इक समंदर चाहिये,
मिटा दे जो मन के निशान
बुझ चले हैं अब दिये,
होने लगे जर्जर मकान!
अभी निशा जवान है
अवसान का बस है बखान,
नई इबारत के लिये अब
रेतों पे हो लहरों का गान!!
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com
15 सितम्बर 2021
इक समंदर चाहिये,
मिटा दे जो मन के निशान
बुझ चले हैं अब दिये,
होने लगे जर्जर मकान!
अभी निशा जवान है
अवसान का बस है बखान,
नई इबारत के लिये अब
रेतों पे हो लहरों का गान!!
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com
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कथा-कहानी, कविताएँ... इंसान की उत्पत्ति के साथ-साथ अस्तित्व में आए और जब तक इंसान रहेगा, इनका अस्तित्व रहेगा। कभी कलेवर बदलेंगें तो कभी कथ्य, पर दिलचस्पी कभी नहीं घटेगी। इस कड़ी में मैं, श्रुत कीर्ति अग्रवाल, प्रारंभ करने जा रही हूँ दिलचस्पी का एक सफर, अपने पाठकों के संग... D
सुन्दर रचना
15 सितम्बर 2021