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पिता

16 सितम्बर 2021

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पिता

तुम्हारी पीठ की सवारी 
से शुरू हुआ सफर मेरा
सपनों के पंख पहन
जब आसमानों की ओर
उन्मुख हुआ
समर्थ था, गर्वान्वित था मन
कहाँ पता था
कि मेरी डोर थाम
दिशाएँ तो तुम दे रहे हो!

जेठ-आषाढ़ की कड़ी धूप में 
सख्त मिट्टियाँ कोड़-कोड़ कर
तुमने रोपा जो नन्हा बिरवा
सुदृढ तने पर खड़ा हो गया 
शीतल मलयज में झूम रहा है
कहाँ पता था
कि अपने लगाए वृक्ष को
खाद-पानी तो तुम दे रहे हो!

भले गात कुछ वृद्ध हो गया
आत्मविश्वास जरा सा डगमग
तन को और मन को, दोनों को ही
इक जरा आस अवलम्बन की थी
पर तुम बूढ़े नहीं हुए थे
कहाँ पता था 
अनुभवों की गठरी बाँधे
जीने की सीख तो तुम दे रहे हो।

मौलिक एवं स्वरचित 

श्रुत कीर्ति अग्रवाल 
shrutipatna6@gmail.com
Artee

Artee

बहुत अच्छा

16 सितम्बर 2021

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रचनाएँ
Shrut kirti Agrawal की डायरी
0.0
ईश्वर सत्य है, मेरी एक ऐसी रचना है जो हर जगह सराही गई है। यह दुनिया अच्छे और खराब दोनों ही मनःस्थिति के लोगों से भरी पड़ी है जिनको अलग-अलग पहचानना कोई आसान काम तो नहीं। जिसे बुरा समझ कर नकारना चाहा था, वही सबसे आत्मीय निकला और जिसको हमेशा खुश रखने की कोशिश की, उसके हाथ में खंजर निकली।

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