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शिक्षक दिवस पर

16 सितम्बर 2021

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बिखरा था स्वर्ण राह में
मैं धूलिकण चुनता रहा,
अथाह ज्ञान हर तरफ
मैं मूढ़, स्वप्न बुनता रहा!

उँगली पकड़ के ले चला जो
नहला दिया प्रकाश से,
वह गुरू था, दिव्य पावन
उतरा किसी आकाश से!

ममता दुलार पर अनुशासन
मेरे गुरु की पहचान यही
हॄदय विराजो हे पथ प्रदर्शक,
राहें चुनना आसान नहीं!

तराशना वह जानता है
अनगढ़ कोई पत्थर भले
अभीष्ट मिल ही जाएगा अब
गर कोई तत्पर रहे!!


मौलिक एवं स्वरचित

श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत सुंदर

16 सितम्बर 2021

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रचनाएँ
Shrut kirti Agrawal की डायरी
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ईश्वर सत्य है, मेरी एक ऐसी रचना है जो हर जगह सराही गई है। यह दुनिया अच्छे और खराब दोनों ही मनःस्थिति के लोगों से भरी पड़ी है जिनको अलग-अलग पहचानना कोई आसान काम तो नहीं। जिसे बुरा समझ कर नकारना चाहा था, वही सबसे आत्मीय निकला और जिसको हमेशा खुश रखने की कोशिश की, उसके हाथ में खंजर निकली।

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