को ध्यान अपने तरफ आकर्षित किया था, ठीक उसी तरह उन्होंने अपने इस बेहतरीन उपन्यास से एक बार और लोगों का अपने तरफ खिचा है। यह कहानी एक बेचारा आहिल की है। बेचारा आहिल को मैने इस उपन्यास को पढ़ने के बाद ही कहा है। क्योंकि एक तरफ वो एक खतरनाक शातिर बाज लड़का है तो दूसरी तरफ समय की मार उसे बेचारा बनने पर मजबूर कर देती है।
राहगीर ने अपने इस लेखकी से जिस तरह इस शातिरबाज पात्र की रचना की है, वह थोड़ी आपको झकझोर देने वाली है। जो बचपन से ही समय और मजबूरी की मार उसे बेचारा बनने पर मजबूर कर देती है तो शयाने होने पर वो ऐसे घृणित कार्य में लिप्त हो जाता है कि कभी आपको उससे मोह होगा तो दूसरे पल उसके प्रति घृणा।
अपने द्वारा उठाए गए गलत कदम पर सोच कर उसके भी कदम डगमगाने लगते हैं। उसे भी अपने पर ग्लानि महसूस होती है, शर्म आती है। लेकिन उसी पल वह दूसरों के भोलेपन का फायदा उठाकर उनका शिकार कर वह अपनी आगे की ज़िंदगी ठाट से गुजारने के लिए निकल पड़ता है।
“गुज़रा कल किसी पागल सांड को छेड़ने में गुज़र गया, आने वाला कल उसके आगे भागने में गुजरेगा…” राहगीर अपने इसी कथन को सत्य करने में इस उपन्यास की रचना की है, जिसमें पाँच साल के आहिल ने पच्चीस साल तक के आहिल का किरदार निभाया है।